Sunday, February 26, 2017

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत को संगठित और सुरक्षित रखने के लिए कार्य कर रहा है

संबलपुर :भारत को सुपर पावर राष्ट्र बताते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के राष्ट्रीय प्रचार प्रमुख एम मनमोहन वैध ने बताया कि भारत अपने बलबूते सुपर पावर राष्ट्र बना है। इसके लिए भारत ने किसी का शोषण भी नहीं किया।
कुंजेलपाड़ा स्थित संस्कृति भवन में आयोजित प्रेसवार्ता में प्रचार प्रमुख वैध ने आगे बताया कि समाज के संगठित होने से ही देश आगे बढ़ेगा और इसका विकास हो सकेगा। विश्व में भारत के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए दुश्मन देशों द्वारा आक्रमण की आशंका को देखते हुए उन्होंने बताया कि उसका मुकाबला करने के लिए भारत को अपनी सैन्य शक्ति बढ़ानी पड़ेगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी भारत को संगठित और सुरक्षित रखने के लिए कार्य कर रहा है। इसे कोई राजनीतिक शक्ति रोक नहीं सकती। संघ का अपना एक आदर्श है और संघ इसी आदर्श को लेकर कार्य करता है। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों को संघ के कार्यों को लेकर भ्रम है। संघ हिन्दुत्व की वकालत करता है लेकिन इसकी आड़ में तोड़ने का कार्य नहीं करता। हिन्दुत्व का मतलब तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। संघ धर्मातरण पर भी विश्वास नहीं करता जबकि देश में अन्य कई समुदाय इसे चला रहे हैं। ओडिशा में हिंदुओं को धर्मातरण के लिए मजबूर भी किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि संघ के आदर्श से प्रेरित होकर इसकी शाखाओं में गैर हिंदु भी अपनी इच्छा से शामिल हो रहे हैं। इस अवसर पर संघ के पश्चिम प्रांत संयोजक डॉ. विपिन बिहारी नंद व अध्यापक विश्वरंजन पुजारी भी उपस्थित थे।


Saturday, February 25, 2017

नानाजी ने किया दीनदयाल जी के सपनों को साकार – रामनाथ कोविंद जी

चित्रकूट. भगवान राम की तपोस्थली चित्रकूट में चार दिवसीय ग्रामोदय मेले का शुभारंभ बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद जी ने किया. उद्घाटन समारोह में उन्होंने कहा कि एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल जी के चिन्तन में हमेशा ही ग्राम उत्थान रहा है. चित्रकूट की भूमि पर नानाजी देशमुख ने दीनदयाल जी के सपने को धरती पर उतारा और क्षेत्र के गांव आज उत्तरोतर विकास के मार्ग पर बढ़ रहे हैं. एकात्म मावनवाद के महान चिंतक पंडित दीनदयाल उपाध्याय एवं राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख के जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित ग्रामोदय मेले का शुभारम्भ देवार्चन, दीप प्रज्ज्वलन, पुष्पार्चन, वेदमंत्रों, शंखध्वनि के बाद सभी उपस्थित जनों द्वारा सामूहिक राष्ट्रीय गान के साथ हुआ.
राज्यपाल ने कहा कि भारत गांव में बसता है, हर व्यक्ति के जीवन में एक प्रश्न रहता है कि उसने अपने जीवन में क्या किया. राष्ट्रऋषि नानाजी ने दीनदयाल जी के चिंतन को दीनदयाल शोध संस्थान के प्रकल्पों के माध्यम से साकार कर समाज को एक दिशा दी कि एक व्यक्ति अपने जीवन में क्या नहीं कर सकता, अपने जीते जी नानाजी ने अपना शरीर भी मृत्यु के बाद दधीचि देह दान संस्थान को देने का संकल्प ले लिया. व्यक्ति एवं समाज एक दूसरे के पूरक हैं, यह एकात्म मानववाद के चिंतक पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के विचार थे. जिसे नानाजी ने साकार रुप दिया. भारतमाता से यदि माता शब्द हटा दिया जाए तो भारत केवल एक भूखण्ड मात्र रह जाएगा. दीनदयाल शोध संस्थान पंडित जी के सपनों का भारत तैयार कर रहा है, संस्थान की समाज शिल्पी दंपत्ति योजना आदि अनेक अनुकरणीय प्रयासों से भारत सरकार भी अपनी योजनाओं में मार्गदर्शन ले रही है.
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि थावरचन्द्र गहलोत ने कहा पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने एकात्म मानववाद रुपी एक चिंतन समाज को दिया, नानाजी ने वसुधैव कुटुम्बकम की अपनी वृत्ति के आधार पर साकार रुप दिया. केन्द्रीय राज्य मंत्री सुदर्शन भगत ने कहा कि नानाजी कहा करते थे – केवल राजनीति से संन्यास लेकर एक अनुकरणीय माडल दीनदयाल शोध संस्थान प्रस्तुत किया.
कार्यक्रम का संचालन दीनदयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव अतुल जैन ने किया. कार्यक्रम की भूमिका राज्यसभा सांसद प्रभात झा ने रखी. सभी अतिथियों का स्वागत कार्यक्रम संस्थान के कार्यकर्ताओं ने किया. उद्घाटन सत्र में संरक्षक दीनदयाल शोध संस्थान एवं संघ के वरिष्ठ प्रचारक मदनदास देवी सहित अन्य मंचासीन रहे. इनके अलावा सदगुर सेवा संघ के डॉ. वीके जैन, माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विष्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीके कुठियाला, रानी दुर्गावती विवि के कुलपति प्रो. कपिलदेव मिश्र, महात्मा गांधी ग्रामोदय विवि के कुलपति प्रो. नरेश चंद्र गौतम, विकलांग विवि के कुलपति डॉ. योगेश चंद्र दुबे, एकेएस विवि सतना के कुलपति सहित चित्रकूट के सभी संत महंतों की उपस्थिति रही.
आकर्षण का केन्द्र बना नौ करोड़ का भैंसा युवराज
ग्रामोदय मेले में लगी प्रदर्शनी में लोग आनंद ले रहे हैं. वहीं मेले में कुरक्षेत्र हरियाणा के करमवीर सिंह अपने विश्व विख्यात भैंसे युवराज को लेकर आए. भैंसे की कीमत एक-दो लाख नहीं, बल्कि पूरे नौ करोड़ है. उच्च अनुवांशिक उत्पादन क्षमता वाले युवराज नाम के भैंसे की कीमत दक्षिण अफ्रीका के पशुपालकों ने 9.25 करोड़ लगाई है. इस पर प्रतिदिन तीन हजार का व्यय आता है.
चित्रकूट में दिखा लघु भारत का दर्शन
ग्रामोदय मेले में भारत के कई हिस्सों से सांस्कृतिक प्रस्तुतियां देने आए इंदिरा गांधी राष्टीय कला केन्द्र के 250 लोक कलाकारों ने सुबह संस्कृति की छटा पूरे नगर में बिखेर दी. रामघाट से जानकी कुंड तक निकाली गई शोभायात्रा देश के विभिन्न राज्यों की संस्कृति को प्रदर्शित कर रही थी. सांस्कृतिक परिधानों से सुसज्जित यह लोक कलाकार पूरे दिन अपनी कला का प्रदर्शन करते रहे. ये कलाकार मेले में प्रतिदिन सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे.

कैंसर के बारे में जनजागरुकता अभियान में सबको साथ आना होगा – डॉ. प्रवीण भाई तोगड़िया

जयपुर (विसंकें). विहिप के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष एवं ख्याति प्राप्त कैंसर सर्जन डॉ. प्रवीण भाई तोगड़िया ने कहा कि मुंह एवं गले के कैंसर के 90 प्रतिशत रोगी ग्रामीण परिवेश एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के होते हैं. कैंसर की जांच एवं उपचार सुविधाएं अधिकांशतया शहरों में उपलब्ध होने से ग्रामीण रोगियों के इलाज में देरी होती है. उन्होंने कैंसर के बारे में जनजागरूकता अभियान में सरकारी एवं गैरसरकारी, स्वयंसेवी संस्थाएं, चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े प्रत्येक भारतीय नागरिक से इस लडाई में साथ आने का आह्वान किया. वे जयपुर के भगवान महावीर कैंसर अस्पताल के तत्वाधान में आयोजित इंडो ग्लोबल समिट ऑन हैड एवं नैक कैंसर सेमीनार के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे.
भगवान महावीर कैंसर अस्पताल द्वारा आयोजित सम्मेलन में देश विदेश के करीब 700 चिकित्सक भाग ले रहे हैं. तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में सुबह 8 बजे से शाम 7 बजे तक गहन मंथन हुआ. राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री कालीचरण सर्राफ विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे. डॉ. पीएस लोढ़ा ने कहा कि डॉ. प्रवीण तोगडिया माह में जनकल्याण के कार्यक्रम में करीब 25 दिन यात्रा करते है. उन्होंने लगभग 12000 कैंसर के सफल ऑपरेशन भी किये हैं. भारत में एक अभियान “हैल्थी नेशन-हैप्पी नेशन” भी शुरू किया है, जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा एवं गरीब निम्नवर्ग के लोगों के लिये 60,000 प्रोजेक्ट चल रहे हैं. जिससे करीब 51,000 गांवों के बीस लाख से अधिक बच्चों को प्राथमिक शिक्षा एवं एक लाख से अधिक विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा में पूर्ण मदद मिल रही है.
कालीचरण जी सर्राफ ने कैंसर के बढ़ते रोगियों की संख्या पर चिन्ता व्यक्त की तथा इस भयावह रोग के रोकथाम, जल्द अवस्था में जाँच एवं उचित इलाज पर प्रकाश डाला. उन्होंने उपस्थित चिकित्सकों से इस प्रकार की कार्यशाला एवं संगोष्ठी के माध्यम से चिकित्सा विज्ञान के नवीनतम जानकारियां एवं उनके लाभ ग्रामीण एवं आमजन तक पहुंचाने का आग्रह किया.
भगवान महावीर कैंसर चिकित्सालय न्यास के अध्यक्ष नवरतन जी कोठारी ने कहा कि राजस्थान के कैंसर रोगियों को जाँच एवं उपचार के लिये पहले दिल्ली एवं मुम्बई जाना काफी कष्टप्रद था. इसी से प्ररेणा लेकर इस चिकित्सालय को क्षेत्र का सर्वोतम चिकित्सा केन्द्र बनाने का प्रयास निरन्तर जारी है. उन्होंने भगवान महावीर कैंसर चिकित्सालय में कैंसर केयर के सहयोग द्वारा चल रही जनकल्याण योजनाओं में से मुख्य डोनेट-ए-लाईफ (1-14 वर्ष के बच्चों का रक्त कैंसर, होजकिन्स लिम्फोमा), कैंसर मुक्ति-योजना (सीएमएल) के तहत रक्त कैंसर पीड़ित रोगियों का निःशुल्क चिकित्सा योजनाओं के बारे में बताया.
टाटा मेमोरियल अस्पताल मुम्बई के निदेशक डॉ. अनिल डीक्रूज, पूर्व निदेशक डॉ. पीबी देसाई, डॉ. डीडी पटेल, डॉ. राजगोपाल, डॉ. पीटर, डॉ. जैम्स एडम, डॉ. डेनियल, डॉ. नेक्यूब, मैक्स अस्पताल दिल्ली के डॉ. हरित चतुर्वेदी, बैंगलोर के डॉ. अय्यर ने भी अपने व्याख्यान दिए. संगोष्ठी के सचिव डॉ. ललित मोहन शर्मा ने बताया कि आज की गहन चर्चाओं में कई नई दवाईयों एवं कैंसर सर्जरी की नई तकनीक पर विशेष जोर दिया गया. इम्यूनोथेरेपी का कैंसर में उभरता हुआ प्रयोग आने वाले समय में काफी सफल रहेगा.
डॉ. अनिल गुप्ता ने बताया कि मुंह एवं गले के कैंसर सर्जरी जल्द अवस्था में करने से बीमारी की जड़ कटने की पूरी सम्भावना होती है. राजस्थान में अधिकांश मरीज लेट अवस्था में कैंसर के उपचार के लिए अस्पताल में पहुंचते हैं. जिससे ईलाज में परेशानी आती है, खर्च भी अधिक होता है और कई बार परिणाम भी अच्छा नहीं होता. डॉ. तेज प्रकाश सोनी ने बताया कि रेडियाथैरेपी की नवीनतम आईएमआरटी एवं आईजीआरटी तकनीक द्वारा अच्छे परिणाम आते है. फाइब्रोसिस कम होता है एवं लार की ग्रन्थी को बचाने सें मुंह का सूखना एवं अन्य दूरगामी परेशानियां एवं दुष्प्रभाव कम होते हैं. डॉ. एससी पारीक ने कहा कि राजस्थान में इस प्रकार की पहली संगोष्ठी है. इस संगोष्ठी में डॉक्टर्स के विचार विमर्श से मरीजों को लाभ पहुंचेगा. चिकित्सालय न्यास के प्रबन्ध न्यासी विमलचन्द जी सुराणा, वरिष्ठ उपाध्यक्षा अनिला कोठारी जी ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया.

हिमाचल के चुराह में सड़क पर लिखे पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे

शिमला (विसंकें). चंबा जिला के चुराह में नकरोड़-टिकरीगढ़ सड़क मार्ग के बीच में असामाजिक तत्वों ने पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लिख दिए. चुराह के गांव देहरोग के साथ की सड़क पर हिन्दी और उर्दु भाषा में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लिखे गये हैं. मामला प्रकाश में आते ही पुलिस व प्रशासन सजग हो गया है और मामले की गंभीरता को देखते हुए एसडीपीओ सलूणी महिंद्र सिंह के साथ थाना प्रभारी और पुलिस टीम को मौके पर जांच करने के लिए भेजा गया है.
प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि इन नारों को प्राईमर पैंट से लिखा गया है. लिखावट की स्पष्टता और बिना भाषागत दोषों से सहज अनुमान होता है कि लिखावट किसी अनुभवी और अच्छे खासे पढ़े लिखे व्यक्ति की है. पैंट से चांद सितारा और 786 भी लिखा गया है, ऐसे में पुलिस ने मामले में धार्मिक भावनाओं को आहत करने का केस दर्ज करते हुए घटना की जांच शुरू कर दी है. चुराह में 1998 में आतंकवादी घटना घट चुकी है, इसमें जम्मू से आये आतंकियों ने बड़ी संख्या में लोगों को मार डाला था. इस घटना के बाद चुराह को आतंकवाद ग्रस्त क्षेत्रों की सूची में शामिल किया गया था. जिला पुलिस अधीक्षक विरेंद्र तोमर का कहना है कि फोन द्वारा घटना की जानकारी मिलने पर एसडीपीओ सलूणीथानेदार तीसा और पुलिस टीम को जांच के लिए मौके पर भेजा गया है. मामले की छानबीन की जा रही है. वहीं मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि सदर जिला अंजुमन इस्लामिया सैयद दिलदार अली शाह का कहना है कि यह घटना चिंताजनक है. इससे देशभक्तों का अपमान हुआ है, ऐसे देश में पक्ष में नारे लिखना बेहद दुखद है जो आये दिन हमारे देश में अपने नापाक इरादों को अंजाम देता रहता है. पुलिस को इसके पीछे छिपी मंशा को सामने लाना चाहिए और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करनी चाहिये.
ये हिमाचल में पहली घटना नहीं है, इससे पहले भी 0जनवरी को सोलन धर्मपुर में मनसा देवी मंदिर परिसर में भी नारे लिखे गए थे. प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में पाकिस्तान के समर्थन में नारे लिखे गुब्बारे भी मिल चुके हैं. सोलन के सुबाथु में पानी की टंकी में जहर मिलाने की धमकी भी लिखी गयी थी. सुबाथु में धमाकों से दहलाने की धमकी भी आईएस के आतंकवादी पहले दे चुके हैं.

‘भारत-बोध’ सम्मेलन – भारतीय शिक्षा व कलाएं मनुष्य के सर्वांगीण विकास में सहायक

नई दिल्ली. ब्रिटिश शासन काल से पहले भारत कहीं ज्यादा बेहतर शिक्षित था, लेकिन अंग्रेजों ने हमारी शिक्षा व्यवस्था का ढांचा ध्वस्त कर दिया. प्राचीन काल में तक्षशिला जैसे ज्ञान के केंद्र सभी प्रमुख सभ्यताओं में आदान-प्रदान का केंद्र बिंदु था, लेकिन आज हम उस व्यवस्था से कोसों दूर हैं. जरूरत साक्षरता के साथ शिक्षित करने की भी है. गुजरात के ऑरो विश्वविद्यालय के प्रबंधन बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. शैलेंद्र राज मेहता तीन दिवसीय ‘भारत-बोध’ सम्मेलन के दूसरे दिन के प्रारंभिक सत्र में संबोधित कर रहे थे.
सम्मेलन का आयोजन भारतीय शिक्षण मंडल व इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में किया गया है. अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी व अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के उपकुलपति अनुनागर बेहर ने कहा कि शिक्षा की बात करें तो सबसे महत्वपूर्ण शिक्षकों की भूमिका है. वे मूल्यों का संवर्धन करने में मुख्य भमिका निभाते हैं. किसी शिक्षा संस्थान का आंकलन करना हो तो मूल्यों के संवर्धन करने में उसकी भूमिका को भी कसौटी बनाना चाहिए. भारत को आगे ले जाने की राह पर सबसे बड़ी बाधाओं में एक है, शिक्षा का व्यवसायीकरण. उन्होंने कहा कि एक बेहतर समाज तभी बन सकता है, जब शिक्षकों का सम्मान हो.
एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक व प्रसिद्ध शिक्षाविद् प्रोफेसर जेएस राजपूत ने व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में शिक्षकों की भूमिका पर बल दिया. पश्चिम की विचारधारा की रौ में हम बह गए और आजादी के बाद अपने देश की निहित शक्तियों को विकास के नाम पर विस्मृत कर दिया. हम भूल गए कि हमारे यहां शिक्षा का मूल उद्देश्य चरित्र निर्माण था. अब हालत यह है कि शिक्षा से हम फायदा कमाना चाहते हैं. डॉ. भगवती प्रसाद ने कहा कि प्रकृति और मानव में परस्पर जिस सामंजस्य की आवश्यकता है, उसके बारे में आधुनिक भारत में एकात्म मानववाद की विचारधारा ने समाधान दिया है.
प्रसिद्ध नृत्यांगना सोनल मानसिंह ने कहा कि भारतीय कलाएं अध्यात्म से जुड़ी हैं और जीवन को बेहतर व संपूर्ण ढंग से जीने का ढंग सिखती हैं. हमारे यहां कला जीवन और समाज के प्रति वृहद परिप्रेक्ष्य का निर्माण करती हैं और बड़े सरस तरीके से मानव मात्र को आत्म ज्ञान की ओर ले जाती हैं.

Friday, February 24, 2017

हमें अपने दृष्टिकोण से भारत की सांस्कृतिक व बौद्धिक विरासत को देखना होगा – सुरेश सोनी जी

नई दिल्ली. भारतीय शिक्षण मंडल तथा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन ‘भारत बोध’ 23 फरवरी से दिल्ली में शुरू हो गया. सम्मेलन का उद्घाटन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जी ने किया. पहले दिन उद्घाटन कार्यक्रम के पश्चात अरणी मंथन सत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी जी ने भी विषय पर संबोधित किया.
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जी ने ‘भारत बोध’ अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में कहा कि भारतीय सभ्यता हमें मानवीय मूल्यों का पाठ पढ़ाती है. इसलिए भारत की बौद्धिक विरासत को स्थापित करना एक महत्वपूर्ण प्रयास है जो प्रशंसा का पात्र है. सभी के प्रति सहिष्णुता, दया और मातृभूमि से प्रेम ही भारतीय सभ्यता के वास्तविक मूल्य हैं. उन्होंने कहा कि भारत की यही विशेषता है कि यहां सैकड़ों भाषाएं और सभी प्रमुख धर्म एक व्यवस्था के अंदर रहते हैं.
राष्ट्रपति जी ने कहा कि भारत का विचार सनातन ज्ञान की हमारी महान परंपरा से प्रवाहित होता आया है. मातृभूमि से प्रेम, अपना कर्म करना, सभी के प्रति दयाभाव, सबके प्रति सहिष्णुता और अपने काम और अनुशासन के प्रति जवाबदेह की सीख देते हुए कहा कि ये हमारी सभ्यता के मूल्य आज भी प्रासंगिक हैं. कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता है कि कैसे 200 भाषाओं, 1800 बोलियों और दुनिया के सात प्रमुख धर्मों की विविधता को समेटे हुए हम एक व्यवस्था, एक झंडा और एक संविधान के अंतर्गत रहते हैं. उन्होंने कहा कि आंख के बदले आंख और दांत के बदले दांत के सिद्धांत के विपरीत भारतीय सभ्यता ‘सर्वे भवंतु सुखिना’ का संदेश देती है. तीन दिन के सम्मेलन में जो विचार मंथन होगा, वह देश के लिए लाभदायक होगा.
उद्घाटन सत्र के बाद अरणी मंथन सत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी जी ने कहा कि आज सांस्कृतिक प्रत्याक्रमण की आवश्यकता है. वैदिक काल में हम ऐसे नहीं थे. हमारे वेद पुरूषार्थ और पराक्रम की बात करते थे. पर, एक योजनाबद्ध तरीके से हमें पराजय सहने का आदी बना दिया गया. हमें जरूरत से ज्यादा रक्षात्मक रहने की जरूरत नहीं है. पश्चिम के नजरिए से हम भारत को न देखें. इसके लिए हमें अपने दृष्टिकोण से भारत की सांस्कृतिक व बौद्धिक विरासत को देखना होगा.
सह सरकार्यवाह जी ने कहा कि इस दृष्टिकोण के लिए हमें नए प्रतिमान गढ़ने होंगे. भारत के शिक्षण व शोध संस्थानों को इन प्रतिमानों का विकास करने और इनके आधार पर काम करने की जरूरत है. भारतीय सभ्यता एक सहिष्णु समाज की नींव है क्योंकि यह ज्ञान देती है. भारत के छात्रों को भारत का सही बोध हो, इसके लिए भारतीय परंपरा के ज्ञान को शिक्षण संस्थानों के साथ मिलकर और आगे बढ़ाना है.
तीन दिवसीय सम्मेलन का आयोजन भारतीय शिक्षण मंडल तथा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से दिल्ली में किया जा रहा है. सम्मेलन में भारत और विश्व के अलग – अलग शिक्षण संस्थानों से लगभग नौ सौ प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं, जहां भारत से संबंधित विभिन्न पक्षों पर कई मौलिक शोध पत्र पढ़े जाएंगे.

परिवार के संस्कारों से ही जीवित है हिन्दू जीवन पद्धति – डॉ. कृष्ण गोपाल जी

गोरखपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि देश की हजारों वर्षों की गुलामी के बाद भी हिन्दू जीवन पद्धति जीवित है, इसका मूल कारण हमारी परिवार व्यवस्था से मिलने वाले संस्कार हैं. डॉ. ईश्वरचंद विद्यासागर,विनोवा भावे जी में जो समाज सेवा भाव आया, उसका स्रोत परिवार में माँ ही थीकिन्तु आज इस परिवार व्यवस्था पर ही बड़ा संकट खड़ा है. सह सरकार्यवाह जी गोरखपुर में माधव धाम राजेंद्र नगर पूर्वी में जन कल्याण न्यास द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी की 111वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे.
डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि जहां देने वाला देवता हैरखने वाला राक्षस हैइस भाव के कारण से ही हम इस संकट से उबर सकते हैं. कमाने वाला ही खाएगा के स्थान पर प्राचीन हिन्दू परिवार परम्परा कमाने वाला ही खिलाएगा, की धारणा इस संकट का सामाधान है. जीवन में छोटे को स्नेहवृद्धों की सुरक्षा हमारा संस्कार है.
इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ क्षेत्र कार्यकारणी सदस्य रामाशीष जी ने भारत माता के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलित कर किया. उन्होंने कहा कि संघ कार्यालय “माधवधाम” का मात्र माह में ही निर्माण पूर्ण हो जाने के पीछे पूज्य श्रीगुरुजी का आशीर्वाद ही है. सन 2001 से अब तक प्रत्येक वर्ष श्रीगुरुजी की जयन्ती पर कार्यक्रम का आयोजन हो रहा है, उनके प्रतिभा संपन्न जीवन की चर्चा करते हैं. श्रीगुरुजी विलक्षण प्रतिभा के धनी थे, वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्राणी विज्ञान के प्राध्यापक थे. परन्तु वे अंग्रेजी साहित्य तथा हिन्दी साहित्य की भी कक्षाएं लेते थे, आवश्यकता पड़ने पर गणित के विद्यार्थियों का भी मार्गदर्शन करते थे. इस अवसर पर प्रातःकाल सुन्दरकाण्ड का पाठ, हवनप्रसाद वितरण एवं संस्कार भारती द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. क्षेत्र प्रचारक शिवनारायण जीप्रान्त प्राचारक मुकेश विनायक खाडेकर जी,सह प्रान्त प्रचारक कौशल जीसहित अन्य गणमान्यजन, कार्यकर्ता व स्वयंसेवक उपस्थित थे.

Thursday, February 23, 2017

हिन्दुत्व अनुभव से, शास्त्र से, स्वभाव से भारत की राष्ट्रीयता है – दत्तात्रेय होसबले जी

नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले जी ने कहा कि हिन्दुत्व अनुभव से, शास्त्र से, स्वभाव से भारत की राष्ट्रीयता है. मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि डॉ. बाली द्वारा शोध के आधार पर लिखी गई “भारत गाथा” पुस्तक स्वतंत्र लेख तो है ही, साथ ही यह एक स्वतंत्र ग्रन्थ है. दूसरी पुस्तक “भारत को समझने की शर्तों” को समझेंगे, तभी आप भारत को जान पाएंगे. ऐसा इसलिए कहना पड़ा कि अगर आज भारत को समझा गया होता तो भारत में भारत के टुकड़े-टुकड़े करने नारे नहीं लगे होते. बल्कि, “भारत माता की जय!” के नारे लगे होते. सह सरकार्यवाह जी डॉ. सूर्यकांत बाली जी द्वारा लिखित पुस्तकों के लोकार्पण कार्यक्रम में दिल्ली स्थित कांस्टिट्यूशन क्लब में संबोधित कर रहे थे.
सह सरकार्यवाह जी ने आर्यों को लेकर इतिहास की किताबों में होने वाले भ्रामक खिलवाड़ पर देश विभाजक तत्वों व वामपंथी इतिहासकारों को दोषी ठहराया. इन इतिहासकारों से प्रश्न किया कि क्या दुनिया में कोई ऐसा देश है जो अपने स्कूली पाठ्यक्रम में विद्यार्थियों को ये पढ़ाता हो कि आर्य यहां से भारत गए थे? कोई नहीं बताता, तब प्रश्न है, आखिर आर्य कैसे भारत के बहार से आये? ऐसी बेतुकी मनगढ़ंत कहानियों को इतिहास के पाठ्यक्रमों में देश के एक खास विकृत मानसिकता से ग्रसित इतिहासकारों द्वारा शामिल किया गया है.
उन्होंने भारत के शिक्षा मंत्री से मांग करते हुए कहा कि मैं चाहता हूं कि इस देश के आईएफएस सेवा ज्वाइन करने वालों के पाठयक्रम में “भारत गाथा” को शामिल कर पढ़ाया जाना चाहिए. ताकि, वे दुनिया में जहां भी भारत का प्रतिनिधित्व करने जाएं, वहां पर ये जानकारियां उन्हें बताएं कि भारत क्या था, कैसा था और क्या है?
दत्तात्रेय होसबले जी ने जाति-संप्रदाय के मुद्दे पर बंटे हुए भारत की स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि इस देश के शिक्षण संस्थानों में 17वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक सभी जाति-संप्रदाय के लोग साथ पढ़ते थे. कोई ऊंच-नीच, किसी छुआछूत का भेदभाव नहीं था. किसी प्रकार की घृणा भी नहीं थी. सभी बराबर के थे. लेकिन, गौर करने वाली बात यह है कि उसके बाद खासकर 18वीं शताब्दी से भारत को जाति-धर्म-संप्रदाय के आधार पर बांटने की साजिश शुरू हुई. ऐसी क्या परिस्थितियां रही होंगी कि उसमें अंग्रेज कामयाब हुए, जिसमें उनका साथ दिया, यहीं के देश तोड़कों ने. जिसका परिणाम ये रहा कि आज भारत में यह एक कुरीति के रूप में घर कर बैठी हुई है. जिससे प्रत्येक भारतीय आज कहीं न कहीं ग्रसित है.
उन्होंने आह्वान किया कि आज भारत से जात-पात, ऊँच-नीच, छुआछूत के भेद को मिटाने और भारत की संस्कृति, यहां की परंपरा को पुनः स्थापित करने की आवश्यकता है. तभी भारत फिर से अपना खोया हुआ अस्तित्व वापस पा सकेगा. इसके लिए हमें यूरो आधारित सोच के नजरियों से हटना होगा और एक सशक्त बौद्धिक एवं वैचारिक स्तर पर भारत की सोच को पुनः खड़ा करना पड़ेगा.
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर जी ने कहा कि हमें भारत की नजर से देखने वाला नजरिया चाहिए. इसलिए शिक्षा मंत्रालय जल्द ही आठवीं से 12वीं तक के पाठयक्रम में “ट्रेडिशन एंड प्रेक्टिस ऑफ इंडिया” को एक-एक या दो-दो पाठ करके शामिल कर देगा. ताकि, भारत की नई पीढ़ी अपने भारत और उसकी गौरव गाथा को जाने तथा उसके महत्व को समझे. जब दूसरों की नजरों से अपने देश के बारे में जानते हैं तो हम सही नहीं जान पाते हैं. इसी का प्रमाण है कि आज भी भारत के लोगों में भारत के बारे में असमंजस की स्थिति बनी हुई है. ऐसी परिस्थिति में जब भारतीय नजरिये से लिखी हुई पुस्तक “भारत गाथा” और “भारत को समझने की शर्तें” आती हैं तो यह भारत की नई पीढ़ी को अपने मूल से परिचित करवाती हैं. यह हमारे लिए गौरव की बात है.
उन्होंने कहा कि आज पूरे विश्व में जो सबसे बड़ा चर्चा का विषय है वो “समानता” का है और भारत में हमेशा से ही समानता रही है. लेकिन, दुर्भाग्यवश ब्रिटिशरों ने ऐसा जहर घोला कि भारत असमानता जैसी भ्रामक बिमारी से ग्रसित हो गया और वो आज भी मौजूद है. आधुनिक भारत की संहिता भारत का संविधान है और उसके रचयिता बाबा साहेब आम्बेडकर हैं, जो एक दलित थे. धर्म कहता भी है कि जो समाज अथवा राष्ट्र “स्त्री और दलितों” का सम्मान करता है वो एक मजबूत स्तम्भ वाला राष्ट्र होता है और सौभाग्यवश यह सबकुछ भारत में विद्दमान है.
डॉ. सूर्यकांत बाली जी ने कहा कि भारत एक “ज्ञान यात्रा” है. हमारी सभ्यता पांच हजार साल पुरानी नहीं है, बल्कि भारतीय सभ्यता 10 हजार साल पुरानी है. पांच हजार साल बताना अंग्रेज और यूरो इतिहासकारों की एक सोची-समझी राजनीति एवं प्रोपेगेंडा था. भारत कोई सामान्य देश नहीं है. वो तो हमने दूसरों के बताने पर अपने ऊपर से भरोसा हटा लिया है और अपने आपको सामान्य मान रखा है. इसलिए भारत को समझना आवश्यक है और भारत को समझने के लिए मुस्लिम, सिख, इसाई को समझने की आवश्यकता नहीं है. इसके लिए हिन्दू को समझना आवश्यक है और यही एकमात्र माध्यम भी है.
प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी जी ने कहा कि हम लोगों ने कभी क्रमबद्ध इतिहास लिखा ही नहीं, यही भारत की सबसे बड़ी कमजोरी रही है. इतिहास को लेकर समस्या क्या है? सिर्फ तारीख या किसी के जन्म या किसी के मृत्यु का दिनांक मात्र है? जब पुराण को इतिहासकार ये कहकर ख़ारिज कर देते हैं कि इसका क्या प्रमाण है? ठीक है, मैं भी उनसे पूछना चाहता हूं कि पोरस और सिकंदर के बारे में लिखे हुए ग्रीक इतिहासकारों के इतिहास को क्यों न ख़ारिज कर दिया जाए? कारण है, दुनिया के इतिहासकारों के पास ग्रीक इतिहासकारों द्वारा लिखे गए इतिहास का क्या प्रमाण है? ये हमें जान लेना चाहिए कि साहित्य भी इतिहास है क्योंकि उसमें समाज जीवन के बारे में लिखा जाता है.
कार्यक्रम में डॉ. अवनिजेश अवस्थी जी ने कहा कि इस देश की उस राजनीतिक सोच ने देश के नागरिकों को जाति, धर्म, संप्रदाय के आधार पर अलग कर रखा है जो सत्ता को अपना अधिकार मानते हैं. कार्यक्रम में उपस्थित जनों से आह्वान करते हुए कहा कि इस देश के स्वर्णिम भविष्य को जागृत कर रखना है तो सभी को इस देश के स्वाभिमान को बचाए रखना पड़ेगा.

Wednesday, February 22, 2017

भारत की प्रकृति के अनुसार भारत का विकास होना चाहिये – अशोक जी मोडक

गुजरात (विसंकें). माधव स्मृति न्यास, गुजरात द्वारा 20 फरवरी को कर्णावती में आयोजित श्रीगुरूजी व्यख्यान माला में “एकात्म मानवदर्शन और सामाजिक न्याय”  विषय पर नेशनल रीसर्च प्रोफेसर, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अ. भा. वि. प. अशोकजी मोडक ने कहा कि दादा आप्टे ने एकबार पू. गुरूजी से साक्षात्कार में पूछा कि आपके जीवन का सूत्र क्या है? तब पू. गुरूजी ने गीता के श्लोक को उद्धृत करते हुए कहा कि जिन्हें लोक संग्रह करना है, उन्हें सामान्य मानव की तरह बिना किसी आसक्ति के सतत कार्य करना चाहिये. आज पूरे विश्व में हिन्दुत्व का वृक्ष पल्लवन हुआ है. अनगिनत लोग लाभ ले रहे है. परन्तु हमें याद रखना होगा कि जब यह वृक्ष शिशु अवस्था में था, तब इसको सिंचने का कार्य पू. गुरूजी और पंडित दीनदयाल जी जैसे महापुरुषों ने किया. अतः उनकी पुण्य स्मृति जगाना हमारा कर्तव्य है.
उन्होंने कहा कि हमें एकात्म मानव दर्शन व सामाजिक न्याय पर पिछले 26 वर्ष का सिंहावलोकन करने की आवश्यकता है. हम भूल नहीं सकते कि 1991 में रूस का विभाजन हुआ. जिसका अनुमान दीनदयाल जी को पहले से ही था. उन्होंने 1965 में एकात्म मानवदर्शन पर अपने एक भाषण में यह बात कही थी. सोवियत संघ और 2008 में लेहमेन के कारण अमेरिका का पूंजीवाद भी ध्वस्त होते दिख रहा है. भारत केन्द्रित दृष्टीकोण के कारण हम प्रगति कर सके. भारत में परिवार में एक कमाता है, लेकिन अधिकार सबका है यानि जो कमायेगा वह खिलायेगा. जबकि पश्चिमी सोच में जो कमायेगा वह खायेगा. पश्चिम में कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर समाज का महत्व है. भारत में संबंधों के आधार पर समाज चलता है. अशोक जी ने एकात्म मानव दर्शन की सात विशेषता बताईं –
  1. भारतीयता का भाव : भारतीय भाव का 19वीं, 20वीं सदी में हुये महान आत्माओं जैसे विवेकानंद जी, गाँधी जी, तिलक जी, डॉ. आम्बेडकर जी आदि के विचार का प्रमाणिक आविष्कार यानि एकात्म मानव दर्शन.
  2. भावात्मक विचार : भारत की प्रकृति के अनुसार भारत का विकास होना चाहिये
  3. आध्यात्मिकता : विवेकानंदजी एवं दीनदयाल जी के अध्यात्म का स्वीकार यानि सामाजिक समरसता.
  4. एकात्मता : व्यक्ति और समाज में कॉन्ट्रैक्ट नहीं, बल्कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति सर्वसाधारण व्यक्ति का पुजारी बने.
  5. समग्रता : केवल समाज का विचार नहीं, परन्तु संपूर्ण सृष्टि का विचार.
  6. मानसिकता में परिवर्तन : जबतक व्यक्ति की मानसिकता में परिवर्तन नहीं होता, समाज परिवर्तन नहीं हो सकता. केवल संस्थागत परिवर्तन प्रयाप्त नहीं है.
  7. सिद्धांतवादी समाज : मन शुद्ध हो तो मुक्ति महल हो या जंगल कहीं भी मिल सकती है.
कार्यकम के प्रारंभ में सुनील भाई बोरिसा ( सह संपर्क प्रमुख, रा.स्व.संघ, गुजरात) ने माधव स्मृति न्यास का परिचय कराया. माधव स्मृति न्यास के न्यासी वल्लभ भाई सांवलिया तथा महेश भाई परीख इस अवसर पर मंच पर उपस्थित रहे. भानु भाई चौहान ( सहकार्यवाह, रा.स्व.संघ, कर्णावती महानगर) ने कार्यक्रम के समापन में आभार विधि संपन्न की.

आर्थिक मॉडल में सामाजिक व सांस्कृतिक मूल्यों को भी समाहित करने की आवश्यकता – दत्तात्रेय होसबले जी

नई दिल्ली. भारत अपने शासन और नीतियों के बल पर प्रगति कर रहा है और भारतीय आर्थिक व सामाजिक विकास के वैश्विक कारकों के अनुसार आकार ग्रहण कर कार्यशील हो रहा है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले जी ने कहा कि अपने विकास के एजेंडे में हमें सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों को नहीं छोड़ना चाहिए. सह सरकार्यवाह भारत नीति प्रतिष्ठान (इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन) द्वारा आयोजित प्रथम राष्ट्रीय आर्थिक सम्मेलन के उद्घाटन कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि कृषि, खपत और प्राकृतिक संसाधनों के क्षेत्रों को केवल आर्थिक समीकरणों के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय सन्दर्भ में भी देखा जाना होगा, क्योंकि ये पारिस्थितिकी तन्त्र का अभिन्न अंग हैं. हमें आँखें बन्द कर विकसित देशों के आर्थिक मॉडल का पालन नहीं करना है. भारत गांवों का राष्ट्र है और किसानों के लिए अवसर विकसित और सुनिश्चित करना सरकार की पहली आवश्यकता है.
आईपीएफ के मानद निदेशक प्रो. राकेश सिन्हा जी ने कहा कि भारत लम्बे काल से अपनी आन्तरिक शक्तियों के बल पर जीवित रहा है और अपने अविभाजित दृष्टिकोण के कारण कई सामाजिक और आर्थिक संघर्षों से बचा रहा है. नव उदारवादी दृष्टिकोण और आर्थिक विकास का पूंजीवादी मॉडल दोबारा यहां प्रवेश कर रहा है. जीवन और जीवन की सुरक्षा का मूल्य एक नीति या मॉडल की तुलना में कहीं अधिक है. हमें सभी नागरिकों के बुनियादी संवैधानिक अधिकारों को सुनिश्चित करना होगा और केवल उत्पादकता के साथ उसका आंकलन नहीं कर सकते. उन्होंने कुछ मुद्दों को राजनीति से पृथक करने की जरूरत पर जोर दिया.
सम्मेलन के संयोजक गोपाल कृष्ण अग्रवाल जी ने कहा कि हम टिकाऊ विकास पर चर्चा के उद्देश्य से कार्य कर रहे हैं. टिकाऊ विकास की अवधारणा का प्राकृतिक संसाधनों के प्रबन्धन, आबंटन, बाजार की शक्तियों, पानी की उपलब्धता, खाद्य सुरक्षा के प्रबन्धन, कौशल विकास और रोजगार सृजन, श्रम कानून सुधार, पूंजी निर्माण, बैंकिंग, वित्त और अन्य क्षेत्रों से गहन सम्बन्ध है. इस दृष्टि से एक व्यापक समीक्षा के उद्देश्य से हमें साथ आने, सभी हितधारकों को न्यायसंगत रीति से जोड़ने, दिशा और नीति की दृष्टि से मूल्यवान जानकारियों व पहल के साथ एक अधिक समग्र दृष्टिकोण और मॉडल के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि भारत प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों, उच्च कोटि की उद्यमशीलता और गौरवशाली बौद्धिक पूंजी से सम्पन्न है. हम अपनी स्वदेशी समझ के अनुसार, सभी हितधारकों को साथ लेकर एक सकारात्मक संवाद के साथ अग्रसर हो सकते हैं.
कृषि पर पहले सत्र में वक्ताओं में भूमि पट्टे पर नीति आयोग के टास्क फोर्स के तजमुल हक, सीएसीपी के अध्यक्ष विजय पॉल शर्मा, सीयूटीएस के महासचिव प्रदीप मेहता, भारत कृषक समाज के विलास सोनवणे थे. वक्ताओं ने किसानों की आय को द्विगुणित करने, खाद्य मुद्रा स्फीति के प्रबन्धन, भूमि सुधार डिजिटीकरण और पट्टे पर देने के मुद्दों पर चर्चा की. हमारा कृषि उत्पादन पर्याप्त है, लेकिन भंडारण, गुणवत्ता और बाजार लिंकेज बड़े मुद्दे हैं, जिनमें संस्थागत और निजी भागीदारी के ऊंचे स्तर की जरूरत है. मामला केवल खाद्य मुद्रास्फीति प्रबन्ध का नहीं, बल्कि उसे सीमा में रखने के बारे में है. जनसंख्या के एक बड़े हिस्से की भागीदारी और शहर की ओर गमन को पलटने के लिए भूमि सुधार आवश्यक है. यह भी निष्कर्ष निकला कि खाद्य मुद्रास्फीति व्यापारियों के लिए ही फायदेमन्द है, किसानों के लिए नहीं. जरूरी नहीं कि उदारवादी नीतियों से लाभ हो और किसानों के लिए प्रभावी हो. सत्र में व्यवस्था में संस्थागत बाधाओं में अवरोधों पर भी अपने विचार रखे. अगर हम किसानों की आय में वृद्धि करना चाहते हैं, तो हमें एक समन्वित तरीके से बुनियादी ढांचे, संस्थाओं, नीतियों, प्रौद्योगिकी और मूल्य निर्धारण के मुद्दों को देखना होगा. बाजार लिंकेज किसानों को एक सीधी पहुँच प्रदान करने और बिचौलियों की कई परतों में कटौती करने के लिए के लिए अनिवार्य है.
प्राकृतिक संसाधनों जैसे संवेदनशील विषय पर आईआईएम बेंगलुरु के अर्थशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर प्रो. भरत झुनझुनवाला के पैनल ने कहा कि हम पूरे विश्वास के साथ पाश्चात्य मॉडल का अनुसरण कर रहे हैं. हमें सराहना करनी चाहिए कि भारतीय समाज प्राकृतिक संसाधनों की देखभाल कर सकता है, न कि सरकारें.
डॉ राम सिंह दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर और डॉ. ज्योति शुक्ला अध्यक्ष राजस्थान राज्य वित्त आयोग और दीवान सिंह ने पानी के मुद्दों और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में जनजातियों की भूमिका पर प्रकाश डाला और कहा कि सरकार ही उनके मार्ग में बाधा डालती है. हमें भारत के लोगों पर भरोसा है और उन्हें विकास में भागीदार बनाने की जरूरत है, सरकारी मशीनरी यह नहीं कर सकते हैं. राजनीतिक हस्तक्षेप किसानों के नहीं उद्योगपतियों के हित में होता है. उन्होंने बताया कि अदालत ने 25,000 करोड़ रुपये के एक व्यापार मॉडल के खिलाफ INR 1,00,000 का जुर्माना ठोक दिया, जिसे किसी भी तरह से न्याय कहा नहीं जा सकता है.
रेल मंत्री सुरेश प्रभु जी ने कहा कि विकास की समीक्षा की जरूरत है और टिकाऊ विकास के सामाजिक पहलुओं के बिना काम नहीं कर सकता. कृषि विकास को जंगल, खेत, और पानी के साथ जोड़ा जाना चाहिए. अन्य आर्थिक मॉडल सीधे-सीधे भारतीय सन्दर्भ में फिट नहीं हो सकता. पर्यावरण और अपपदार्थों के साथ आर्थिक प्रगति और सामाजिक मूल्यों के समन्वय के उदाहरण हैं. हमें उन्हें पृथक खानों में बांटकर फिर उन्हें एकीकृत करने की जरूरत नहीं है.
मनीष कुमार एमडी, एनएसडीसी ने युवा पीढ़ी में कौशल का निर्माण करने के लिए सरकार के ध्यान पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि राज्यों में समान गम्भीरता के साथ मुद्दों को पहचान रहे हैं और हम कौशल की पहचान, विकास और प्रमाणन के लिए संस्थानों का एक सुदृढ़ नेटवर्क बना रहे हैं. एनआईओएस प्रमुख डॉ. चन्द्र बी. शर्मा ने कहा कि सरकारी स्कूलों के लिए बुनियादी ढांचे को बनाने और विकासशील शिक्षा के क्षेत्र में भारी व्यय हुआ है, लेकिन जीने के लिए या कौशल के लिए ज्ञान हस्तांतरण नहीं कर पाये. यदि हमने ज्ञान और कौशल की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कुछ नहीं किया तो एक विस्फोटक सामाजिक स्थिति सामने आएगी.
दलित चैंबर ऑफ कॉमर्स के संस्थापक मिलिन्द काम्बले जी ने कौशल, उद्योग और शिक्षा, काम व असंगठित क्षेत्र में रोजगार की संस्कृति को प्रेरित करने के मुद्दे पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि यह आकार दृष्टि से सबसे बड़ा है क्योंकि एक विशाल जनसंख्या को त्वरित सम्मान प्रदान करने वाला मुद्दा है. एमआर माधवन जी ने कहा कि कानूनों के मामले में हम आज भी अंग्रेजों के युग में जी रहे हैं और हमें उनकी समीक्षा और उनमें कटौती करनी होगी. जो कानून हमें विरासत में मिले हैं, उनकी संख्या और जटिलता काफी है और यदि उन्हें ज्यों का त्यों बनाए रखा जाये तो हम सकारात्मक ढंग से आगे नहीं बढ़ सकते हैं. उन्होंने नए श्रम कानूनों की जरूरत पर भी जोर दिया.
डॉ. इला पटनायक की अध्यक्षता में बैंकिंग और वित्त पर सत्र में नियन्त्रण और संस्थागत स्वतन्त्रता के बुनियादी संघर्ष पर विचार प्रस्तुत किए. हमें संस्थानों को मुक्त वातावरण में काम करने की अनुमति देनी चाहिए. डॉ. अजीत रानाडे जी मुख्य अर्थशास्त्री बिड़ला समूह ने कहा कि भारत को परिभाषित करने और पूंजी निर्माण के विभिन्न चैनल बनाने के लिए, अर्थव्यवस्थाओं में पूंजी निर्माण पर चर्चा जरूरी है. अमेरिका शोध संकेत देते हैं कि लगभग 70 प्रतिशत पूंजी मानव पूंजी से आती है, जिसकी हम आर्थिक गणना में अनदेखी करते हैं. उन्होंने कहा कि चीन की अर्थव्यवस्था निवेश आधारित है और हमें बाकी दुनिया से भी योग्य तौर-तरीके सीखने चाहिए. प्रो. वरदराज बापट आईआईटी मुम्बई ने वित्तीय समावेशन पर विचार प्रस्तुत किए और बिना विभिन्न अन्य मॉडलों की अनदेखी किए स्व सहायता समूह के मॉडल के पक्ष में तर्क दिया. उन्होंने सुशासन और बैंकिंग और गैर-बैंकिंग मार्गों के माध्यम से वंचित तबकों के लिए वित्तीय समर्थन के मुद्दों पर जोर दिया. राजकुमार अग्रवाल जी अध्यक्ष बीवीएसएस, प्रो कपिल कपूर पूर्व प्रो वाइस चांसलर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ने भी विचार प्रस्तुत किए.
भारत नीति प्रतिष्ठान के मानद निदेशक प्रो राकेश सिन्हा जी ने कहा कि हम आर्थिक और सामाजिक विकास के कथानक में प्रवेश कर रहे हैं, जो राजनीति से परे है. आईपीएफ ने हमेशा उच्चतम ईमानदारी के साथ बौद्धिक बहस का प्रयास किया है, जिनका सन्दर्भ वक्ताओं द्वारा निर्धारित किया जाता है. किसी भी अल्पकालिक लाभ के लिए विकृत नहीं किए जाते. सम्मेलन के संयोजक श्री गोपाल अग्रवाल ने सम्मेलन की रिपोर्ट प्रस्तुत की. उन्होंने सम्मेलन में वक्ताओं तथा भाग लेने वालों का आभार व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि सम्मेलन में विषय बड़े प्रासंगिक तरीके से उठाए गए और सभी वक्ताओं ने अपने वक्तव्यों के लिए प्रमाण भी प्रस्तुत किए. प्राकृतिक संसाधन सबसे अधिक स्थानीय समुदाय के हाथों में सुरक्षित रहते हैं और सरकार को अपनी नीतियों में इसका समर्थन करना चाहिए. सम्मेलन से जुड़े सभी संस्थानों के योगदान और उनकी सहायता का आभार माना.

Tuesday, February 21, 2017

द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरू जी के जन्मदिवस पर रक्तदान शिविर एवं सम्मान समारोह का आयोजन


आगरा (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर, श्री गुरूजी के जन्मदिवस पर रविवार को माधव भवन, जयपुर हाउस में रक्तदान शिविर का  योजन किया गया. श्रीगुरूजी स्मारक समिति के तत्वाधान में आयोजित जन्मदिवस कार्यक्रम का शुभारंभ प्रात:8 बजे हवन के साथ हुआ. इसके बाद रक्तदान शिविर का उद्घाटन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. एमसी गुप्ता, कार्यक्रम के अध्यक्ष संस्कार भारती के अखिल भारतीय अध्यक्ष बांकेलाल जी, मार्सन्स ग्रुप के निदेशक विमल जैन, डॉ. अनिल अग्रवाल एवं ​समिति के अध्यक्ष महानगर संघचालक विजय गोयल ने श्रीगुरूजी के चित्र पर माला चढ़ाकर व दीप प्रज्ज्वलन कर किया.
बांकेलाल जी ने कहा कि संघ को विश्व का सबसे बड़ा संगठन बनाने में गुरू जी ने सबसे अधिक योगदान दिया. गुरूजी के संपर्क में जो भी आता था, वह धन्य हो जाता था. कार्यकर्ता निर्माण करने में गुरूजी की अनुपम कला थी. उन्होंने संगठन को वटवृक्ष बनाया, उनके मिशन को पूरा करने के लिए इदं राष्ट्राया स्वाहा इदं न मम के द्वारा देशयज्ञ की रचना करनी होगी. डॉ. एमसी गुप्ता ने रक्तदान के महत्व पर कहा कि रक्तदान महादान है. सभी को अपने जन्मदिन पर मानव के जीवन की रक्षा करने के लिए रक्तदान अवश्य करना चाहिए.
सुबह से शुरू होकर शाम तक चले रक्तदान शिविर में 372 यूनिट, रक्तदान हुआ. शिविर में लो​कहितम ब्लक बैंक की टीम का सहयोग रहा. शिविर में छोटे बच्चों से लेकर, नवदंपत्तियों, युवाओं, महिलाओं व बुजुर्गो ने मानवता की सेवा हेतु रक्तदान किया. कार्यक्रम में पांच वर्षों लगातार रक्तदान कर रहे 25 जोड़ों को सम्मानित किया गया. साथ ही गुरूजी के जीवन पर आधारित एक लघु प्रदर्शनी भी माधव भवन में आकर्षण का केंद्र बनी.

Thursday, February 16, 2017

Sahitya Parisadara Basanta Utsav


RSS Press Statement by RSS Sarakaryavah Suresh Bhaiyyaji Joshi congratulating ISRO.


देवभूमि भारत समस्त विश्व का मार्गदर्शन करने में सक्षम – इंद्रेश कुमार जी

नोएडा. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अखिल भारतीय कर्यकारिणी के सदस्य इन्द्रेश कुमार जी ने भारतीय नव वर्ष को त्यौहार के रूप में मनाने पर बल दिया. प्रेरणा जनसंचार एवं शोध संस्थान (नोएडा-उत्तर प्रदेश) की पत्रिका केशव संवाद के ‘चुनाव: लोकतंत्र का पर्व’ विषयक विशेषांक के लोकार्पण अवसर पर उन्होंने भारतीय नववर्ष की समग्र परिकल्पना पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि भारतीय नववर्ष वस्तुतः कालगणना पर आधारित है और पूरे भारत में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है. कहीं विक्रमी संवत तो कहीं युगाब्द के रूप में इसकी प्रतिष्ठा है. भारतीय नववर्ष वस्तुतः भारतीय संस्कृति और परंपराओं की राष्ट्रीय अभिव्यक्ति है. यह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की आधार भूमि है. भारत देवभूमि है और वह संपूर्ण विश्व का मार्गदर्शन करने में सक्षम है. इसकी स्वीकार्यता जनमानस में है और इसमें जितनी जन हिस्सेदारी बढ़ेगी, उतना ही भारतीय समाज एकजुट होगा और उसको मजबूती मिलेगी. भारतीय काल गणना पृथ्वी की उत्पति से मानी जाती है. जब मानव का अवतरण हुआ, तबसे मानवीय कालगणना मानी जाती है. भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहां भगवान का अवतरण हुआ और इसे देव भूमि भी कहा जाता है. भारत में ही सबसे पहले मानव का अवतरण हुआ और यहां से ही मानव पूरे विश्व में गये.
जानी-मानी पटकथा लेखिका अद्वैता काला जी ने भारतीय नववर्ष के विस्तार में मीडिया की भूमिका बढ़ाने पर जोर दिया. उन्होंने इस बात पर दुःख व्यक्त किया कि मीडिया का बड़ा हिस्सा विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक  मीडिया और अंग्रेजी मीडिया भारतीय नववर्ष की घोर उपेक्षा करते हैं. एक जनवरी को जो अंग्रेजी नववर्ष मनाया जाता है, उसको लेकर मीडिया के इस बड़े हिस्से में प्रचारात्मक दीवानगी दिखती है. अगर यही दीवानगी भारतीय नववर्ष को लेकर हो तो भारतीय समाज में इसके प्रसार को बढ़ाया जा सकता है, इसको लोकप्रिय बनाया जा सकता है. उन्होंने भारतीय नववर्ष को जनता का त्यौहार बनाने का आह्वान किया. बच्चों और नव युवकों में विशेष रूप से इसके प्रति आकर्षण पैदा किया जाना चाहिए.
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के कुलपति नरेन्द्र कुमार तनेजा जी ने भारतीय नववर्ष की वैज्ञानिक व्याख्या करते हुए कहा कि यह पूरी तरह से भारतीय कालगणना पर आधारित है और इसकी वैज्ञानिकता को चुनौती नहीं दी जा सकती है. उन्होंने भी इसमें जन हिस्सेदारी बढ़ाने पर बल दिया और कहा कि इसका जितना प्रचार-प्रसार होगा, उतना ही भारतीय संस्कृति और परंपराओं को मजबूती मिलेगी. हिन्दुस्थान समाचार के प्रधान संपादक राकेश मंजुल, यूनियन बैंक मेरठ के पूर्व महाप्रबंधक आनंद प्रकाश, सह विभाग संघचालक सुशील सहित अन्य गणमान्यजन उपस्थित थे, कार्यक्रम में भारतीय नववर्ष व कालगणना पर विस्तार से मंथन हुआ. मुख्य अतिथि व अन्य ने केशव संवाद पत्रिका के विशेषांक का लोकार्पण किया.

Tuesday, February 14, 2017

माता-पिता पूजन कार्यक्रम

भुवनेश्वर :
 लोग 14 फरवरी को जहां युवा पीढ़ी वेलेंटाइन डे मना रहे हैं। वहीं Saraswati sisumandir  
के शिक्षकों ने भारतीय परंपरा को जीवित रखने के लिए विद्यालय में माता-पिता पूजन कार्यक्रम चला। इससे बच्चों को आरंभ से ही भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए बच्चों को पेरेंट्स डे मनाने को प्रेरित किया। विद्यालय के बच्चों ने विद्यालय में आए अपने माता पिता की पूजा की और आरती कर उनसे आशीर्वाद लिया। प्रधानाध्यापक ने कहा कि आज लोग वेलेंटाइन डे मना रहे हैं, लेकिन हमलोग अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। बच्चों में संस्कार देने के लिए माता पिता की भूमिका अधिक है। उन्होंने बच्चों को सुबह सवेरे उठकर अपने माता पिता से आशीर्वाद लेने तथा उनके कहे गए बातों पर अमल करने की सीख दी। उन्होंने कहा कि बच्चों को आरंभ से ही संस्कार देना चाहिए, इसकी जिम्मेवारी घर में माता पिता तथा विद्यालय में गुरुजनों की है।