Wednesday, January 31, 2018
Thursday, September 21, 2017
जोधपुर में नागरिक पत्रकारिता कार्यशाला सम्पन्न
जोधपुर में नागरिक पत्रकारिता कार्यशाला सम्पन्न
THURSDAY, SEPTEMBER 21, 2017
जोधपुर में नागरिक पत्रकारिता कार्यशाला सम्पन्न
THURSDAY, SEPTEMBER 21, 2017
जोधपुर में नागरिक पत्रकारिता कार्यशाला सम्पन्न
जोधपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जोधपुर महानगर प्रचार विभाग की ओर से आयोजित नागरिक पत्रकारिता प्रशिक्षण कार्यशाला एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज जोधपुर के ऑडिटोरियम में सम्पन्न हुई. कार्यशाला का उद्घाटन भारत माता के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन से हुआ.
कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर डॉ. अभिनव पुरोहित जी ने नागरिक पत्रकारिता कार्यशाला की भूमिका एवं उद्देश्य पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि पत्रकारिता ने समाज को सजग करने का कार्य हमेशा से किया है. लोकतंत्र की खूबी भी यही है कि उसके चारों स्तंभ अपने दायित्व का निर्वहन करते हैं. विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जब अपने दायित्वों से मुकरने लगते हैं, तब खबरपालिका की ओर जनता का मुखातिब होना स्वाभाविक है. आजादी के पूर्व पत्रकारों का योगदान अविस्मरणीय रहा है. आजादी के बाद की पत्रकारिता में विचलन देखने को मिलता है. मिशन को लेकर शुरुआत करने वाली पत्रकारिता कब पीत पत्रकारिता में तब्दील हो गई, इसका अंदाजा ही नहीं लगा. जब मुख्य धारा की पत्रकारिता ने अपने दायित्वों से मुंह मोड़ लिया, तब हमारे सामने नागरिक पत्रकारिता का ही एकमात्र सहारा बचा.
कहा जाता है कि हर पत्रकार नागरिक होता है, लेकिन हर नागरिक पत्रकार नहीं होता, यह सच भी है. अकबर इलाहाबादी ने उचित ही कहा कि –
खींचो न कमान न तलवार निकालो. जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो. अखबार की इसी महत्ता को आज नागरिक पत्रकारिता ने स्वयं सिद्ध किया है. केवल पत्रकारों के भरोसे नहीं रहा जा सकता. उनकी निष्पक्षता, ईमानदारी और विश्वसनीयता पर अब सवाल उठने लगे हैं. ऐसे में नागरिक पत्रकारिता पर लोगों का भरोसा जगने लगा है. सच्चाई को जनता के सामने लाना इसका बुनियादी उद्देश्य है. हमारे आसपास क्या घटित हो रहा है, उसका यथार्थ वर्णन करना उसका प्राथमिक सरोकार है. न्यू मीडिया की देन है कि हर नागरिक आज कलम का धनी हो गया है. वह अपनी बात कह सकता है, लिख सकता है, उसे सही अर्थों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है. नागरिक पत्रकारिता ने वास्तव में लोकतंत्र को खूबसूरत बनाया है. लोक की आवाज को बुलंद करने का कार्य यह नागरिक पत्रकारिता कर रही है. तकनीक ने उसे सबल बनाया है, उसके हाथ में कई माध्यम हैं, जिनके द्वारा जीवन जगत की सच्चाई को सामने लाया जा रहा है. यह माध्यम कहीं ज्यादा ईमानदार, निष्पक्ष और विश्वसनीय हैं.
कॉरपोरेट जगत ने मुख्यधारा की पत्रकारिता को अपने शिकंजे में ले लिया है. इस संक्रमणकाल में समाज और राष्ट्र को सशक्त बनाने के लिए नागरिक पत्रकारिता को बड़ी भूमिका अदा करनी है. हमारा एजेंडा बाजार मीडिया के माध्यम से तय न करे, अपितु हम स्वयं अपनी बात को पूरी ईमानदारी से जनता के सामने लाएं तो हम सच्चे अर्थों में नागरिक के दायित्वों का निर्वहन कर सकेंगे.
जयनारायण व्यास विवि जोधपुर के एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज में कम्प्यूटर एंड साइंस विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अनिल गुप्ता जी ने सोशल मीडिया और हमारा लक्ष्य विषय पर उद्घाटन सत्र में अपना उद्बोधन दिया. सोशल मीडिया आज बहुत ही शक्तिशाली टूल बन गया है, जिसके द्वारा हम जनचेतना राष्ट्रीय हित में कर सकते हैं. समाज में फैली कुरितियों, देश विरोध में काम करने वाली सस्थाओं तथा मीडिया द्वारा प्रस्तुत गलत तथ्यों को हम सोशल मीडिया द्वारा त्वरित गति से समाज में पंहुचा सकते हैं.
ट्विटर की कार्यशाला में जोधपुर महानगर के सह प्रचार प्रमुख और प्रान्त के विकिपीडिया प्रमुख जेईएन अभिषेक पुरोहित ने ट्विटर पर अकाउंट बनाने से लेकर ट्विट करना, रिट्विट करना, हैश टैग करना, ट्रेण्ड चलाना और सीमित अक्षरों में कानून के दायरे में रहते हुए अपनी बात को रखने के बारे में बताया.
पत्र लेखन और समाचार लेखन की कार्यशाला में प्रचार विभाग जोधपुर प्रान्त के पत्र लेखन अभ्यास वर्ग और पत्र लेखन मंच के प्रान्त प्रमुख बाबूलाल टाक जा ने पत्र लेखन और समाचार लेखन की बारिकियां बताते हुए सभी को समाचार पत्रों के लिए लिखने का आह्वान किया. सामाजिक सरोकार से सम्बन्ध रखने वाली हर वो खबर जिसके बारे में हमें लगता है कि इस विषय पर समाचार पत्रों को अवगत कराना चाहिए, फोटो सहित समाचार पत्रों को भेज सकते है. आपके उस समाचार को पेपर में स्थान मिले या न मिले अपना प्रयास निरन्तर जारी रखना चाहिए.
फोटो पत्रकारिता कार्यशाला में अजमेर महानगर के प्रचार प्रमुख विवेक शर्मा ने फोटो जर्नलिज्म विषय पर जानकारी दी. एक अच्छी फ़ोटो खींचने के लिए कम्पोजिशन, क्रिएटिविटी, कलर्स, सब्जेक्ट इत्यादि का विशेष ध्यान रखना पड़ता है. एक सामान्य व्यक्ति भी मोबाइल कैमरे से उत्तम चित्र खींच सकता है.
सायबर सिक्योरिटी की कार्यशाला में कानूनी विषय पर प्रकाश डालते हुए प्रचार विभाग जोधपुर प्रान्त के लीगल सेल प्रमुख और राजस्थान हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता दीपक चौधरी ने बताया कि हमें धार्मिक भावनाएं, जातिवाद, रंगभेद आदि विषयों पर कभी टिप्पणी नहीं करनी चाहिए. सौम्य भाषा का प्रयोग करना चाहिए और बिना सूचना का स्रोत जाने उसे अपनी तरफ से अग्रेषित नहीं करना चाहिए. कानूनी प्रावधानों के बारे में भी जानकारी दी.
कार्यशाला के समापन अवसर पर डॉ. नरेन्द्र मिश्र जी ने कहा कि आज की पत्रकारिता पर कटाक्ष करने के लिए कवि मुक्ति बोध की कविता का स्मरण करना चाहिए. बकौल मुक्तिबोध अब तक क्या किया, जीवन क्या जिया. ज्यादा लिया और दिया बहुत कम. मर गया देश और जीवित रह गए तुम.. ऐसे भयावह समय में हम जी रहे हैं. हमारी सोच को खंड – खंड में बदला जा रहा है. बाजार ने मीडिया को कठपुतली बना लिया है. सुविधा से और सरलीकृत तरीके से हम हिंसा की व्याख्या करने लगे हैं. लोकतंत्र के चारों पहरुए पंगु होते जा रहे हैं. पूंजीवाद के इशारे पर हमारा बौद्धिक समाज थिरकने लगा है. ऐसे विकट समय में एकमात्र नागरिक पत्रकारिता ही हमारा संबल है. अभिव्यक्ति का सर्वाधिक सशक्त माध्यम है नागरिक पत्रकारिता. इसी के माध्यम से राष्ट्र को सशक्त बनाया जा सकता है. गीता की उक्ति है कि समाज के श्रेष्ठजन का इतरजन अनुकरण करता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जोधपुर प्रान्त के प्रचार प्रमुख मनोहर शरण जी, नागरिक पत्रकारिता प्रशिक्षण वर्ग के प्रमुख डॉ. नरेन्द्र मिश्र जी, प्रान्त सोशल मीडिया प्रमुख डॉ. अनिल गुप्ता जी, सहित अन्य उपस्थित रहे.
व्यक्ति निर्माण की प्रथम पाठशाला है विद्यार्थी परिषद – श्रीहरि बोरिकर जी
THURSDAY, SEPTEMBER 21, 2017
व्यक्ति निर्माण की प्रथम पाठशाला है विद्यार्थी परिषद – श्रीहरि बोरिकर जी
लखनऊ (विसंकें). अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रतिभा सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि पंकज सिंह जी ने कहा कि विद्यार्थियों की आवाज बनकर प्रत्येक विश्वविद्यालय, महाविद्यालय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद खड़ी रहती है. विद्यार्थी परिषद के होने का अर्थ है कि एक राष्ट्रवादी छात्रों के समूह की उपस्थिति है.
आम्बेडकर विश्वविद्यालय के सभागार में हजारों छात्रों के बीच अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का प्रतिभा सम्मान समारोह सम्पन्न हुआ. समारोह का उद्घाटन मुख्य अतिथि पंकज सिंह जी, पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री एबीवीपी एवं अखिल भारतीय राज्य विश्वविद्यालय प्रमुख श्रीहरि बोरिकर जी, क्षेत्रीय संगठनमंत्री एबीवीपी रमेश गढ़िया जी, विश्वविद्यालय कुलपति डॉ.आरसी शोबती जी, सहित अन्य ने दीप प्रज्जवलन कर किया.
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्रीहरि बोरिकर जी ने कहा कि व्यक्ति निर्माण की प्रथम पाठशाला विद्यार्थी परिषद है. जो समय समय पर विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण, व्यक्तित्व निर्माण एवं जाति – धर्म से ऊपर उठकर सामाजिक समरसता के भाव के माध्यम से समाज एवं सत्ता और व्यवस्था में परिवर्तन लाने के लिए एक प्रेरक की भूमिका निभाती आ रही है. विद्यार्थी परिषद छात्रों के बीच देश के महापुरूषों द्वारा किए गए कार्यों से प्रेरणा लेकर एक भाव पैदा करने का काम करता है कि हमारे देश का छात्र स्वामी विवेकानन्द, बाबा भीमराव आम्बेडकर, रानी लक्ष्मीबाई की तरह अपने जीवन को देशहित में समर्पित करें.
कार्यक्रम के अध्यक्ष केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. आरसी शोबती जी ने कहा कि विश्वविद्यालय व महाविद्यालयों के छात्रों को आज संस्कारयुक्त एवं चरित्र निर्माण युक्त, शिक्षा उपलब्ध कराने की आवश्यकता है. जिससे छात्रों में त्याग, समर्पण के साथ साथ आत्मविश्वास जगाने की आवश्यकता है. देश के इतिहास एवं संस्कृति से छात्र ओतप्रोत हो. भारत के छात्रों में विश्व में अपना अलग उच्च स्थान बनाया है. हमारे देश की संस्कृति विश्व में शांति की भावना पैदा करती है. इसलिए भारत की शिक्षा और संस्कृति को पूरी दुनिया में पहुंचाने की आज महती आवश्यकता है.
Wednesday, September 20, 2017
अभावग्रस्तों की सेवा करना, उनकी सहायता करना हमारे जीवन मूल्यों में है – डॉ. मोहन भागवत जी
Wednesday, September 20, 2017
अभावग्रस्तों की सेवा करना, उनकी सहायता करना हमारे जीवन मूल्यों में है – डॉ. मोहन भागवत जी
नई दिल्ली. एयरो सिटी नई दिल्ली, वरलक्ष्मी फाउंडेशन (जीएमआर ग्रुप) के सिल्वर जुबली समारोह में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी का उद्बोधन…….
वरलक्ष्मी फाउंडेशन और जीएमआर ग्रुप से संबन्धित सभी कर्मचारीगण, कार्यकर्तागण उपस्थित नागरिक सज्जन, माता और बहनों,
मंत्री जी ने जो कहा, उससे मैं 100 प्रतिशत सहमत हूँ, कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी, ये तीन शब्द आने के बहुत पहले से जो कमाते हो, उसमें से कितना देते हो, उस पर तुम्हारी प्रतिष्ठा निर्भर है, ये हमारे यहां पहले से सनातन मूल्यों में है. केवल कमाने से हमारे यहां नाम नहीं होता है, कमाने के बाद बांटने से होता है और जीएमआर राव साहब बात करते हुए इमोशनल हुए अब वो इमोशनल ही तो सब कुछ है, रिस्पांसबिलिटी कब समझ में आती है? जब मन इमोशनल हो, नहीं तो एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य से क्या संबंध? कुछ दिन पहले मैंने एक खबर भी पढ़ी किसी एक बड़ी कंपनी में बेटे ने बाप को बेदखल कर दिया, सब साधन होने के बाद भी अगर नहीं समझ में आता है तो क्यों नहीं आता है? इमोशन यानि जो संवेदना है, उसका हमारे यहां महत्त्व है और आज मैंने जो काम देखा, उसमें वो संवेदना साफ झलकती है. कॉरर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी कहना और किसी करने वाले को दे देना, ये तो पहले फैशन से चला. अब कानूनन अनिवार्य है.
लेकिन ये शब्द फैशन में भी नहीं था और कानून भी नहीं था, तब से ये काम चल रहा है. उस संवेदना के कारण और उन मूल्यों के कारण चल रहा है और मैंने जो देखा उसमें झलकता है, जो काम हो रहा है वो अत्यंत व्यवस्थित है. आने वाले व्यक्ति को केवल कुशलता नहीं, क्योंकि केवल कुशलता से नहीं होता है. पहली बात आत्मविश्वास चाहिए, यहां के स्किल ट्रेनिंग में वो आत्मविश्वास भी दिया जाता है. आपके आमने जो लोग बोल रहे थे, उनके बोलने से आपको पता चला होगा. उनकी आयु के लोग इतनी बड़ी सभा में बड़े लोगों के सामने ठीक से बात करना कठिन मानते हैं, नहीं बोल पाते, हिम्मत नहीं होती. परंतु ये हिम्मत भी इसमें मिलती है और साथ- साथ कुशलता मिलती है. उस कुशलता का उपयोग प्रमाणिकता के साथ करने का संस्कार भी मिलता है और दायित्व बोध भी मिलता है जो सबसे बड़ी बात है.
रात को 2002, जून महीने का रीडर डाइजेस्ट का पुराना अंक मेरे हाथ लगा, उस समय पढ़ा भी होगा. लेकिन भूल गया होगा, इसलिए तुरंत देखने लगा. उसमें एक आर्टिकल था – एक टीवी स्टार ने लिखा था “जितनी भलाई आप कर सकते हैं, उतनी आप करते चलो क्योंकि अच्छाई कभी फालतू नहीं जाती” वो कहता है, मुझे एक कहानी मालूम है (वो कहता है) ‘एक व्यक्ति ने घर की खिड़की से रास्ते के उस पार छोटे से रेस्टोरेंट के दरवाजों की पैड़ियों को एक 18 साल के लड़के को साफ़ करते हुए देखा. वो 18 साल का लड़का उसको परिचित लगा, उसने गौर से सोचा तो ध्यान आया कि उसके पिता जी के साथ उससे मिला था. पिता जी का नाम, फ़ोन नंबर उसके पास था. उसने तुरंत फ़ोन किया और कहा, तुम्हारे लड़के को मैं देख रहा हूं वो रेस्टोरेंट की पैड़ियां साफ कर रहा है, 18 साल का है, पढ़ने की उम्र है, उसको तुमने नौकरी पर क्यों लगाया तो पिता जी ने कहा मुझे वेतन कम मिलता है और मुझे इतना बड़ा परिवार चलाना है, पढ़ने की उसकी इच्छा है और उसकी इच्छा का समर्थन मेरे मन में है भी, लेकिन उसको मैं पैसा नहीं दे सकता. इसलिए वो ये सारे काम करके पैसे इकट्ठा कर रहा है. उस व्यक्ति को ये बात मन में रह गई. उसने फ़ोन रख दिया और जाकर उस लड़के को कहा, तुम्हारा काम होने के बाद रात को मुझे मिलकर जाना. रात को लड़का आया तो उसने पूछा तुम पढ़ना चाहते हो? लड़के ने उत्तर दिया – हाँ, पढ़ना चाहता हूं. व्यक्ति बोला कितना खर्चा होता है तुम्हारा, पूरा बताओ, लड़के ने हिसाब लगाकर बताया. उसने कहा देखो आगे की शिक्षा, तुम्हें दूसरी जगह करनी होगी और वहां तुमको रहने का खर्च, खाने का खर्च, सब जोड़ो, उसने सब जोड़ा. व्यक्ति ने कहा – कल से ये काम छोड़ दो और पढ़ने के लिए चले जाओ, तुम्हारा खर्चा मैं करूंगा. बालक खुश हो गया. फिर व्यक्ति ने कहा – देखो, मैं तुम्हे दान नहीं दे रहा हूं, तुम पढ़-लिखकर जब कमाने लगोगे तो जैसे तुमको बनता है, वैसे हफ्तों में पूरा पैसा वापस करना है, ये पहली शर्त है. दूसरी शर्त है, अगर किसी की तुम्हारे जैसी परिस्थिति दिखती है तो जो मैं तुम्हारे लिए कर रहा हूं, वैसा तुमको उसके लिए करना पढ़ेगा और तीसरी शर्त है, मैंने तुम्हें जो पढ़ाया और खर्च किया, ये बात जीवन में किसी तीसरे व्यक्ति को नहीं बताना है, इसे गुप्त रखना है. आगे 5 साल तक प्रतिवर्ष नौ सौ डॉलर उस बच्चे का खर्च व्यक्ति ने दिया.
फिर वो अपनी कहानी बताने वाला कहता है – आगे वो बच्चा बड़ा हुआ, अच्छा कमाने लगा और उसने दो ही वर्षों में उसका पूरा पैसा वापस कर दिया. उस शर्त का उसने तुरंत पालन किया, दूसरी शर्त का भी वो पालन करता है कठिनाई में फंसे व्यक्तियों की वो सहायता करता है. केवल तीसरी शर्त का पालन उसने नहीं किया. उसने ये कहानी लेख में लिखकर बताई वो जो पैड़ी साफ करने वाला लड़का था मैं ही था, ये दायित्व बोध है, मेरे लिए किसी ने किया, मुझे भी करना है. “साधन नहीं है तो क्या हुआ ? इमोशन अगर मन में है तो दायित्व बोध आता है और साधारण व्यक्ति भी काम करता है, समाज के लिए करता है.”
वो कॉरर्पोरेट का ही है, लेकिन वो अपनी सोशल रिस्पांसिबिलिटी समझता है. आप सभी सेवा का काम करते हैं आपको भी कितने अनुभव आते होंगे, मुझे भी आते हैं. कारगिल लड़ाई में सेना के अफसर ने एक अनुभव बताया, उन्होंने बताया नागपुर रेलवे स्टेशन के सभी कर्मचारियों ने कारगिल के लिए निधि जमा की और वो जब सरकार के कारगिल फण्ड में देने की जब बात हुई तो उसके लिए क्योंकि मैं यहां पोस्टेड था, मुझे बुलाया गया. मैं भी उपस्थित हुआ, कार्यक्रम अच्छा हो गया और मैं बाहर निकला तो एक भिखारी मेरे सामने आया और जैसे ही मुझे दिखा तो मैं समझ गया वो भिखारी है. मैंने उसको कहा तुरन्त बगल हटो, हम भीख नहीं देंगे. तो उसने बोला, नहीं साहब मैं भीख मांगने नहीं आया हूं, मैं भीखारी हूं. लेकिन आज भीख मांगने नहीं आया हूं, यहां मैंने सुना कि अभी लड़ाई चल रही है, उसके लिए पैसा जमा हो रहा है, हां जमा हो गया है और उन्होंने दे भी दिया है. उसने कहा तीन दिन मैंने भी भीख मांगकर पैसा जमा किया है, मुझे भी देना है. यह जो वापस देने की बात है, वो अपनी सम्पन्नता में नहीं रहती. वो अपनी भावना में रहती है, इमोशन में. यह इमोशन यहां पर काम करता है, नहीं तो आसान है, किसी बड़े फाउंडेशन को ऐसे काम चला लेना, उसका समारोह करना, यह आसान है. लेकिन यहां ऐसा नहीं है, यह भावना है, उस भावना के चलते 25 साल सतत् काम चल रहा है और उस काम को करते समय जैसे जो लाभार्थी है, उनको आत्म विश्वास और कुशलता मिलती है, वैसे प्रमाणिकता, संस्कार, और दायित्वबोध भी मिलता है, आवश्यकता इसकी है. समाज में जब तक अभाव रहेगा, अभावग्रस्तों का अभाव दूर करने वाले कार्यकर्ता भी रहेंगे, कारपोरेट्स भी रहेंगे, अन्य लोग भी रहेंगे.
अपने समाज के बांधवों का दुःख दर्द समझकर, अपना समय उनके लिए देने वाले, धन देने वाले लोग हैं अपने देश में, क्योंकि यह पहले से हमारा मूल्य है और इसलिए बहुत मात्रा में वो संवेदना हमारे यहां मिलती है. अभी ट्विटर पर एक मैसेज घूम रहा है, वो टैक्सास में बड़ा तूफान आया, तो वहां ह्यूस्टन, बोस्टन तीन-चार शहरों में रात में कफ्र्यू लगाना पड़ा. लूटमार हो रही थी, दुकानें लूटी जा रहीं थीं, सुनसान रास्ते, सुनसान घर, अंदर लोग घुस रहे थे और वस्तुएं उठाकर ले जा रहे थे. यह समाचार जब आया, तब श्रीमान महेन्द्र फांउडेशन वाले उन्होंने ट्वीट किया कि ‘यह मैंने पढ़ा और अभी-अभी कुछ देर पहले, मुंबई में भी उस समय बहुत वर्षा थी, जाना-आना बंद हो गया था, तो एयरपोर्ट से मेरे फ्रांसीसी मित्र का संदेश आया कि मेरी फ्लाइट पहले ही आ गई. लेकिन पांच घंटे से एयरपोर्ट पर हूं, मैं देख रहा हूं कि एयरपोर्ट के पीछे वाली झोपड़पट्टी से लोग आकर उनके लिए खाना, पानी, चाय इसका इंतजाम कर रहे हैं. यह हमारा देश है. इसमें यह काम करने वाले लोग हमेशा मिलेंगे. लेकिन यह काम हमको क्यों करना चाहिए ?
मराठी में एक बड़ी सुंदर कविता है, सुमात्रा नामक एक बड़े सुप्रसिद्ध कवि हो गए, उन्होंने लिखी है. ये काम करने वाले लोग हमारे देश में हैं और हम करते रहेंगे. हमारे देश में वह स्वर्णिम समय आ जाए, जब हमारे यहां किसी को इसकी जरूरत नहीं रहेगी. तब हम दुनिया में देंगे. दुनिया को देते हैं, हम देने वाले हैं, देते रहेंगे. आज हमारे देश में भी अपने ही भाइयों को लेने की जरूरत पड़ रही है.
तो सुमात्रा जी लिखते हैं, मराठी में है, मैं हिन्दी बताता हूं, जैसे भाषण कर सकता हूं वैसे बताता हूं, वो कहते हे कि – ‘देने वाला देता जाए, लेने वाला लेता जाए, लेते-लेते लेने वाले ने देने वाले के हाथ ले लेकर, जो लेने वाला है वो देने वाले के हाथ लेता है और देने वाला बन जाता है. इस दृष्टि से यहां जो काम मैं देख रहा हूं, जिस भावना से और जिस कार्य क्षमता के साथ चल रहा है, उसके लिए जीएमआर ग्रुप और वरलक्ष्मी फाउंडेशन के छोटे से छोटे कार्यकर्ता से लेकर जीएम और उनके परिवार तक सबका मैं अत्यंत आनंदित अंतःकरण से अभिनंदन करता हूं और शुभकामना देता हूं, इस फाउंडेशन में आकर लाभ लेने वाले लाभार्थी कल जैसी और जितनी उनकी उस समय की क्षमता होगी, वैसा उतने देने वाले बन जाएं.
आपने जो स्किल सिखाया वो कभी नहीं भूलेंगे, यह बात सही है. आपने जो संस्कार सिखाया है और आप जो दायित्व बोध अपने प्रयास से उनमें भरने का प्रयास कर रहे हैं, वो भी उनके जीवन में उनको सदा स्मरण रहे और वे भी छोटे-मोटे देने वाले बन जाएं.
और एक सुझाव है छोटा सा, थोड़ा अधिक व्यापक विचार करते हुए, अभी यहां बिलकुल ठीक नीति है कि कुशलता इसलिए सिखानी है कि वह अपने हाथ से कुछ काम करें और कमाएं. उस दृष्टि से जो चल रहा है वो बिलकुल ठीक है. लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि अगर एक व्यक्ति यदि दो तीन प्रकार की स्किल सीखे तो उसका जीवन भी अधिक सम्पन्न बनेगा, उसको अवसर भी अधिक ज्यादा मिलेगा. क्योंकि अनेक क्षेत्रों में नौकरियां पूरी हो जाती हैं, फिर दस एक साल कोई किसी को नौकरी नहीं दे सकता, फिर खाली होता है, ऐसे चलता रहता है. आदमी जितने हुनर सीखे उतना उसका लाभ है. भाषा और कुशलता जितनी ज्यादा आप सीखेंगे, उतना लाभ होगा. उस दृष्टि से क्या जिनकी इच्छा है उनको, जिनको आज तुरंत काम की जरूरत है वो एक स्किल सीखेंगे और फिर अपना रोजगार कमाएंगे. और बिलकुल ठीक बात है, परन्तु वहां कमाई होने के बाद यदि समय मिलता है तो अथवा अभी अगर अवसर है तो, कुछ और अगर स्किल्स वो अगर सीखना चाहे तो उसके सीखने की क्या व्यवस्था हो सकती है, इसको एकदम आगे 26वें साल में करना ऐसा नहीं, दो-तीन वर्ष अच्छी तरह देखते हुए और इसको अगर आप अम्ल में लाएंगे तो हम जिन लोगों के लिए काम कर रहे हैं, उनका सामर्थ्य और ज्यादा बढ़ाने में उनकी सहायता होगी. एक यह सुझाव रखता हूं और फिर एक बार मेरी शुभकामनाओं को दोहराता हुआ और मुझे यह सारा देखने का सुअवसर आपने दिया, इसके लिए आप सबका धन्यवाद करता हुआ, मेरे चार शब्द समाप्त करता हूं.
Tuesday, September 19, 2017
सेवा संगम में सेवा संस्थाओं ने एक मंच पर विचार – विमर्श किया
Tuesday, September 19, 2017
सेवा संगम में सेवा संस्थाओं ने एक मंच पर विचार – विमर्श किया
शिमला (विसंकें). हिमाचल प्रदेश में सेवा से जुड़ी विभिन्न संस्थाएं काम कर रही हैं, लेकिन सभी की दिशा और लक्ष्य अलग-अलग रहते हैं. इनमें आपसी तालमेल बढ़ाने, एक दूसरे के विषयों के बारे में जानने और अपने ज्ञान विस्तार द्वारा आने वाली चुनौतियों को दूर करने के लिए सेवा भारती ने सेवा संगम का आयोजन किया. सेवा संगम के आयोजन का उद्देश्य संस्थाओं को विचार – विमर्श के लिए एक मंच प्रदान करना था. हिमाचल प्रदेश के ज्वालामुखी में आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन के लिये प्रदेश की 107 सेवा संस्थाओं से संपर्क किया गया, जिसमें से 103 पंजीकृत (सेवा संगम के लिये) संस्थाओं के 200 प्रतिनिधियों ने सम्मेलन में भाग लिया. इसमें 9 जिलों के प्रतिनिधि सम्मिलित रहे, 26 महिला प्रतिनिधियों ने विशेष रूप से भागीदारी निभायी.
सम्मेलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह सेवा प्रमुख राजकुमार जी ने कहा कि सेवा ईश्वर की सबसे बड़ी पूजा है (नर सेवा, नारायण सेवा), सेवा करने से मानवता की सच्ची सेवा होती है और परमात्मा सेवा करने वाले को अपना सच्चा भक्त स्वीकार करते हैं. सेवा कार्यों के कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिष्ठा विश्व स्तर पर पहुंची है. उन्होंने कहा कि सेवा के विविध आयामों में कार्यरत सेवाव्रती लोगों को आपस में मिलजुल कर सेवा कार्य में आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए काम करने की आवश्यकता है. अगर सेवाव्रती संगठन के रूप में कार्य करें तो इससे उनके ज्ञान में विस्तार के साथ लोगों को इसका भरपूर लाभ मिलेगा. सम्मेलन में सभी संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने मिलकर तय किया कि हम सभी वर्ष में एक बार स्वास्थ्य, शिक्षा और पर्यावरण पर मिलकर सामूहिक चिंतन कार्यक्रम आयोजित करेंगे. कार्यक्रम में राष्ट्रीय सेवा भारती के अधिकारियों का मार्गदर्शन भी संस्थाओं ने लिया. कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में अखिल भारतीय सह सेवा प्रमुख तथा राष्ट्रीय सेवा भारती के न्यासी राकेश जैन, महन्त सूर्यनाथ और डॉ. रविंद्र ने अपने विचार रखे.
Monday, September 18, 2017
आपातकाल के दौरान लोकतंत्र सेनानियों का अभिनन्दन किया
Monday, September 18, 2017
आपातकाल के दौरान लोकतंत्र सेनानियों का अभिनन्दन किया
मेरठ (विसंकें). सन् 1975 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा घोषित आपातकाल के विरुद्ध संघर्ष में जेल जाने वाले एवं अनेक प्रकार की यातनाओं को सहने वाले कार्यकर्ताओं का ‘‘कार्यकर्ता मिलन’’ कार्यक्रम शंकर आश्रम शिवाजी मार्ग स्थित संघ कार्यालय में आयोजित किया गया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र संघचालक डॉ. दर्शन लाल अरोड़ा जी ने आपातकाल के अनुभवों को बताते हुए कहा कि 25 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा के साथ ही इंदिरा गांधी द्वारा राजनैतिक, वैचारिक विरोधियों तथा संगठनों के खिलाफ दमनचक्र चला दिया गया. देश में प्रजातांत्रिक मूल्यों व प्रावधानों को समाप्त कर दिया गया. आपालकालीन व्यवस्थाओं के विरुद्ध एक विशाल आंदोलन प्रारम्भ हुआ. जिसमें संघ ने प्रमुखता से भूमिका निभाई. संघ के प्रमुख अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया. अंत में संघ ने पूरे देश में सत्याग्रह करके गिरफ्तारी देने का निर्णय लिया. पूरे राष्ट्र में विशेष कर उत्तर भारत में लगभग 70,000 स्वयंसेवकों ने गिरफ्तारियां दी. लगभग सभी गिरफ्तारियां मीसा कानून के अन्तर्गत की गईं.
इस अवसर पर आपातकाल में जेल गए एवं अनेक प्रकार की यातनाओं को सहने वाले अनेक कार्यकर्ताओं द्वारा सुनाए अनुभव रोंगटे खड़े करने वाले थे. साथ ही उस समय की विषम एवं कठिन परिस्थितियों में जिस प्रकार उन सभी ने आपातकाल के विरुद्ध संघर्ष किया, वह प्रेरणादायी था. रविन्द्र न्यादर जी, हरिश्चन्द्र जन्मजेय चौहान जी, राजेन्द्र अग्रवाल जी, प्रदीप कंसल जी, वासुदेव शर्मा जी, अरुण वशिष्ठ जी, राजेश जी, राकेश जैन जी, रणजीत सिंह जी, सुधाकर जी, पदमाकर जी, अमरजीत जी, राकेश महाजन जी, सर्वेश नन्दन जी, रामभरोसे जी, महावीर रस्तौगी जी आदि लगभग 50आपातकालीन संघर्ष के नायकों ने अपने अनुभव साझा किये.
कार्यक्रम के मुख्यवक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य अशोक बेरी जी ने इस संघर्ष काल में संघ की भूमिका व योगदान का वर्णन करते हुए कहा कि आपातकाल के अत्याचारों के कारण पूरे देश में आतंक एवं निराशा फैल गयी थी. संघ ने सबसे पहले आपातकाल के सन्नाटे को तोड़ने का निश्चय किया. संघ ने अपनी रचना नगर, जिला, प्रान्त के अनुसार जनजागरण की योजना बनाई. समाज को आपातकाल तथा सरकार के अत्याचारों की जानकारी देने के लिये अनेक प्रकार के पत्र एवं पत्रिकाओं को गुप्त रूप से जन-जन तक पहुंचाया. संघ ने कार्यकर्ताओं और उनके परिवारों का मनोबल बना रहे, इसकी भी व्यवस्था की. आपातकाल तथा संघ पर प्रतिबंध के विरुद्ध संघर्ष में संघ यशस्वी बनकर उभरा और अंत में सरकार को आपातकाल हटाना पड़ा. कार्यक्रम में उपस्थित लोकतंत्र सेनानियों का अभिनन्दन भी किया गया. इस अवसर पर मुख्य वक्ता अशोक बेरी जी द्वारा 25 फरवरी, 2018 को होने वाले विशाल राष्ट्रोदय कार्यक्रम की वेबसाइट का शुभारम्भ किया गया.
हम अपने कार्य पर ध्यान देंगे तो हमारा उत्साह बढ़ता जाएगा – डॉ. मोहन भागवत जी
Monday, September 18, 2017
हम अपने कार्य पर ध्यान देंगे तो हमारा उत्साह बढ़ता जाएगा – डॉ. मोहन भागवत जी
जयपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि हम अपने कार्य पर ध्यान देंगे तो हमारा उत्साह बढ़ता जाएगा. स्वयंसेवकों का आह्वान करते हुए कहा कि कार्य, कार्यकर्ता, कार्य यन्त्र को सम्भालने के लिए कार्यकर्त्ता प्रयास करें. कार्यकर्त्ता योजक, मित्र, प्रवासी, ध्येयनिष्ठा के गुणों की अपने अंदर निरंतर वृद्धि करता रहे. सरसंघचालक जी रविवार को केशव विद्यापीठ जामडोली में चल रहे खण्ड कार्यवाह अभ्यास वर्ग में स्वयंसेवकों को सम्बोधित कर रहे थे. उन्होंने चर्चा के दौरान स्वयंसेवकों के प्रश्नों के उत्तर भी दिये.
गौमाता पर पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए सरसंघचालक जी ने कहा कि गौ माता का संवर्धन हो, क्योंकि गाय हमारे लिए आर्थिक रुप से भी लाभकारी है. जो गाय के प्रति आस्था रखते हैं, वह गाय का पालन करते हैं. उनकी बहुत गहरी आस्था को चोट लगने के बावजूद भी हिंसा का मार्ग नहीं अपनाते हैं.
चीनी सामान का बहिष्कार व स्वदेशी के संबंध में प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि अपने आसपास जो भी गृह उद्योग, कुटीर उद्योग, लघु उद्योग से वस्तुएं बनती हैं, उनको उपयोग में लाना यह स्वदेशी का मूल मंत्र है. स्वदेशी से देश के बेरोजगारों को रोजगार मिलता है. स्वदेशी केवल वस्तुओं तक नहीं, अपितु मन में स्वदेश के गौरव का भाव प्रकट होना चाहिए.
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वाभिमान को आर्थिक दृष्टि से भी स्वावलंबी होना आवश्यक है. राष्ट्र को आर्थिक दृष्टि से स्वावलम्बी करने का अर्थ स्वदेशी वस्तुओं तक सीमित नहीं है. स्वदेशी का भाव अपने जीवन से भारतीयता के आचरण से प्रकट हो.
Sunday, September 17, 2017
संघ और संतों द्वारा चलाए जा रहे सेवा कार्यों पर चर्चा
Sunday, September 17, 2017
संघ और संतों द्वारा चलाए जा रहे सेवा कार्यों पर चर्चा
जयपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने राजस्थान प्रवास के दौरान शनिवार को संतों से भेंट कर, उनके द्वारा हिन्दू समाज के लिए चलाए जा रहे सेवाकार्यों के बारे में चर्चा की. संतों से संवाद के दौरान उन्होंने समाज के पीड़ित, वंचित और निर्धन व्यक्ति की सेवा पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि समाज में अभावग्रस्त बंधुओं के लिए सेवा कार्य अधिक कैसे बढ़ें, इस दिशा में हमें प्रयास करने होंगे. उन्होंने संतों द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न सेवा कार्यों हेतु उनके प्रयास की सराहना की.
संतों से मुलाकात……..
शनिवार सुबह 08 बजे से ही सरसंघचालक जी ने भारती भवन पर अलवर जिले के रामगढ़ में ओढ़ समाज के मध्य संस्कार व शिक्षा का प्रसार करने वाले संत बालकदास जी महाराज से भेंट की.
प्रातः 09 बजे अन्नक्षेत्र व चिकित्सा सेवा के लिए प्रसिद्ध सेवाकार्य चलाने वाले, सिंधी भाषी समाज के प्रेमप्रकाश आश्रम, अमरापुर स्थान के महंत पूज्य संत भगतप्रकाश जी महाराज व संत मंडली से भेंट की. जिसमें संतों से परिचय एवं बातचीत हुई. मुलाकात से पहले उन्होंने आश्रम में मंदिर व संत टेऊराम महाराज एवं संत सर्वानंद जी महाराज की समाधि के दर्शन भी किए.
सरसंघचालक जी के साथ क्षेत्र प्रचारक दुर्गादास जी, प्रांत संघचालक डॉ. रमेशचन्द्र जी, क्षेत्र संपर्क प्रमुख व प्रांत प्रचारक भी उपस्थित थे. सरसंघचालक जी लगभग 40 मिनट तक अमरापुर आश्रम में रहे, जहां सिंधी समाज के प्रमुख लोग उपस्थित थे. अमरापुर के मूल स्थान ‘सिंध’ पर भी चर्चा हुई.
इसी प्रकार सद्संस्कारी जीवन का संदेश देने वाले सलेमाबाद के संत निम्बार्क संप्रदाय के अखिल भारतीय पीठाधीश्वर पूज्य श्रीजी महाराज और सांगलिया पीठ के युवा संत पूज्य ओमदास जी, जो छात्रावास, गौशालाएं औषधालय और विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों का संचालन करते हैं, से भी भारती भवन में भेंट हुई.
संघ भी समाज में अनेक प्रकार के सेवा कार्य कर रहा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सेवा विभाग छोटे बाल संस्कार केंद्र से लेकर बड़े चिकित्सालय जैसे अनेक सेवा कार्यों का संचालन करता है. इस समय राजस्थान क्षे़त्र में स्वयंसेवकों द्वारा 1325 सेवा कार्य चलाए जा रहे हैं. इनमें शिक्षा के 577, स्वास्थ्य के 181, स्वावलम्बन के 128 और सामाजिक उत्थान के 439 सेवा कार्य चल रहे हैं. यह कार्य स्वयंसेवकों के माध्यम से समाज के सहयोग से सेवा बस्तियों में चलाए जा रहे हैं. ऐसे ही सेवा भारती द्वारा राजस्थान में सर्वजातीय सामूहिक विवाह का भी सफल आयोजन पिछले कई वर्षों से किया जा रहा है.
राजस्थान में स्वयंसेवकों द्वारा शहरी पिछड़े व ग्रामीण जनजाति क्षेत्रों में सेवा भारती, विश्व हिन्दू परिषद, विद्याभारती, वनवासी कल्याण परिषद, भारत विकास परिषद, राष्ट्रसेविका समिति, सीमाजन कल्याण समिति आदि के माध्यम से अनेक प्रकार के सेवा कार्य संचालित हो रहे हैं.
आज समाज में जाति एवं ऊंच नीच का भेद मिटाते हुए स्वयंसेवक अनेक स्थानों पर सामूहिक कन्या पूजन, सामाजिक समरसता यज्ञ, सर्वजातीय सामूहिक विवाह, सहभोज, मंदिरों में आयोजन, उत्सव, महापुरुषों की जयन्तियां आदि सामूहिक रूप से आयोजित कर रहे हैं.
Saturday, September 16, 2017
स्वस्थ समाज व सफल राष्ट्र के लिए सामाजिक समरसता प्रथम आवश्यकता – डॉ. मोहन भागवत जी
Saturday, September 16, 2017
स्वस्थ समाज व सफल राष्ट्र के लिए सामाजिक समरसता प्रथम आवश्यकता – डॉ. मोहन भागवत जी
जयपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि हमारे समाज में विद्यमान सभी प्रकार के भेदभाव को निर्मूल करते हुए समरसता के निर्माण में संलग्न हों, स्वस्थ समाज व सफल राष्ट्र के लिए सामाजिक समरसता प्रथम आवश्यकता है. सरसंघचालक जी शुक्रवार को भारती भवन में राजस्थान क्षेत्र के प्रचारकों की बैठक को सम्बोधित कर रहे थे. बैठक में जिला, विभाग व प्रान्त स्तर के प्रचारक उपस्थित थे. इस समय राजस्थान में करीब 200 प्रचारक हैं.
उन्होंने कहा कि प्रचारक एक सामाजिक साधना का प्रकार है. प्रचारक को समाज में रहकर निर्लिप्त भाव से देश और समाज के हित के लिए कार्य करना होता है. संघ में प्रचारक वह होते हैं जो अपना घर-परिवार छोड़कर पूरी तरह से अपने आप को संघ कार्य में समर्पित कर देते हैं. जब तक वह प्रचारक है, तब तक उनको पूरा समय संघ की योजना के अनुसार बताए गए स्थान एवं कार्य में ही लगाते हैं. जो योजक का कार्य करके क्षेत्र में परिस्थितियों के अनुसार अपने को ढालकर सभी को साथ लेकर काम करते हैं. वह स्वयं का परिवार छोड़ समाज को ही अपना परिवार मानते हैं.
उन्होंने राजस्थान के वरिष्ठ प्रचारक रहे माननीय सोहन सिंह जी का उदाहरण देते हुए कहा कि प्रचारक यानि परिश्रम की पराकाष्ठा. कार्य की आवश्यकता अनुसार विविध संगठनों में भी प्रचारक भेजे जाते हैं जो वहां संगठन मंत्री कहलाते हैं. समाज और देश के लिए पूर्ण जीवन देने वाले स्वयंसेवक प्रारंभ में विस्तारक कहलाते हैं. दो वर्ष के बाद यदि वह निरंतर समय देना जारी रखते हैं, तब वह प्रचारक कहलाते हैं. कोई भी स्वयंसेवक विस्तारक, प्रचारक तब बन सकता है, जब वह अपना अध्ययन पूर्ण कर चुका हो.
डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि कार्य विस्तार के साथ कार्य का दृढ़ीकरण होना चाहिए, दृढ़ीकरण यानि टोली, प्रत्येक स्तर पर टोली बने, टोली सभी प्रकार के कार्यों का समग्रता के साथ चिंतन कर निर्णय करे, प्रचारकों को कार्य की दृढ़ता व इस हेतु टोली निर्माण पर ध्यान देना चाहिए. उन्होंने हनुमान जी का उदाहरण देकर बताया कि विवेकशीलता बढ़नी चाहिए. उन्होंने दृढीकरण़ का अर्थ बताते हुए कहा कि जो नीचे के दो स्थानों का, रक्षण, पोषण व संरक्षण कर सके.
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