पू. सरसंघचालक मा. मोहन भागवत् जी का अलाहाबाद उच्च न्यायालय के अयोध्या निर्णय पर वक्तव्य
श्रीरामजन्मभूमि को लेकर चलते आए न्यायिक विवाद में अलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दि. 30 सितम्बर 2010 को घोषित निर्णय से मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम तथा उनकी जन्मभूमि अयोध्या के प्रति भारत के जनमानस की सनातन आस्था को अनुमोदित व सम्मानित किया है। इसलिए निर्णयकर्ता न्यायाधीशोंका, न्यायिक प्रक्रिया में सहभागी अधिवक्ताओं का, श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन का नेतृत्व करनेवाले सभी संतों का, आंदोलन करनेवाली जनता सहित सभी सहयोगियों का हम हार्दिक अभिनन्दन करते है। उस आस्था की प्रतिष्ठापना के लिए चले श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन में अपने प्राणों का बलिदान देनेवाले कोठारी बंधुओं जैसे सभी कारसेवकों की पवित्र व तेजस्वी स्मृति में हम अपनी श्रद्धावनत आदरांजलि अर्पण करते हैं।
मंदिर का निर्माण इस देष की पहचान, अस्मिता, स्वातंत्र्याकांक्षा तथा विजिगीषा का गौरव है। अपने इस भारतवर्ष की सनातन, सर्वसमावेशक, सबके प्रति आत्मीय व सहिष्णु संस्कृति के आचरण की मर्यादा के मानक श्रीराम है। मंदिर निर्माण का आंदोलन किसी वर्गविशेष के विरोध अथवा प्रतिक्रिया में नहीं है।
अतएव रामजन्मभूमि पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के भव्य मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया का मार्ग प्रशस्त करनेवाले न्यायालय के इस निर्णय को समाज के किसी वर्ग की विजय अथवा पराजय के रूप में नही देखा जाना चाहिए। अपने हर्श को संयमित, शान्तिपूर्ण, विधि व संविधान की मर्यादा में ही, अकारण उत्तेजना से बचते हुए समझदारी से व्यक्त करना चाहिए। राष्ट्रीय संस्कृति की सहिष्णुता व सर्वसमावेशकता की प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए, पुरानी घटनाओंको भूलकर, एक भव्य व पवित्र लक्ष्य के आधारपर, अनेक भौगोलिक, भाशिक व पांथिक विविधताओंसे सुशोभित अपने समाज को एकात्मता व मर्यादा के दृढ सूत्र में गूँथकर भेदरहित बनाने का यह अवसर मिला हें। इसीलिये इस अवसर पर इस देश के मुसलमानोंसहित अपने समाज के सभी वर्गोको हमारा हार्दिक तथा आत्मीयतापूर्ण आवाहन हैं कि गत दषकों में चले अनेक विवादों की कटुता, हृदयोंकी विषमता व असहजता को भूलकर न्यायालय के निर्णय का स्वागत करते हुए श्रीरामजन्मभूमिपर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के भव्य मंदिर के निर्माण की संवैधानिक व व्यावहारिक व्यवस्थाएँ निर्माण करने के अभियान में मिलजुलकर सहयोगी बने।
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