इंदौर. हिंदुओं के आचरण और व्यवहार पर जोर देते हुये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने हिन्दू समाज को श्रेष्ठ और निर्भय बनने का आह्वान किया. वे माँ नर्मदा हिन्दू संगम को सम्बोधित कर रहे थे. इस दौरान अनेक साधू-संत व्यासपीठ पर विराजमान थे. सरसंघचालक जी ने विशाल जनसमूह को आपसी भेदभाव को दूर कर आदर्श हिन्दू समाज बनाने का संकल्प लेने का आह्वान किया.
उन्होंने कहा कि एक अच्छे समाज में आपसी भेदभाव नहीं होता, यह उसकी विशेषता होती है. इसलिये हमारे हिन्दू समाज में जो भेदभाव है उसे दूर करना होगा. तब हमारा समाज संगठित होगा, और वह निर्भय और बल संपन्न बनेगा. हिन्दू समाज कैसा हो यह हमारे आचरण पर निर्भर करता है, इसलिए अपने अन्दर की बुराइयों को दूर करते हुये रोज अपने में सुधार करना होगा.
आचरण की शुद्धता पर जोर देते हुये उन्होंने कहा कि पंथ, मंत्र और ग्रंथ तीनों की विरासत हमारे पास है. संतगण इस विरासत को जन सामान्य तक पहुंचाते हैं. सामान्य जनता संतों के इन उपदेशों को अपने आचरण में ढाले. हमारे देश में बहुत विविधता है. हमारे देश में 3800 बोली-भाषाएं हैं, हजारों प्रकार के व्यंजन हैं, अनेकों देवी-देवता हैं, अनेक प्रकार की पूजा-पद्धति है, फिर भी हम एक हैं. हमारी संस्कृति एक है. हम अनेक देवी-देवताओं में उस एक परमात्मा का दर्शन करते हैं. कहा गया है कि, “जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी.” व्यक्ति अपने स्वभाव और पसंद के अनुसार अपने इष्ट का चयन करता है. जो शक्ति का उपासक है वह हनुमान की पूजा करता है, किसी को बांसुरी का स्वर पसंद है तो वह भगवान श्री कृष्ण की पूजा करता है. सरसंघचालक जी ने इस बात पर बल देते हुये कहा कि इसका मतलब यह नहीं कि कोई हिन्दू दूसरे सम्प्रदायों में चला जाये. हम ऐसा नहीं होने देंगे. हमें अपने में रहकर अपने आचरण से सारी दुनिया को बता देंगे कि हिन्दू समाज, हिन्दू धर्म और हिन्दू संस्कृति किस तरह श्रेष्ठ है. हिन्दू राष्ट्र होने के नाते भारत को गौरवशाली राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित करने का दायित्व हम सभी हिंदुओं का है. हमें इसके लिए संगठित होना होगा. यह तभी संभव है, जब हम अपने संतों के उपदेशों को धारण करेंगे.
सरसंघचालक जी ने कहा कि सारी दुनिया में सुख प्राप्ति के लिये अनेक प्रयोग हुये. सुख प्राप्ति के लिये अनेकों देशों के कई लोग रणपति, धनपति और बलशाली बनें, पर सुख नहीं मिला. सुख-सुविधा के खातिर विज्ञान ने तेजी से प्रगति की, इसके लिये अनेक वैज्ञानिक प्रयोग हुये. इन प्रयोगों ने प्रकृति का बहुत नुकसान किया. समस्याएं और बढ़ गईं. उन्होंने कहा कि भारत में भी वैज्ञानिक प्रयोग प्राचीन काल से होता आया है, हमारे देश ने दुनिया को शून्य और दशमलव दिया. पर इससे कभी प्रकृति या समाज पर संकट नहीं आया, क्योंकि भारत अपने सुख-सुविधा के लिये प्रकृति को संकट में नहीं डालता. हमारी संस्कृति धरती से आसमान तक और सारी दुनिया को अपना कुटुंब मानती है. ऐसी व्यावहारिक और सबको प्रेरित करनेवाली आध्यात्मिक सन्देश हमारे हिन्दू धर्म के पास है. इसलिये सारी दुनिया बड़ी आशा से भारत की ओर निहार रही है. ऐसे में हमें अधिक सजग, सक्षम और सामर्थ्यशाली बनाना होगा. आदर्श हिन्दू समाज खड़ा करके ही भारत का गौरव बढ़ाया जा सकता है.
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