नागौर, जोधपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (नागौर) की बैठक में प्रस्ताव पारित कर समाज से प्रतिदिन के जीवन में समरसतापूर्ण व्यवहार करने का आग्रह किया गया. साथ ही सभी पूज्य संतों, प्रवचनकारों, विद्वज्जनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से विनम्र अनुरोध किया कि इस हेतु समाज प्रबोधन में वे भी अपना सक्रिय योगदान दें.
प्रस्ताव क्रमांक तीन
भारत एक प्राचीन राष्ट्र है और इसकी चिन्तन परम्परा भी अति प्राचीन है. हमारी अनुभूत मान्यता है कि चराचर सृष्टि का निर्माण एक ही तत्व से हुआ है और प्राणिमात्र में उसी तत्व का वास है. सभी मनुष्य समान हैं, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य में वही ईश्वरीय तत्व समान रूप से व्याप्त है. इस सत्य को ऋषियों, मुनियों, गुरुओं, संतगणों तथा समाज सुधारकों ने अपने अनुभव एवं आचरण के आधार पर पुष्ट किया है.
जब-जब इस श्रेष्ठ चिन्तन के आधार पर हमारी सामाजिक व्यवस्थाएँ तथा दैनन्दिन आचरण बना रहा तब-तब भारत एकात्म, समृद्ध और अजेय राष्ट्र रहा. जब इस श्रेष्ठ जीवन दर्शन का हमारे व्यवहार में क्षरण हुआ, तब समाज का पतन हुआ, जाति के आधार पर ऊँच-नीच की भावना बढ़ी तथा अस्पृश्यता जैसी अमानवीय कुप्रथा का निर्माण हुआ.
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने दैनन्दिन जीवन में व्यक्तिगत, पारिवारिक तथा सामाजिक स्तर पर अपने इस सनातन और शाश्वत जीवन दर्शन के अनुरूप समरसतापूर्ण आचरण करना चाहिए. ऐसे आचरण से ही समाज से जाति भेद, अस्पृश्यता तथा परस्पर अविश्वास का वातावरण समाप्त होगा एवं तभी हम सब शोषणमुक्त, एकात्म और समरस जीवन का अनुभव कर सकेंगे.
राष्ट्र की शक्ति समाज में और समाज की शक्ति एकात्मता, समरसता का भाव व आचरण और बंधुत्व में ही निहित है. इसका निर्माण करने का सामथ्र्य अपने सनातन दर्शन में है. ‘‘आत्मवत् सर्व भूतेषु’’ (सभी प्राणियों को अपने समान मानना) ‘‘अद्वेष्टा सर्वभूतानां’’ (सभी प्राणियों के साथ द्वेषरहित रहना) तथा ‘एक नूर ते सब जग उपज्या, कौण भले, कौ मन्दे’ (एक तेज से पूरे जग का निर्माण हुआ तो कौन बड़ा और कौन छोटा) के अनुसार सबके साथ आत्मीयता, सम्मान एवं समता का व्यवहार होना चाहिए. समाज जीवन सें भेदभाव पूर्ण व्यवहार तथा अस्पृश्यता जैसी कुप्रथा जड़ मूल से समाप्त होनी चाहिए. समाज जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए समाज की सभी धार्मिक एवं सामाजिक संस्थाओं को इसी दिशा में कार्यरत होना चाहिए, यह महती आवश्यकता है.
सनातन काल से समाज जीवन की आदर्श स्थिति का समग्र विचार राष्ट्र के सामने रखते समय अनेक महापुरूषों एवं समाज सुधारको ने समतायुक्त व शोषणमुक्त समाज निर्मिति के लिए व्यक्तिगत तथा सामूहिक आचरण में देश, काल, परिस्थिति सुसंगत परिवर्तन लाने पर बल दिया है. उनका जीवन, जीवनदर्शन और कार्य समाज के लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत रहा है.
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा सभी पूज्य संतों, प्रवचनकारों, विद्वज्जनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से विनम्र अनुरोध करती है कि इस हेतु समाज प्रबोधन में वे भी अपना सक्रिय योगदान दें. अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा स्वयंसेवकों सहित सभी नागरिकों से समरसता के अनुरूप व्यवहार करने का तथा सभी धार्मिक एवं सामाजिक संगठनों से समरसता का भाव सुदृढ़ करने के हर संभव प्रयास करने का आग्रह करती है.
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