नई दिल्ली. भारतीय इतिहस अनुसंधान परिषद के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. लोकेश चंद्रा ने देश के प्रबुद्ध वर्ग को सावधान किया है कि पिछले दो सौ वर्षों से विश्व के यूरोपीकरण के प्रयासों के बाद अब विश्व के अमेरिकीकरण के प्रयास भारत से प्रारम्भ किये जा रहे हैं.
विख्यात चिंतक और अर्थशास्त्री डॉ. बजरंगलाल गुप्ता ने कहा कि पश्चिम के बौद्धिक आतंकवाद के भय से मुक्त होने का समय आ गया है. उन्होंने कहा, “उन सभी वैचारिक पक्षों पर चर्चा अवश्य करनी चाहिये जो चर्चा करने योग्य हैं, लेकिन बिना किसी पूर्वाग्रह के. बौद्धिक प्रतिभा के धनी लोग धन या शक्ति के दास नहीं हो सकते”. श्री गुप्ता ने कहा कि देश अभी तक प्रथकता के ‘पैराडाइम’ पर चल रहा था,लेकिन अब हमें ‘इंटीग्रल पैराडाइम’ पर चलने की आवश्कता है, जहां पर सार्वभौमिक दृष्टिकोण चाहिये. हमने नेहरूवादी अर्थव्यवस्था, डबल्यू.टी.ओ. मॉडल और मनमोहन सिंह की अर्थव्यवस्था देखी हैं. लेकिन इनमें स्थायित्व नहीं है.
उन्होंने कहा कि देश अभी तक यह नहीं समझ पाया है कि पश्चिम के देश भारत की दुर्बलताओं को तो उजागर करते हैं, लेकिन किसी भी क्षेत्र की समृद्धि को छिपा जाते हैं. श्री सिद्दीकी ने कहा,” हमें अंतरराष्ट्रीय सहयोग से कोई परेशानी नहीं है. लेकिन हमें अपनी भाषा, संस्कृति साहित्य और अपनी पहचान बचाकर रखनी चाहिये.”
भारत नीति प्रतिष्ठान के मानद निदेशक प्रो. राकेश सिन्हा का कहना था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के विरोधी पहले विरोये के लिये कठिन मेहनत करते थे, लेकिन अब बौद्धिक आलस्य के कारण सिर्फ विरोधियों को गाली देना ही उनका काम रह गया है. हिन्दू और जनसत्ता जैसे अखबारों ने हाल के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा को वोट न देने की अपील भी अपने समाचारपत्रों में प्रकाशित की. इसी तरह से न्यूयॉर्क टाइम्स की एक 19 सदस्यीय संपादकीय समूह ने तत्कालीन भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार श्री नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध अनर्गल संपादकीय भी प्रकाशित किया.
वरिष्ठ पत्रकार और द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के सम्पादकीय निदेशक श्री प्रभु चावला ने कहा कि दोनों प्रबंध पुस्तिकाओं में प्रकाशित गहन शोध से स्पष्ट है कि भारतीयों की मानसिकता में बदलाव आया है और उन्होंने इन सभी बुद्धिजीवियों को नकार दिया है. श्री चावला ने पश्चिम के बौद्धिक बोझ से स्वयं को मुक्त करने का आह्वान करते हुए कहा कि इस बात की परवाह की कोई आवश्यकता नहीं है कि वे हमारा समर्थन करते हैं अथवा विरोध करते हैं. हमारा दायित्व अपने समाज, धर्म और सभ्यता की रक्षा और उसका संवर्धन है.
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