Thursday, November 14, 2013

जवाहरलाल नेहरूके कारण हुई भारतीयोंकी हानि !

November 14, 2013    
कार्तिक शुक्ल १२ , कलियुग वर्ष ५११५

पंडित जवाहरलाल नेहरूके जन्मदिवसके निमित्त...

 

१. भारतीयोंके दुर्दैवके कारण नेहरू प्रधानमंत्री बने !

अंग्रेजी संस्कृतिसे विलक्षण प्रभावित तथा अंग्रेजी संस्कृतिके उपासक नेहरूजी हमारे भारतीयोंके दुर्दैवसे प्रधानमंत्री हुए एवं हिंदुओंके साथ धोखा हुआ । ब्रिटिश संस्कृतिके विषयमें अत्यधिक सम्मान रखनेवाले एवं साम्यवादसे प्रभावित नेहरूने हमारे मनोबलको छलनी किया एवं हम उसमें पूरी तरह डूब गए / समा गए ।

२. नेहरूजीने पराजित मनोवृत्तिका संवर्धन कर भारतीयोंकी प्रजाहानि की !

इस अधार्मिक व्यक्तिने (नेहरूने) क्या अनर्थ किया है, देखें ! नेहरूने पराजित मनोवृत्तिका संवर्धन किया, जो हमारी संस्कृतिके विषयमें हीन भावना संजोनेके लिए कारणभूत हुआ । हमारी प्रजाहानि की । अंग्रेजी संस्कृतिके दास नेहरूने हमारी परम वैभवशाली एवं श्रेष्ठ संस्कृतिका परम श्रेष्ठ संस्कृतिके वारिसका, हमारा अभिमान, हमारी ज्वलंत राष्ट्रनिष्ठा एवं तेजस्वी परंपरा सुनियोजित रूपसे समाप्त की । हमें दुर्बल बनाया; इसीलिए हाथ आगे कर जिनकी गर्दन सहजतासे मोडी जा सके ऐसे बांगलादेश, पाकिस्तान एवं श्रीलंका समान छोटेसे राष्ट्र भी हमें धमका रहे हैं !

३. भारतीय सैन्यमें युद्धकौशल्यकी क्षमता नहीं है, तो भी चलेगा; परंतु उन्हें ब्रिटिश समान आचरण करना चाहिए, ऐसी मानसिकतावाले धर्मद्रोही नेहरू !

भारतीय सैन्यमें युद्धकौशल्यकी क्षमता एवं अपना काम अच्छेसे करनेका कर्तृत्व नहीं है, तो भी चलेगा; परंतु उनको ब्रिटिश समान आचरण (मद्यपान, बॉलडान्स, पश्चिमी संगीतके विषयमें अनोखा सम्मान इत्यादि ) के अनुसार रहना चाहिए, नेहरूने ऐसी कठोरता की । भारतीयताके विषयमें, भारतीय संस्कृतिके विषयमें लज्जा प्रतीत हो, ऐसी मनोभूमिका आत्मसात करनेका अथक प्रयास किया । नेहरूकी राजनीतिक नीति साम्यवादी प्रणालीका अनुकरण करनेवाली एवं अंग्रेजी संस्कृतिका अनुसरण करनेवाली थी । इसलिए हमारी सैनिक शिक्षाको विकृत मोड मिला ।

४. नेहरूद्वारा सुभाषबाबूकी आजाद हिंदसेनाके अधिकारियोंको भारतीय सेनामें सम्मिलित न करना

नेहरूजीको ऐसा कभी नहीं प्रतीत हुआ कि बडी राज्यक्रांति होकर स्वतंत्रता मिली है । वे मानते थे कि चुनावके पश्चात सरकार बदलने जैसी ही यह घटना है । क्या यह एक देशभक्तकी मानसिकता है ? उन्होंने सुभाषबाबूकी आजाद हिंदसेनाके अधिकारियोंको भारतीय सेनामें नहीं लिया । ऐसे नेहरूको हम देशद्रोही क्यों न मानें ? हे भगवन, नेहरूने हमारा सत्त्व तथा हमारी अस्मिता नष्ट करनेका प्रयास किया, तो भी तेरी कृपासे कुछ अंगारे अब भी एवं आज भी जल रहे हैं ।
- गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (संदर्भ : मासिक घनगर्जित, जून २०१३)

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