Sunday, October 14, 2012

सेक्युलेरिझम के विपरीत परिणाम महसूस कर रहा है व्हेटिकन


सेक्युलेरिझम के विपरीत परिणाम महसूस कर रहा है व्हेटिकन

Source: newsbharati      Date: 10/11/2012 2:02:19 PM
$img_titleविराग पाचपोर
न्यूजभारती : ११ अक्तूबर २०१२ : सेक्युलॅरिझम की संकल्पना के कारण ईसाई मूल्यों को निर्माण हो रहे खतरे से चिंतित १६ वे पोप बेनेडिक्ट ने दुनियाभर के रोमन कॅथोलिक चर्च के धर्मगुरुओं  की एक चिंतन बैठक व्हॅकिटन में ११ अक्तूबर को आयोजित की है. दूसरे व्हेटिकन कौन्सिल के ५० वे वर्धापन दिन समारोह के साथ हो रहे इस चिंतन बैठक में, बढते सेक्युलॅरिझम के खतरे से कैसे निपटा जाय और ईसाई मूल्यों के प्रति निष्ठा को कैसे बढावा मिले, इसपर सघन चर्चा अपेक्षित है.
‘चर्च को नकार चुके कॅथोलिकों’ की ‘घरवापसी’ के प्रयास करने का दुनिया के ईसाई धर्मगुरुओं को पोप का आवाहन, उनके खुद के संप्रदाय और निष्ठा को सेक्युलॅरिझम की संकल्पना के संभाव्य खतरे को अधोरेखित करता है; जो संकल्पना दुर्भाग्य से ईसाईयों ने खुद ही प्रचारित और प्रसारित की थी.
बताया जाता है कि, कॅथॉलिक  ईसाई धर्मसंप्रदाय के, नैतिकता और सदाचार के प्रस्थापित मूल्यों को सेक्युलॅरिझम की संकल्पना ने तहस-नहस कर दिया है. तलाक की बढ़ती संख्या ने विवाह संस्था को करीब-करीब ध्वस्त कर दिया है. परिवार टूट रहे है. वृद्धों की समस्याएँ बढ रही है. ‘एक पालक परिवारों’ (केवल माता या पिता) की जटिल समस्याएँ निर्माण हो रही है तथा समाज और परिवार को जोड रखने वाले मूल्य बिखर रहे है, ऐसा पोप का मानना है.
सेक्युलॅरिझम के बढ़ते प्रभाव का खतरा महसूस कर रहे पोप ने इसके पूर्व ही खेद व्यक्त करते हुए प्रतिपादित किया था कि, यूरोप और अमेरिका में कॅथोलिक मतावलंबी ईसाई धर्ममूल्यों का पालन नही कर रहे है. इतना ही नही, वे अपने बच्चों को भी इसकी शिक्षा-दीक्षा देना टाल रहे है. ईसाई धर्ममूल्यों के प्रति अनास्था के साथ-साथ सेक्युलॅरिझम के बढते प्रभाव के कारण पोप ने दुनिया के ऐसे सभी क्षेत्रों में, जहॉं कॅथोलिकिझम के प्रति अनास्था बढी हो, आस्था बढाने के अपने प्रयास तेज कर दिये थे.
अमेरिका और यूरोप में तेजी से घटती धर्मानुयायीयों की संख्या पर गंभीर विचार करने का आवाहन पोप ने, कॅथोलिक चर्च के २६२ धर्मगुरूं कीधर्मसभा (सायनोड) को, किया है. कॅथोलिकिझम के प्रति निष्ठा में बदलाव लाने वाली दूसरी व्हॅटिकन कौन्सिल (१९६२-६५) के अर्ध-शति वर्ष को ‘निष्ठा वर्ष’ (इयर ऑफ फेथ) घोषित करने के दिन ही,  कॅथोलिक चर्च के उच्च पदासीन श्रेष्ठ चिंतकों की यह तीन दिवसीय धर्मसभा आयोजित हो रही है, यह एक संयोग ही है.
‘व्हॅटिकन-२’ नाम से ख्यात इस कौन्सिल के, विद्यमान पोप बेनेडिक्ट (१६ वे) तज्ज्ञ माने जाते है. इस ‘व्हॅटिकन-२’ के दौरान अपने ‘तीव्र सुधारवादी स्वर’ के कारण वैश्‍विक ख्याती प्राप्त कर चुके विद्यमान पोप को, सेक्युलॅरिझम के बढते प्रवाह के कारण, २००५ में इस सर्वोच्च पद पर आसीन होने के बाद अपने  कार्यकाल का, ‘न्यू इव्हॅन्जिलिझम’ मुख्य विषय घोषित करने को बाध्य होना पडा था.
इसके पूर्व की ऐसी धर्मसभा विद्यमान पोप के पूर्वाधिकारी, पोप जॉन पॉल (६ वे) ने १९७४ में आयोजित की थी. तथापि, उस समय धर्मानुयायीयों में ‘निष्ठा का संभ्रम’ (क्रायसिस ऑफ फेथ) इतने गंभीर रूप में विद्यमान नही था, जो आज अनुभव हो रहा है.
ऐसी इस धर्मसभा के आयोजन की पुष्टि करते, भारत के एक ज्येष्ठ कॅथोलिक चर्च धर्मगुरु ने कहा कि, सेक्युलॅरिझम के बढते प्रभाव के चलते कॅथोलिक धर्ममतावलंबियों में गैर-ईसाईकरण के प्रभाव से पोप चिंतित है. कॅथोलिकिझम के तत्त्व और परंपराओं से दूर होते हुए यह ईसाई, शांती और आध्यात्मिक आनंद के लिए दूसरे धर्म की ओर मूड रहे है.
सेक्युलॅरिझम की यह लहर अगर अभी रोकी नही, तो वह ईसाई धर्मश्रद्धा को ध्वस्त कर देगी. इसलिए, इस समस्या पर समाधान खोजने हेतु, कॅथोलिक़ धर्मगुरुओं की तीन सप्ताह चलने वाली यह धर्मसभा गहराई से चिंतन और चर्चा करने जा रही है.

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