Sunday, October 14, 2012

चीन कर रहा नक्सलियों की मदद : मोहन भागवत

Source: VSK- JODHPUR      Date: 10/10/2012 3:09:56 PM
undefinedजमशेदपुर, १० अक्तूबर २०१२ :  चीन से भारत के दो हजार साल पुराने संबंध हैं। वह हमें सांस्कृतिक गुरु मानता है, लेकिन हमें चारों ओर से घेर रहा है। हमारे पड़ोसी देशों में भी प्रभाव बढ़ा रहा है। यह भी प्रमाण मिले हैं कि चीन यहां नक्सलियों की मदद कर रहा है। यह बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन मधुकर भागवत ने एग्रीको मैदान में कही।
वे यहां स्वयंसेवकों को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने पड़ोसी देशों के हालात और उनसे मिल रही चुनौतियों की जानकारी दी। एग्रीको मैदान में संघ की शाखा भी लगाई गई। डॉ. भागवत ने कहा कि पाकिस्तान अब युद्ध करने की हालत में नहीं है, लेकिन वहां के नेताओं की मानसिकता नहीं बदली है। देश के एक मंत्री ने संसद में कहा है कि पाकिस्तान से आए तीन लाख नागरिकों की वीजा की अवधि समाप्त हो चुकी है। वे कहां हैं? सरकार को पता नहीं है।
डॉ. भागवत ने कहा, वर्षों पहले अफगानिस्तान से बर्मा तक भारत अखंड राष्ट्र था। सिंधु नदी के किनारे होने के कारण पूरा विश्व इसे हिंदू राष्ट्र कहता था। भारत के टुकड़े होकर अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, तिब्बत, श्रीलंका, बर्मा जैसे देश बने। लेकिन, आज अलग हुए सारे देश दु:ख में हैं। आज भी हिंदुस्तान हिंदू राष्ट्र है। हमारी कुछ कमजोरियां हैं। उसे दूर कर लें, तो सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी।
बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान नहीं
 सर संघचालक ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान कर उनके नाम सरकारी कागजात से काटने का आदेश दिया है। लेकिन, अब तक किसी भी प्रदेश में घुसपैठियों की पहचान नहीं हुई है। बांग्लादेशी घुसपैठ से असम में परेशानी बढ़ी, तो उसका विरोध हुआ। अफसोस की बात यह है कि देश के अनेक हिस्से में विदेशियों के पक्ष में आवाजें उठीं और अपने देश के लोगों को असम लौटना पड़ गया। उन्होंने कहा कि सिर्फ असम ही नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड समेत अनेक राज्यों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या बढ़ रही है। झारखंड के पाकुड़ और साहेबगंज में बांग्लादेशी लगातार बस रहे हैं। इससे देश में अशांति बढ़ेगी।

विश्व को बताएं जीने का रास्ता
 सरसंघचालक ने कहा कि तीस साल पहले स्कूल व कॉलेज में नामांकन कराना आसान था, अब कठिन है। बीस साल पूर्व मिलने वाले वेतन में गुजर-बसर आसान था। उन्होंने कहा कि पैसा के साथ भगवान भी मिले, इसका रास्ता सिर्फ भारत ही पूरी दुनिया को बता सकता है। भूतकाल में हमने ऐसा जीवन जीया है। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने किसी देश में घुसपैठ नहीं की, मत या पंथ में बदलाव नहीं किया, साम्राज्यवादी विस्तार नहीं किया, फिर भी भारतीय जीवन पद्धति में समृद्धि के साथ शांति थी। मैक्सिको से साइबेरिया तक भारत का नमन होता था। भविष्य में भी होगा।

हम वसुधैव कुटुंबकम् चाहते हैं, वल्र्ड ट्रेड नहीं
 "हमारे पूर्वजों ने वसुधैव कुटुंबकम् की सीख दी है। दूसरी ओर, विश्व के दूसरे देशों ने वल्र्ड ट्रेड बनाया है, जहां सौदेबाजी होती है। हमें ऐसा व्यापार नहीं करना चाहिए, जिससे देश को नुकसान हो। भारत विश्व गुरु बनने की ओर बढऩे लगेगा, तो समाज जाग जाएगा।"
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आदर्श बनें संघ के स्वयंसेवक : सरसंघचालक
जमशेदपुर, १० अक्तूबर २०१२ :  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघ चालक (राष्ट्रीय प्रमुख) मोहन राव भागवत शहर प्रवास के तीसरे दिन रविवार को एग्रिको मैदान पहुंचे, जहां उन्होंने शहर के लगभग दो हजार गणवेशधारी स्वयंसेवकों को संबोधित किया।

शाम चार बजे से हुई सभा में संघ प्रमुख ने देश-दुनिया की स्थिति पर चर्चा करते हुए कहा कि यह बौद्धिक सभा है, जिसमें लगभग वही बातें होती हैं जो स्वयंसेवक पहले भी सुन चुके होते हैं। इसके बावजूद वे यहां सुनने को नहीं, चिंतन करने आते हैं। आज से 20 साल पहले की स्थिति के बारे में सोचें, तब से आपका जीवन कितना बदला है। बहुत बदल गया है, समस्याएं बढ़ गई हैं, जीवन कठिन हो गया है। चाहे स्कूल में एडमिशन का मामला हो, घर चलाना हो या सुरक्षा का माहौल। आप महसूस करेंगे कि पहले इतनी समस्या नहीं थी। ऐसे में हम अपना जीवन ठीक से नहीं चला पा रहे, तो देश हित दूर की बात है। इसके बावजूद मेरा मानना है कि यदि हर आदमी अपने चरित्र व आचरण को सुधार ले तो देश अपने आप ठीक हो जाएगा। स्वयंसेवकों को समय और अनुशासन का पालन करने के साथ समाज में आदर्श चरित्र प्रस्तुत करना चाहिए, जिससे सामने वाला व्यक्ति आपके जैसा बनने की सोचे।

भारत आज भी हिंदू बहुल
भारत हमेशा से बाहरी देशों-दुश्मनों के आक्रमण-हमले से जूझता रहा है, लेकिन कोई इसका बाल भी बांका नहीं कर पाया। भारत आज भी हिंदू बहुल देश है। आज भी यहां के हिंदू अपनी परंपरा-संस्कृति का पालन करते हुए जीवन जी रहे हैं। अखंड भारत से बर्मा, भूटान, तिब्बत, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, अफगानिस्तान, पाकिस्तान आदि जो भी देश अलग हुए, वे दुख में हैं। हमारे देश को दुनिया ने हिंदुस्तान नाम इसलिए दिया, क्योंकि हम विशेष लोग हैं। हमारे अंदर बंधुत्व की भावना है। हम सभी का स्वागत करते हैं। किसी के धर्म-संस्कृति या परंपरा में हस्तक्षेप नहीं करते। हमलोग विविधता को समाप्त नहीं करते, बल्कि उनके साथ तालमेल बनाकर रहना जानते हैं। हमारे यहां पहले से यह परंपरा है। ग्लोबल विलेज बहुत छोटी चीज है। हिंदू जिस किसी देश में गए, वहां की धर्म-संस्कृति व परंपरा से छेड़छाड़ किए बिना अपने ज्ञान-कौशल से उस देश को समृद्ध ही किया। भागवत ने स्वयंसेवकों से कहा कि एकता का साक्षात्कार करना जीवन का लक्ष्य रखो। इस मातृभूमि के सुपुत्रों को यही सिखाया गया है कि सभी तुम्हारे बंधु हैं। कुछ लोग कहते हैं 'गर्व से कहो हम हिंदू हैं', यह गलत है। जब यहां रहने वाले सभी हिंदू हैं तो इसमें डींग मारने की बात कहां से आ गई।

79 में आए थे देवरस
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघ चालक मोहन भागवत से पहले बाला साहब देवरस यहां आए थे। देवरस ने 1979 में रीगल मैदान में सभा को संबोधित किया था, जबकि को-आपरेटिव कालेज में बैठक की थी। इनसे पहले केसी सुदर्शन 1994 में यहां आए थे, लेकिन तब वे संघ के बौद्धिक प्रमुख थे।
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