गोवर्धन। कंकड़-पत्थरों से पैरों में उभरे छालों ने कदम-कदम इम्तिहान लिया। सूर्य के प्रचंड तेवर बाधाएं डालने की कोशिश करते रहे, लेकिन श्रवण कुमार का रास्ता न रोक सके। बूंद-बूंद टपकते पसीने से एक इतिहास रचते हुए माता-पिता का ये भक्त अपने बूढ़े मां-बाप को कांधों पर लाद कर ब्रज भूमि में तीरथ कराने ले ही आया। माता-पिता गदगद थे और सभी की जुबां पर एक ही बात, धन्य है श्रवण कुमार।
यह त्रेता युग के श्रवण कुमार का प्रेरक प्रसंग नहीं। वह नजारा है, जो बुधवार को ब्रज चौरासी कोस के परिक्रमा मार्ग में हजारों श्रद्धालुओं ने देखा। फूलों से सजी बग्घी और उसमें बैठे बुजुर्ग दंपती, लेकिन बग्घी में घोड़े की जगह खुद एक युवक जुता था। यह थे गौतमबुद्ध नगर के गांव सुनपुरा के रहने वाले परशुराम, जो बग्घी से अपने मां-बाप को ब्रज चौरासी कोस की यात्रा कराने आए थे।
पेशे से टीवी मैकेनिक परशुराम ने बताया कि वह 2 मई को अपने गांव से निकले। सातवें दिन बुधवार को गोवर्धन पहुंच गए। परशुराम ने जागरण को बताया कि श्रवण कुमार को अपना आदर्श मानकर उन्होंने अपने माता-पिता को ब्रजयात्रा कराने का प्रण लिया। कांवड़ से तो ब्रज यात्रा नहीं करा पाए, लेकिन बग्घी में बैठाकर वह अपने माता-पिता की सेवा कर रहे हैं। क्या माता-पिता ने ऐसी इच्छा व्यक्त की थी? इस सवाल पर परशुराम ने बताया कि ऐसा कुछ नहीं था। हम तो अपनी मर्जी से ऐसा कर रहे हैं।
इससे पहले श्रवण ने सावन के महीने में माता-पिता को इसी प्रकार हरिद्वार की यात्रा भी करा चुके हैं। उन्होंने बताया कि गोवर्धन से वह मथुरा, वृंदावन, गोकुल, महावन आदि ब्रज चौरासी कोस के तीर्थ स्थलों की यात्रा अपने माता-पिता को कराकर वापस गांव जाएंगे। तीर्थ यात्रा पूरी होने के बाद उनका विचार श्रीमद् भागवत कथा कराने का है। उसके उपरांत भंडारा कर वह अपनी यात्रा का संकल्प पूरा करेंगे।
संकल्प में साथ चला परिवार :
परशुराम ने इस सेवा भाव में परिवार को भी शुमार किया है। पत्नी प्रेमदेवी और बच्चे जौनी व लवली भी साथ चल रहे हैं। परशुराम बग्घी खींचते रहते हैं और परिवार के सदस्य उन्हें कभी पानी पिलाते हैं तो कभी पसीना पौंछ कर पुण्य संकल्प में भागीदार बनते हैं।
कलियुग के श्रवण को सूर्य का
नमस्कार :
परशुराम अपनी माता संतोष देवी और पिता जगदीश को लेकर ब्रज चौरासी कोस की यात्रा पर निकले तो सूर्य देव को अपना हठ छोड़ना पड़ा। बुधवार को दोपहर में ऐसी छांव हो गई, जैसे सूर्यदेव परशुराम की माता-पिता के प्रति भक्ति को प्रणाम कर रहे हों। श्रीमद् भागवत को भी साथ लेकर चल रहे परशुराम कोकिला वन, नंदगांव और बरसाना होते हुए गिरिराज तलहटी आए।
बेटे को जन्म देकर धन्य हुए हम :
परशुराम की माता संतोष देवी और पिता जगदीश इस यात्रा के दौरान गदगद नजर आए। उनका कहना था कि वो अपने बेटे की भक्ति से गदगद हैं। ऐसे बेटे को जन्म देकर वो धन्य हो गए।
मां के लिए बनाया खास घड़ी :
मां की कमजोर होती नजर से दुखी बेटे ने अनोखा घड़ी तैयार किया है जिससे उसकी मां आसानी से समय देख सकें। उत्तर प्रदेश में सरकारी कर्मचारी के तौर पर कार्यरत फिरोजाबाद निवासी सुनील सक्सेना ने 54 इंच व्यास वाले एक घड़ी को डिजाइन किया है जिससे उनकी मां को समय देखने में सहूलियत हो सकें।
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