भारतीय जासूस जो पाक सेना की सीढ़ियां चढ़ता गया
Source: BBC Hindi Date: 06 May 2013 11:58:44 |
रेहान फ़ज़ल, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
पाकिस्तान में ज़िंदगी की जंग हारने वाले सरबजीत को लेकर भले ही ये विवाद हो कि वो भारत के जासूस थे या नहीं, लेकिन ये मामला जासूसी की रहस्यमयी दुनिया की तरफ ध्यान खींचता है।
जो जासूस सरकारों के लिए बेहद अहम जानकारी का जरिया होते हैं, उन्हें ही वो अक्सर नहीं स्वीकारती। हालांकि रवींद्र कौशिक जैसे जासूस फिर भी अपनी जान पर खेल इस काम को अंजाम देते हैं।
कौशिक की मौत भी पाकिस्तानी की ही एक जेल में हुई थी।
लेकिन मौत से पहले के उनके कारनामे किसी फ़िल्म से कहीं ज्यादा रोमांचक कहे जा सकते हैं।
रवींद्र कौशिक न सिर्फ भारत के लिए जासूसी करने पाकिस्तान गए बल्कि उन्होंने पाकिस्तानी सेना में मेजर तक का पद हासिल कर दिया। बताया जाता है कि पाकिस्तानी सेना में रहते हुए उन्होंने भारत को बहुत अहम जानकारियां दीं।
रॉ के कई पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों ने इस संवाददाता से नाम न बताने की शर्त पर इस बात की पुष्टि की है।
माना जाता है कि सलमान खान की फिल्म 'एक था टाइगर' रवींद्र कौशिक की ज़िंदगी से प्रेरित थी।
ये भी कहा जाता है कि तत्कालीन गृहमंत्री एस बी चव्हाण ने उन्हें 'ब्लैक टाइगर' का नाम दिया था।
'जांबाज जासूस'
राजस्थान के श्रीगंगानगर ज़िले के रहने वाले कौशिक ने 23 वर्ष की आयु में स्तानक की पढ़ाई करने के बाद ही भारतीय खुफ़िया एजेंसी रॉ में नौकरी शुरू की।
साल 1975 में कौशिक को भारतीय जासूस के तौर पर पाकिस्तान भेजा गया था और उन्हें नबी अहमद शेख़ का नाम दिया गया। पाकिस्तान पहुंच कर कौशिक ने कराची के लॉ कॉलेज में दाखिल लिया और कानून में स्नातक की डिग्री हासिल की।
जाने के पहले उनका खतना भी कराया गया था।
इसके बाद वो पाकिस्तानी सेना में शामिल हो गए और मेजर के रैंक तक पहुंच गए। लेकिन पाकिस्तान सेना को कभी ये अहसास ही नहीं हुआ कि उनके बीच एक भारतीय जासूस काम कर रहा है।
कौशिक को वहां एक पाकिस्तानी लड़की अमानत से प्यार भी हो गया। दोनों ने शादी कर ली और उनकी एक बेटी भी हुई।
कौशिक ने अपनी जिंदगी के 30 साल अपने घर और देश से बाहर गुजारे।
इस दौरान पाकिस्तान के हर कदम पर भारत भारी पड़ता था क्योंकि उसकी सभी योजनाओं की जानकारी कौशिक की ओर से भारतीय अधिकारियों को दे दी जाती थी।
कैसे खुला राज
लेकिन 1983 में कौशिक का राज खुल गया। दरअसल रॉ ने ही एक अन्य जासूस कौशिक से मिलने पाकिस्तान भेजा था जिसे पाकिस्तानी खुफ़िया एजेंसी ने पकड़ लिया।
पूछताछ के दौरान इस जासूस ने अपने इरादों के बारे में साफ़ साफ़ बता दिया और साथ ही कौशिक की पहचान को भी उजागर कर दिया।
हालांकि कौशिक वहां से भाग निकले और उन्होंने भारत से मदद मांगी, लेकिन भारत सरकार पर आरोप लगते हैं कि उसने उन्हें भारत लाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।
आखिरकार पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों ने कौशिक को पकड़ लिया और सियालकोट की जेल में डाल दिया। वहां न सिर्फ उनका शोषण किया गया बल्कि उन पर कई आरोपों में मुकदमा भी चला।
बताते हैं कि वहां रवींद्र कौशिक को लालच दिया गया कि अगर वो भारतीय सरकार से जुड़ी गोपनीय जानकारी दे दें तो उन्हें छोड़ दिया जाएगा। लेकिन कौशिक ने अपना मुंह नहीं खोला, पाकिस्तान में कौशिक को 1985 में मौत की सजा सुनाई गई जिसे बाद में उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया।
वो मियांवाली की जेल में रखे गए और 2001 में टीबी और दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई।
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