मुंबई. मुंबई के एक सिनेमा घर (मल्टीप्लेक्स) में कथित तौर पर एक परिवार द्वारा राष्ट्रगान के दौरान खड़े न होने के कारण अन्य कुछ दर्शकों ने आपत्ति जताई और उनकी आलोचना की. दर्शकों के साथ जब उस परिवार की कहा सुनी बढ़ने लगी तो बाद में उन्हें (उक्त परिवार को) सिनेमा घर से बिना फिल्म देखे ही बाहर का रुख करना पड़ा. घटना है मुंबई के कुर्ला स्थित पीवीआर मल्टीप्लेक्स की. जहां संभवतः नई फिल्म प्रदर्शित होने वाली थी. पूरी घटना के विवाद वाला अंश सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है, जिसमें कुछ रुष्ट दर्शकों ने राष्ट्रगान के लिए खड़े न होने वाले परिवार की खूब खिंचाई की और अंततः उन्हें बाहर जाना पड़ा. दर्शकों ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया.
क्या किसी जिम्मेदार नागरिक को राष्ट्रगान के समय खड़ा हो कर सम्मान नहीं करना चाहिए ? क्या किसी की नासमझी या गलतियों पर केवल इसीलिए पर्दा डाल देना चाहिए कि वह एक विशेष समुदाय से आता है? देश का सम्मान सर्वोपरि होता है और इसकी अनदेखी करना या अपमान करने पर वह व्यक्ति आलोचना के लायक है या नहीं, फिर वो भले ही किसी भी धर्म विशेष का क्यों न हो. कुछ राहत की बात यह जरूर रही कि सोशल मीडिया पर समाज के सभी वर्गों, लोगों ने घटनाक्रम पर एक सी राय रखी और राष्ट्रगान का अपमान करने वालों की एक आवाज से आलोचना की.
लेकिन कुछ प्रतिष्ठित समाचार एजेंसियों व वेबसाइटों ने खबर को पेश करने के लिए सनसनीखेज रिपोर्टिंग का सहारा लिया और धर्म सूचक शब्द का प्रयोग किया. शीर्षक में गैर जिम्मेदाराना ढंग से प्रकाशित किया गया कि ‘एक मुसलमान परिवार को राष्ट्रगान में खड़ा न होने के कारण लोगों ने सिनेमा घर से किया बाहर’. घटना भले जो भी हुई हो, लेकिन अधिक से अधिक लोगों तक पहुंच बनाने एवं सुर्खियां बटोरने की आड़ में कुछ समाचार एजेंसियां अक्सर इस तरह की घटिया करतूत करने से बाज नहीं आती और धर्म की बात को उछालने में मीडिया का विशेष (गैरजिम्मेदार) वर्ग हमेशा तत्पर रहने लगा है. वे इसकी भी चिंता नहीं करते कि ऐसा करके समाज को विभाजित करने का प्रयास कर रहे हैं.
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