Sunday, September 18, 2011

आतंक का नया ठिकाना कराची

आतंक का नया ठिकाना कराची
पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर में आतंकवाद और माफिया तत्वों के कारण जंगलराज कायम होता देख रहे हैं इब्राहीम कुंभर

पाकिस्तान के हालात 100 प्रतिशत सही होने की कोई उम्मीद दिखाई नहीं देती। आत्मघाती हमलों की खबरें पहले फलस्तीन और श्रीलंका से आती थीं। तब यह सोचा जाता था कि कैसे लोग दूसरों को मारने के लिए अपनी जान भी गंवा देते हैं। अब आत्मघाती हमले पाकिस्तान में आम बात हो चुके हैं। पाकिस्तान के हालात ऐसे बिगड़े कि लोगों की सोच भी बदल गई और जो बात वे किसी अन्य से समझना चाहते थे वह खुद ही समझ गए। जनता आत्मघाती हमलों की आदी हो चुकी है। अब तो बात इन आत्मघाती हमलों से काफी आगे निकल चुकी है। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि कोई कभी भी किसी की जान ले सकता है। जब चाहे किसी को पकड़ो, अपहरण करो और गला काटकर शव को बोरे में बंद कर किसी वीरान जगह पर छोड़ दो। पाकिस्तान का सबसे बड़ा शहर कराची गुजरे दो दशकों से बोरे में बंद लाशों के शहर से जाना जाता है। शहर में कोई नागरिक ग़ायब हो जाता है तो लोग रास्ते पर बोरा तलाश करते हैं कि शव इसमें से ही मिलना है। इस वक्त टारगेटेड मर्डर का दौर है। कोई इन घटनाओं को पूछने वाला नहीं है। अगर कोई रंगे हाथों पकड़ा भी गया तो वह भी छूट जाता है। पाकिस्तान के कानून में हत्यारे को रिहाई दिलाने की पूरी व्यवस्था है। कई हत्यारे अदालतों से आजाद हुए और उन्होंने फिर दर्जनों खून किए। सरकार इन हत्यारों के पीछे खड़ी होती है और यह सब कई सालों से होता चला आ रहा है। पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर में हजारों आतंकवादी और हत्यारे इस तरह रिहाई पा चुके हैं। पाकिस्तान के प्रांत सिंध की राजधानी कराची में 1977 की तानाशाही के बाद कभी भी हालात अच्छे नहीं रहे। वहां बढ़ते आतंकवाद और टारगेटेड मर्डर को बंद करने की कोशिश ही नहीं की जाती। हिंसा की वजह से गृहमंत्री रहमान मलिक पर देश दुश्मनी का आरोप भी लग चुका है। यह आरोप किसी और ने नहीं, सिंध के पूर्व गृहमंत्री और वरिष्ठ नेता ज़ुल्फिकार मिर्जा ने लगाया है। पाकिस्तान में जिन मुद्दों पर चर्चा है उनमें कराची का आतंकवाद, सिंध में आई बरसात की तबाही, ज़ुल्फिकार मिर्जा का उपरोक्त बयान शामिल है। कराची को देश का आर्थिक केंद्र भी कहा जाता है। इस शहर में कई सालों से जो हिंसा जारी है उसका प्रभाव पूरे देश पर पड़ता है। पाकिस्तान की सबसे बड़े अदालत में कराची में जारी आतंकवाद और लक्षित हत्याओं का मुकदमा भी चल रहा है। सरकार की ओर से दी गई रिपोर्ट में अदालत को बताया गया है कि केवल एक महीने में देश के सबसे बड़े शहर में 600 लोगों की हत्या की जा चुकी है, जिसमें 500 लोगों की घात लगाकर हत्या की गई है। यह भी सरकारी रिपोर्ट है कि कराची में कई क्षेत्रों को निषिद्ध क्षेत्र बनाया गया है, जहां सुरक्षा एजेंसियों को भी जाने की अनुमति नहीं। कराची में जितने गैर कानूनी हथियार हैं उतने बाकी पूरे देश में नहीं होंगे। 20 लाख लोगों का मुकाबला करने के लिए 3 लाख लोगों को एक साल के अंदर हथियारों के लाइसेंस दिए गए हैं। कराची पर माफिया का राज है। अब तो लोग इस शहर को दूसरा दुबई कहते हैं और सारी दुनिया में यहां से आपरेशन चलता रहा है। सच तो ये है कि पाकिस्तान की सरकार माफिया तत्वों के आगे बंधक बन कर रह गई है। कराची में माफिया तत्व एक तानाशाह की मेहरबानी से पले-बढ़े। यह सैनिक तानाशाह जनरल जिया अल हक का 1980 का दौर था जब उन्होंने अपने खिलाफ़ सिंध प्रांत में चलते आंदोलन को रोकने के लिए प्रांत में रहने वाले लोगों का न केवल बंटवारा कर दिया, बल्कि एक ऐसा समूह खड़ा कर दिया जिसके कारण आज हालात बिगड़े हुए हैं। पाकिस्तान में एक बात हमेशा कही जाती है कि देश की कोई भी सियासी पार्टी ऐसी नहीं जिसका संबंध सेना से जुड़ा न हो। देश की कई सियासी पार्टियां ऐसी हैं जिनको सेना के केंद्रों अथवा मुख्यालय में बनाया गया है। एक तानाशाह जब अपनी कुर्सी बचाने के लिए कुछ भी कर सकता है तो उसको वह काम करने से भी कोई नहीं रोक सकता जिससे देश की जड़ें खोखली होकर रह जाएं और पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर को जिस पार्टी ने बंधक बना रखा है वह भी जनरल जिया ने बनाई। फिर जनरल मुशर्रफ ने उसका इतना समर्थन किया कि आज किसी के नियंत्रण में कुछ नहीं रहा। अब तो हालत यह है कि देश के सैनिक प्रमुख खुद आकर कराची में बैठक लगाते हैं, लेकिन हालात कंट्रोल नहीं होते। पाकिस्तान का सबसे बड़ा बंदरगाह कराची में है। अब यह सामने आया है कि उस बंदरगाह से करीब 40 हजार कंटेनर गायब हो चुके हैं। आरोप है कि हथियार और दूसरी चीजों से भरे ये कंटेनर चोरी करवाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट में बताया गया है कि करीब इतने कंटेनर पोर्ट से निकले, लेकिन वे अफगान सीमा पर पहुंचने से पहले गायब हो गए हैं। कराची की बिगड़ती हालत पर पाकिस्तान की सेना को भी चिंता है, सेना बार-बार बैठकें कर यह चेतावनी दे चुकी है कि सरकार हालत बेहतर करे, लेकिन इसी सेना के पूर्व प्रमुख मुशर्रफ की मेहरबानी से कराची के हालात हाथ से निकलते जा रहे हैं। इसलिए अगर कल सेना कराची में आई तो फिर उसको कोई निकाल नहीं सकता। यही कारण है कि सरकार में बैठी पार्टी का विचार है कि कोई और राह निकाली जाए ताकि सेना पाकिस्तान के बड़े शहर में न आ सके। (लेखक पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
source : http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=49&edition=2011-09-17&pageno=8#id=111721250071210920_49_2011-09-17

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