Wednesday, September 04, 2013

भारतीय मजदूर संघ

भारतीय मजदूर संघ

भारत सरकार इस समय पूरी तरह बदहवास नजर आ रही है, न तो वह महंगार्इ रोक पा रही है, ना ही बेरोजगारों को रोजगार दे पा रही है, उधोगिक उत्पादन लगभग ठप हो गया है पेट्रोल डीजल के दाम रूक नही रहे हैं और रूपया सरकार के काबू से बाहर हो गया लगता है । इसी घबराहट में सरकार के बाणिज्य मंत्री सोना गिरबी रखने की सलाह दे रहे हैं और पेट्रोलियम मंत्री रात्रि में पेट्रोल पम्प बन्द करने का सुझाव दे रहे हैं । जब जनता इन सुझावों का विरोध करती है तो मंत्री कहते हैं कि ये सलाह भी हमें जनता ने ही भेजी थी ।  आर्थिक क्षेत्र के जानकार कह रहे हैं कि देष 1991 के पूर्व की सिथति में पहुंच गया है । जब कि प्रधानमंत्री देष को भरोसा दे रहे हैं कि देष के हालात 1991 की सिथति से बेहतर हैं और काबू में हैं  पता नही देष के अर्थषास्त्री प्रधानमंत्री व वित्त मंत्री रूपये को बचाने के लिए कब अपना चमत्कार दिखलायेंगे । 
दुनिया का इतिहास बताता है कि यदि सरकार समझदारी से काम ले तो रूपये की कमजोरी भारत की ताकत भी साबित हो सकता है ।  उदाहरण के लिए जापान ने 1960 में कमजोर येन की ताकत चमकार्इ और 1970 के दषक में अपने निर्यात में चार गुना बृद्धि कर दुनिया के बाजार में अपना सिक्का जमाया । चीन ने भी 1980 के मध्य कमजोर युवान का दाव चला और एक दषक में ही दुनियां के बाजार को अपने माल से भर दिया । आज सारी दुनियां का बाजार चीन के उत्पादन से भरा पड़ा है ।  यानि चीन ने कमजोर युवान को अपनी ताकत बनाते हुए जहां उत्पादन बढ़ाया वही चीन में लगातार रोजगार के अवसर भी बढ़े ।
किन्तु भारत सरकार गत दषकों से आयाता आधारित नीति बनाकर बैठी है जिससे जहां भारत का उधोगिक उत्पादन लगभग ठप पड़ा है वही नौजवानों के सामने रोजगार का संकट खड़ा है ।  अभी तक सरकार दावा करती थी कि हमारा जी.डी.पी. बढ़ रहा है गत वर्षो में जहां जी.डी.पी. 8 प्रतिषत के लगभग था वही अब ग्रोथ का तिसलिम भी टुट गया है और इस वर्ष की प्रथम तीमाही में जी.डी.पी. दर 4.4 प्रतिषत रह गया ।  इस समय यदि सरकार गम्भीरता पूर्वक विचार करे तो पायेगी कि इस दर्दनाक आर्थिक दुष्चक्र्र के बीच भी एक रोषनी की पतली रेखा दिखार्इ दे रही है । क्योंकि रूपये की कमजोरी ने भारत में एक बड़े बदलाव की शुरूआत कर दी है । भारत अब निर्यात आधारित ग्रोथ अपनाने पर मजदूर हो गया है । भारत का कोर्इ भी अर्थषास्त्र.ी निर्यात बढ़ाने के लिए शायद ही रूपये के अवमूल्यन का सुझाव देता जो बाजार ने अपने आप कर दिया । गत जुलार्इ मास में जहां आयात 6 प्रतिषत गिरने के संकेत हैं वही निर्यात 11 प्रतिषत बढ़ा है। इस बर्ष की प्रथम तिमाही में इलैक्ट्रीकल एवं इलैक्ट्रोनिक सामान के निर्यात में भी 2 प्रतिषत की बढ़ोतरी हुर्इ है । यदि इस संकेत को समझकर सरकार रूपये को थामने की बजाय अपनी बदहवासी छोड़कर अपने उत्पादन नीति पर पुर्नविचार करे और इसे निर्यात आधारित बनाकर जहां रोजगार के अवसर बढ़ा सकती है वही विष्व बाजार की प्रतिस्पर्धा में अपना माल सस्ता होने के कारण दुनियां के बाजार में छा जाने का एक अपूर्व मौके का भरपूर इस्तेमाल कर सकती है ।
निर्यात की दुनियां में घरेलू मुद्रा की कमजोरी सबसे बड़ी ताकत होती है । बाजार में हमारा माल सस्ता है निर्यात में बढ़त का पैमाना केवल डालर ही नही होता । यह इसपर भी निर्भर करता है कि प्रतिस्पर्धी देषों में किसकी मुद्रा कितनी कमजोर है ।  गत 6 सालों में युवान के मुकावले रूपया 74 प्रतिषत टुटा है वही डालर के मुकावले मात्र 38 प्रतिषत रूपया टुटा है ।  इस कारण आज कमजोर रूपये के साथ भारत अब चीन पर भी भारी है क्योंकि इस कारण आज बाजार में चीन के मुकावले हमारा निर्यात सस्ता है । एंविट कैपिटल के अध्ययन के अनुसार 2007 के बाद से उत्पादन निर्यात में भारत की बढ़त चीन से ज्यादा है ।  इसलिए अब भारत को निर्यात बाजार में अपनी चमक दिखाने का मौका है। यदि सरकार इस समय पैतरा बदल कर कमजोर रूपये के सहारे दुनियां में छा जाने का अवसर है ।  यदि हम अपना निर्यात बढ़ाने में सफल होते हैं तो देष में डालर की आवक अपने आप बढ़ जायेगी जिससे हमारा विदेषी मुद्रा भंडार भी मजबूत होगा, रूपये पर दबाव घटेगा, निर्यात उत्पादन में नया निवेष होगा और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे ।
 
पवन कुमार
क्षेत्रीय संगठन मंत्री
भारतीय मजदूर संघ

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