मॉं सेवा की प्रतिमूर्ति है - साध्वी ॠतंभरा
तारीख: 6/4/2012 1:43:14 PM
(विश्व संवाद केंद्र- आगरा)
आगरा, 4 जून 2012 : प्रकृति और ईश्वर ने माताऔं को त्याग, सेवा और वात्सल्य का गुण प्रदान किया है। माताऐ सेवा की साक्षात प्रतिमा है और कहा जाए तो वह जीवन की धुरी हैं। मॉं सेवा की प्रतिमूर्ति है| उसके गुणों और समर्पण को वाणी से व्यक्त नही किया जा सकता वरन अनुभव किया जा सकता है। यह विचार साध्वी दीदी मॉं ॠतंभरा ने मातृ मण्डल सेवा भारती पश्चिमी उ.प्र. क्षेत्र की दायित्ववान माताओं और बहनों की दो दिवसीय बैठक का उदघाटन करते हुए व्यक्त किये।
उन्होंने कहा, कि भारतीय संस्कृति में मॉं का समर्पण ही भोजन को प्रसाद बनाता है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देव मॉं के सामने नतमस्तक हुऐ है। परिवार में मॉं ही है जो बच्चों को परम्परा और संस्कृति का बोध कराती है। मॉं को इस प्रकार का स्वभाव प्रकृति और ईश्वर ने स्वयं दिया है। राष्ट्र के स्वाभिमान की बात आती है तो मॉं ही पहले समर्पण को आगे आती है और शहीदों की मॉं बन जाती है। जब इंसान छोटी-छाटी लालसाओं में जकड़ा रहता है, तब तुलसी को महान तुलसीदास बनने को मॉं ही प्रेरित करती है। दूसरे के दर्द को सबसे अधिक मॉं ही समझ सकती है।
स्वामी विवेकान्द की 150वी जयंती पर मातृमण्डल की दायित्ववान कार्यकर्ता बहनों को उदबोधित करते हुए साध्वी दीदी मॉं ॠतंभरा ने मातृशक्ति को आस्रवान करते हुए कहा, कि वह समान अनुभूति करते हुऐ सम्पूर्ण समाज को अपना परिवार मान कर सेवा करे। ईश्वर ने हमें सेवा के लिये चुना है। जब प्रभू हमको चुनते है तो शरीर कंचन और नंदनवन बन जाता है। निष्पक्षता, सत्यवादिता, सहानुभूति एव लक्ष्य के प्रति दृढ़ता और समान सहानुभूति के आधार पर सच्ची सेवा की जा सकती है।
साध्वी दीदी मॉं ॠतंभरा ने मातृमण्डल की बहनों को उदबोधित करते हुए आगे कहा, कि सेवा करते वक्त अपने पर भरोसा रखें। दूसरे आपके काम को कितनी प्रतिष्ठा देते हैं इसकी चिन्ता न करते हुए अपनी प्रसन्नता के लिए सेवा कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रतिष्ठा बाहर से मिलती है और प्रसन्नता अन्दर से मिलती है। यदि आपने किसी की सेवा की तो उसकी प्रसन्नता का आभास स्वयं अन्दर से होता है जबकि दूसरे क्या कहते हैं इसका विचार नही करना चाहिए।
उन्हौंने कहा, कि कार्यकर्ता के नाते सेवा करते हुए किसी से गलती हो जाए तो उसकी जिम्मेदारी स्वयं लें। अपनी निष्ठा पर भरोसा रखो, दूसरे का आकलन हम नही कर सकते। हमें अपना आकलन स्वयं करना चाहिए।
साध्वी दीदी मॉं ने आगे कहा कि हमें ऐसे लोगों की सेवा करनी चाहिए जहॉं सेवा की आवश्यकता है। अभाव के कारण अपनी संस्कृति और अपनी सभ्यता से जो लोग दूर जा रहे है, वहॉं सेवा के द्वारा हम कार्य करेगें तो हमारा उन पर भरोसा बढेगा। दीया वहॉ जलायें जहॉं अधेरा है, तभी मॉं भारती के चेहरे पर मुस्कान आयेगी।
साध्वी ॠतंभरा ने दीप जलाकर बैठक का उदघाटन किया। इस अवसर पर क्षेत्र और देश के अलगअलग क्षेत्र की अखिल भारतीय स्तर की कार्यकर्ता बहनें एवं सेवा क्षेत्र के अ.भा. अधिकारी उपस्थित थी।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment