रथयात्रा के लिए पुरी में रथों को सजाने संवारने का काम अंतिम चरण में पहूंच रहा है। उधर महाप्रभु जगन्नाथ के गुप्त सेवा के अंतर्गत घणालागी और राजप्रसाद बीजे नीति संपन्न हुई है। परंपरा के अंतर्गत द्वादशी तिथि को महाप्रभु के चंदन ,पाट डोर को रत्नथाल में सजाकर राजप्रसाद भेजा जाता है। पुरी के गजपति महाराजा दिव्यसिंह देव ने प्रभु प्रसाद लेकर आए सेवकों का स्वागत करते हुए उन्हे राज प्रासाद के अंदर ले गये। दिव्यसिंह देव ने इन सेवकों साड़ी बंधवाई और उनका सम्मान किया। रविवार त्रयोदशी के अवसर पर घणालागी नीति संपन्न हुई । श्री मंदिर के सूद सेवक दईतापतियों द्वार प्रस्तुत घणा को तीनों महाप्रभु को अर्पित किया गया।
गौरतलब है कि स्नानपूर्णिमा के बाद बिमार पड़े भगवान श्री जगन्नाथ, बलदेव तथा देवी सुभद्रा का ईलाज चलता है। यह सेवा दईतापतियों द्वारा संपन्न कि जाती है। इस दौरान भगवान के दर्शन नहीं किए जाते है और उनके स्थान पर पटी देवता के दर्शन होते हैं। पुरी से 38 किलोमिटर दूर ब्रह्मंागिरी में अलारनाथ में दर्शन की परंपरा चली आ रही है।
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