बांग्लादेशी घुसपैठ एवं असम हिंसा समस्या-समाधान
Source: VSK- INDRAPRASTHA Date: 8/27/2012 3:52:03 PM |
नई दिल्ली, 27 अगस्त 2012 : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उत्तर पूर्व विभाग दिल्ली प्रांत द्वारा सीरी फोर्ट आडिटोरियम में बांग्लादेशी घुसपैठ एवं असम हिंसा समस्या-समाधान विषय पर विचार गोष्ठी 24 अगस्त 2012 को सम्पन्न हुई। गोष्ठी में असम के पूर्व पुलिस महानिदेशक श्री एस.पी. कार जी मुख्य अतिथि के रूप में तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह श्री कृष्ण गोपाल जी मुख्य वक्ता के नाते उपस्थित थे।
श्री एस. पी. कार ने असम की स्थिति के बारे में अपने अनुभवों को गोष्ठी में रखा। उन्होंने बताया कि लोगों की जमीनी समस्याओं को उन्होंने अपने 36 सालों के पुलिस कार्यकाल में देखा व समझा है। बी.टी.ए.डी. पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि मौजूदा घटनाक्रम 6 जुलाई से प्रारम्भ हुआ। यह स्थिति अचानक नहीं बनी बल्कि धीरे-धीरे इसका निर्माण किया गया। असम में 2011 तक 10 से 11 जिले बांग्लाभाषी मुस्लिम बहुल हो गए हैं। यह स्थानांतरण सरकार के जानकारी में हुआ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह श्री कृष्ण गोपाल जी ने अपने उदबोधन में कहा, आज पूर्वोत्तर तथा वहां के लोगों को जानने की आवश्यकता है। पूर्वोत्तर पर जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर अनेकों धार्मिक स्थानों का भारत के पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख है। उन्होंने महाभारत में पूर्वोत्तर से जुड़े प्रसंगों पर विस्तार से चर्चा की। वहां के होम राजाओं की भाषा संस्कृत थी। आज भी संस्कृत में लिखे अनेकों ताम्रपत्र व लौह पत्र वहां मिल जाएंगे। एक महत्त्वपूर्ण बात आसाम के बारे में यह है कि गुवाहाटी से आगे कभी भी अरब, तुर्क व मुगल कभी भी नहीं बढ़ सके। 17 बार आक्रमण हुए किन्तु पूर्वोत्तर में उन्हें सफलता नहीं मिली, आक्रमणकारियों को यहां से भागना पड़ा। विश्व प्रसिद्ध नेवल वार में जो यहां सराय घाट पर हुई, 30 हजार नाव लेकर आसाम के लोग लड़ रहे थे और मुगलों के पास 3 लाख की सेना थी। वर्षों तक वह यहां पड़े रहे लेकिन आसाम को जीत नहीं सके। आज म्यानमार, कंबोडिया चीन, तिब्बत, थाईलैण्ड में अगर इस्लाम नहीं पहुंचा है तो इसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ आसाम को जाता है, जिसके निवासियों ने इस्लामी आक्रमण को रोका।
पूर्वोत्तर भारत तथा पूर्वी एशिया के लोगों के धर्म तथा उनकी संस्कृति को जिन्होंने बचाए रखा वे लोग आसाम के ही लोग थे। यह विश्व इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण अध्याय है। आसाम के इतिहास का एक और प्रसंग है। 1206 में बख्तयार खिलजी दिल्ली से गंगा के मैदानों को जीतता हुआ, नालंदा को रौंदता हुआ बंगाल तक आ गया और बंगाल से फिर चला तिब्बत और चाइना जीतने के लिए। आसाम के घने जंगलों में आ गया और इन्ही आसाम के घने जंगलों में जहां पर आज संघर्ष चल रहा है, बोडो लोगों का यह जो स्थान है बीटीडी, यहां आ गया और अपनी डेढ़- दो लाख की सेना लेकर के यहां मर गया। 1206 में बख्तयार खिलजी को मारने वाले, उसकी सारी सेना को नष्ट करने वाले वो वही लोग हैं जो आज संघर्ष कर रहे हैं। वो ही हैं बोडो कम्युनिटी - हिन्दू कम्युनिटी जो 1206 में बख्तयार खिलजी से लड़े, जीते और उसको सेना सहित समाप्त कर दिया। वहां पर बख्तयार खिलजी की कब्र मौजूद है।
श्री कृष्ण गोपाल जी ने लोगों से आह्वान किया कि जब भी मौका मिले उत्तर पूर्व के बच्चों से मिलें। वे आप को नया कुछ जरूर बता देंगे। उन्होंने असम के बारे में बताते हुए कहा कि 1905 में बंगाल को ब्रिटिशों ने बड़ी प्लानिंग से बांटा, धूर्तता तथा चतुराई से बांटा, ईस्ट बंगाल और वैस्ट बंगाल आसाम का क्षेत्र जो हम आज देख रहे हैं, ये पूरा आसाम था। केवल मणिपुर और त्रिपुरा स्टेट था। ये पूरे आसाम की जनसंख्या केवल 31 लाख थी। ईस्ट बंगाल की जन संख्या 3 करोड़ थी। बहुसंख्यक मुसलमान थे। इसके साथ आसाम को कनेक्ट कर दिया गया। एक नया स्टेट बनाया ईस्ट बंगाल एण्ड असम। कर्जन बड़ा धूर्त था। कर्जन अकेला नहीं सारी ब्रिटिश पार्लियामेंट धूर्तों की पंचायत थी। उस समय सारे भारत में क्रिश्चयनों की संख्या एक प्रतिशत से भी कम थी। इसको बढ़ाने के लिए उन्हें सॉफ्ट कार्नर ढूंडा पूर्वोत्तर। इसके लिए आसाम को दो हिस्सों में बांटा - मैदानी क्षेत्र और पहाड़ी क्षेत्र। पहाड़ी क्षेत्र में मिशनरियों को भेजा तथा मैदानी क्षेत्र में मुस्लिम विस्थापितों को भेजा। उन्हें पता था हिन्दू हमारा विरोध करेंगे, मुसलमान नहीं। जो नया ईस्ट बंगाल आसाम स्टेट बनाया गया उसमें दो करोड से ज्यादा मुसलमान थे। ये उठ कर आसाम की ओर रहने के लिए चल दिए।
आसाम का इतना बड़ा क्षेत्र था, बड़े बड़े मैदान, जंगल, पहाड़ खाली पड़े थे। उस समय इस क्षेत्र में स्थानीय हिन्दू समाज की 31 लाख आबादी थी केवल। ये है मूल समस्या की जड़। यहां से 1911 में फिर आसाम का विभाजन रद्द हो गया, किन्तु यह स्थानांतरण रुका नहीं अनवरत चलता रहा। हमने सोचा 1947 के बाद यह स्थिति रुक जाएगी, 1947 में एक भी जिला, ब्लाक, कमिश्नरी असम में मुस्लिम बहुल का नहीं था। आज 9 जिले मुस्लिम बाहुल्य के हैं, साढ़े तीन हजार गांव ऐसे हैं जहां एक भी हिन्दू है ही नहीं। चार हजार गांव मुस्लिम बांग्लादेशियों ने और बसा दिए। पूरा धुबरी जिला बांग्लादेशियों से भरा पड़ा है। ये कैसे हो गया, क्या सेकुलरिज्म का यह मतलब होता है कि बहुसंख्यक समाज को अल्पसंख्यक में बदल दो? विश्व मे ऐसा होता है क्या कहीं, हां भारत में ऐसा होता है। केन्द्र सरकार की पहले से चली आ रही वोट बैंक की राजनीति के कारण असम तथा देश के अन्य क्षेत्रों में आज यह स्थिति बनी है।
उन्होंने बताया कि नागरिकता केवल राशनकार्ड, वोटर लिस्ट में नाम लिखवाने, संपत्ति खरीदने अथवा ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने से नहीं मिलती। नागरिकता प्राप्त करने का अलग प्रावधान है। यह व्यक्ति के पूर्वजों से तय होता है। उसके पिता, दादा से तय होता है कि उनका जन्म इस देश मे हुआ था या नहीं। आज इन अवैध बांग्लादेशियों की समस्या केवल असम की नहीं है। पूरे देश में चाहे वह दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, इलाहाबाद, लखनऊ हो, यह अवैध बांग्लादेशी देश के लिए समस्या बने हुए हैं। गाय की तस्करी से लेकर नकली नोटों की सप्लाई, अवैध हथियार हों या महानगरों में चोरी व लूट की वारदातें, इन सब में बांग्लादेश से आए घुसपैठिए संलिप्त रहते हैं। पुलिस इनको ढूंढने में अपनी असमर्थता बता देती है। लेकिन इन्हें पहचानना इतना कठिन नहीं है, इसके लिए समाज को थोड़ा जागरूक हो इनके विरुध खड़ा होना होगा।
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