Thursday, November 25, 2010

राम लला भी जिनकी गोद में रहे, ऐसी थीं ऊषा दीदी

राम लला भी जिनकी गोद में रहे, ऐसी थीं ऊषा दीदी




राम लला भी जिनकी गोद में रहे, ऐसी थीं ऊषा दीदी
(एक महादेवी को विनम्र श्रद्धांजलि)
ऊषा दीदी ने अपने जीवन के 81 वर्ष जिस तरह से देश व समाज के लिए समर्पित
किए वह हम सभी के लिए अनुकरणीय हैं। त्याग, वात्सल्य, क्षमा, कर्तव्य
निष्ठा, साहस, प्रेम, दया, करुणा, कोमल ह्र्दयता, निर्भीकता तथा धर्म व
राष्ट्र से अटूट प्रेम, आखिर क्या नहीं था ऊषा दीदी में। न कभी थकना, न
रुकना, न उदास होना, न उदास होने देना, किसी की भी सहायता के लिए सदैव
तत्पर रहना, गलत कार्य न करना और न ही करने देना, नेम व फ़ेम से सदा दूर
रहना, भारतीय सभ्यता व संस्कृति में गहन आस्था रखना उनकी विशेषता थी।
शायद यही कारण रहा हो कि एक दिन अयोध्या में भगवान राम लला भी उनकी गोदी
में आ गए।

18 जनवरी 1930 को जन्मी पूज्य ऊषा दीदी ने अपनी जीवन यात्रा के एक एक पल
को ऐसे जीया कि उसका एक क्षण भी समाज के लिए प्रेरणा का श्रोत बन गया। एक
धनाढ्य परिवार में सात भाइयों के बीच इकलौती बहन के पास आखिर क्या नहीं
था? हर प्रकार की सुख-सुविधा, भरा पूरा परिवार, पुत्र-पुत्री, धन-वैभव
आखिर सब कुछ तो था उनके पास। किन्तु, इस सब का मोह उन्हें अपने जाल में
नहीं फ़ंसा पाया। उन्हें सबसे ज्यादा सुख यदि किसी कार्य में मिलता था तो
वह था समाज सेवा।

“कर्मण्येवाधिकारस्ते” को चरितार्थ करने वाली श्रद्धेय ऊषा दीदी ने 1964
से विश्व हिंदू परिषद के माध्यम से महिलाओं को संगठित करने का कार्य
प्रारम्भ किया। बाद में उन्होंने “मातृ शक्ति” की नींव रखी तथा इसी कार्य
हेतु मातृ शक्ति सेवा न्यास की स्थापना भी की। 1968 से 1972 के मध्य
मोरीशस से आये बालकों के लिए संस्कार केन्द्र चलाया। 1976-77 में
तमिलनाडु में महिला कार्य विस्तार हेतु गहन प्रवास किया। इसके बाद
सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और इंद्रप्रस्थ क्षेत्र
में भी लगातार प्रवास कर विहिप की महिला शाखा- मातृ शक्ति को अपने पैरों
पर खडा किया। 1979 के द्वितीय विश्व हिंदू सम्मेलन में भी उनकी भूमिका
अग्रणी थी। 1987 में हिन्दी भाषी क्षेत्र की महिलाओं का एक अभ्यास वर्ग
आगरा में उन्होंने अत्यन्त सफ़लता पूर्वक संपन्न किया। श्री राम-शिला पूजन
कार्यक्रम की घोषणा प्रयाग की जिस तृतीय धर्म संसद में हुई उस की सफ़लता
हेतु वे एक माह तक प्रयाग में ही रहीं और एक एक कार्य को उन्होंने बारीकी
से देखा। विहिप की उपाध्यक्षा श्रीमती मीना ताई भट्ट के शब्दों में “मुझे
स्मरण नहीं आता है कि उन्होंने किसी बैठक, प्रशिक्षण वर्ग, शिविर या किसी
अन्य कार्यक्रम में स्वास्थ्य के कारणों से भाग न लिया हो”। वे सचमुच ही
अदभुत क्षमता की धनी थीं।

दिसम्बर 1992 में जब अयोध्या में ढांचा गिरा तो भगवान राम लला अचानक उनकी
गोदी में आ गये। शायद उनका वात्सल्य व भगवत प्रेम भगवान को भी खींच लाया
था। 1994 में राजधानी दिल्ली के ताल कटोरा स्टेडियम में एक लाख महिलाओं
की सह-भागिता के साथ हुए अखिल भारतीय महिला सम्मेलन के सारे आर्थिक पहलू
की जिम्मेदारी उन्होंने स्वयं संभाली और उनकी अकल्पनीय कार्य क्षमता के
सभी कायल हो गए। संतो के प्रति आगाध श्रद्धा की पुंज दीदी का साध्वी
शक्ति परिषद के सहस्त्र चण्डी यज्ञ में दिया गया योगदान भी किसी माइने
में कम नहीं था।

हिन्दुत्व व राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा के प्रति आपका समर्पण शायद जन्म
के ही संस्कारों में मिला था। नाम, पद या प्रसिद्धी की लालसा तो उनसे
कोसों दूर थी। विहिप के अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल तथा
राज्य सभा सांसद व सेवा निव्रत आई पी एस श्री बी पी सिंहल सहित सात
भाइयों की इकलौती बहन तथा श्री रोहित व श्रीमती भावना की मां श्रीमती ऊषा
की वात्सल्य छाया गत 19 नवम्बर को चाहे हमारे ऊपर से उठ गई हो किन्तु
उनका सूक्ष्म शरीर, चिंतन, विचार व भाव हम सभी को सदा प्रेरित करते
रहेंगे। ऐसी महादेवी को हम सभी का शत-शत नमन।
329, द्वितीय तल, संत नगर, ईस्ट आफ़ कैलाश, नई दिल्ली - 110065



Vagish Issar (IVSK) 09810068474

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