तरुण जे तेजपाल का एक ऐसी महिला के नाम खुला पत्र जिसकी अपने रास्ते पर निश्शंक टिके रहने वाली दृढ़ता और साहस ने भारतीय राजनीति के स्वरूप को ही बदल कर रख दिया
आदरणीय श्रीमती सोनिया गांधी जी,
मेरे इन शब्दों में कुछ नया नहीं है कि भारत एक ऐसा देश है जो आस्था पर चलता है. हम अपने देवी-देवताओं को पूजते हैं और अपनी सफलताओं और विफलताओं को उनके चरणों में अर्पित कर देते हैं. इस में यकीन और आपसे विरोध रखने वाले लोग जोर देकर कह सकते हैं कि इस मामले में आप अनुचित तरीके से लाभ की स्थिति में हैं. शादी और उसके बाद भारतीय परंपराओं में ढलकर आपने उन सभी -देवी देवताओं को अपना लिया जो दूसरे भारतीय नेताओं के भी होते हैं. मगर वह देवता तो आपके पास पहले से था ही जिसे आप अपने सुदूर मूल देश से अपने साथ लाई थीं.
आपको दलितों की महारानी और यादवों के सरदारों की चिंताएं भी समझनी होंगी. ये असहाय लोगों के मुखिया हैं भले ही वे कर उनके लिए कुछ नहीं रहे हों. मकसद महान हैं पर नेता क्षुद्र
चूंकि हमारी आपसे कोई लड़ाई तो है नहीं इसलिए हमें खुशी है कि आपके पास एक अतिरिक्त देवता है. जैसा कि आप जानती हैं भारत में इतने सारे आराध्य केवल इसलिए हैं क्योंकि यहां इतनी सारी समस्याएं हैं. हालांकि हमारे यहां धुर वामपंथी और दक्षिणपंथी ऐसे लोग भी हैं जिनके दिमाग में स्वयं ईश्वर ही एक समस्या है. पहला वर्ग ये सोचता है कि ईश्वर को लोगों की सोच से किस तरह निकाला जाए तो दूसरे की चिंता ये है कि ईश्वर को लोगों के दिमाग में किस तरह भरा जाए. पर फिलहाल इन लोगों की बात छोड़ देते हैं क्योंकि जब जनता ने ही उनकी नहीं सुनी तो हम क्यों सुनें.
तो हमें खुशी है कि आपके पास एक अतिरिक्त ईश्वर है. कोई चीज अधिक होना हमेशा काम ही आता है. हमारे देवताओं के कई पहलू हैं. वे रसिया भी हैं और दार्शनिक भी. अक्सर उनकी नैतिकताएं समझना मुश्किल होता है क्योंकि वे भी कर्म, धर्म, मोक्ष और माया के वशीभूत होते हैं. मगर आप जो ईश्वर अपने साथ लाई हैं वह सही-गलत, पाप-पुण्य और दया और करुणा के बारे में कहीं ज्यादा साफगोई से अपनी बात कहता है. हम इसका स्वागत करते हैं. धर्म की मतलबी व्याख्याओं से पैदा हुए भौतिकतावाद की अति के बीच यदि कहीं थोड़ी स्पष्टता देखने को मिल जाए तो इसमें आखिर बुरा ही क्या है.
अब जब कि हम इससे सहमत हैं कि आपके पास हमारी तुलना में एक अतिरिक्त देवता है तो इसका ये मतलब है कि आपकी जिम्मेदारियां भी हमसे ज्यादा होनी चाहिए. अधिकारों की प्राप्ति के साथ कर्तव्यों के पालन की जिम्मेदारी भी जुड़ी होती है और आपका अतिरिक्त ईश्वर इस बारे में बिल्कुल स्पष्ट कहता है कि इसका पालन कैसे किया जाना चाहिए. हम आपके आभारी होंगे अगर आप उसकी बात पर ध्यान दें. अपने लिए नहीं बल्कि दूसरे दसियों करोड़ लोगों की खातिर.
इसका मतलब ये है कि आपको ये नहीं सोचना है कि आपकी जी-तोड़ मेहनत के दिन अब खत्म हुए. इसमें कोई शक नहीं कि आपने उस सेना का नेतृत्व करते हुए शानदार प्रदर्शन किया है जिसके सिपहसालारों को ये तक नहीं पता था कि असल में ये लड़ाई हो कैसे रही है. बल्कि इन सिपहसालारों को तो सबसे ज्यादा महारत आपस में ही तलवारें भांजने में थी. व्यक्तिगत हमलों के बावजूद कई सालों तक आप अपना काम करती रहीं. किसी जनरल को ये बताया जाना अच्छा नहीं लगता कि बंदूक कैसे पकड़नी है या सिपाहियों से किस जबान में बात करनी है. पर किसी अज्ञात प्रेरणा के चलते आपको मालूम था कि इस तरह के ओछे अपमान अच्छी और महान विभूतियों को अच्छे और महान कामों से दूर रख सकते हैं. आपको ये बात समझ में आ गई थी कि लड़ाइयां आखिर में बंदूक की गोली के आकार या बिगुल की गूंज की तेजी से नहीं बल्कि दिल की मजबूती से जीती जाती हैं. 13 साल में सिर्फ अपने रास्ते पर टिके रहकर आपने लड़ाई के मायने बदल कर रख दिए.
अपनी लड़ाई में आप सफल साबित हुई हैं. 1996 में खस्ताहाल आपकी सेना 2009 में नई ऊर्जा और उत्साह से लैस है. इस प्रक्रिया में आपने बड़ी चतुराई और खूबसूरती से अपने अतिरिक्त ईश्वर की दो आज्ञाओं का पालन किया है. बाइबल में कहा गया है कि लालच नहीं करना चाहिए. इस आदेश को आपने इस कुशलता से त्याग के रूप में प्रस्तुत किया कि आपके विरोधियों की हवा निकल गई. बाइबल ये भी कहती है, धन्य हैं वे जो नम्र हैं क्योंकि वे ही पृथ्वी के वारिस होंगे. मनमोहन को प्रधानमंत्री बनाकर आपने उस नम्रता का सम्मान किया है जो ईश्वर को भी अच्छी लगती है.
इसके बावजूद मैं साफ तौर पर एक बात कहना चाहता हूं. 2009 के मनमोहन को आपकी उतनी ही जरूरत है जितनी 2004 के मनमोहन को थी. वे खरपतवार को साफ करने वाली दरांती हो सकते हैं मगर आप अब भी वह हाथ हैं जो इस दरांती को पकड़ने का काम करता है. खर-पतवार की सफाई अच्छे से हो इसके लिए जरूरी है कि हाथ और दरांती का तालमेल अच्छा हो.
बाइबल ये भी कहती है, ‘बीमारों का उपचार करो, कोढ़ियों के जख्म साफ करो, मुर्दों को जिलाओ, बुराई को बाहर करो : उदारता से तुम्हें मिला है, उदारता से बांटो.’
हम सबसे ज्यादा आप कहीं बेहतर तरीके से जानती हैं कि मुश्किलों से घिरे इस देश में बीमारों का उपचार करने और बुराई को भगाने के क्या मायने हैं.
सत्ता अपने साथ एक चमक भी लाती है. हो सकता है कि आप इससे चौंधियाएं नहीं क्योंकि आपने लंबे समय से इसे करीब से देखा है और इसका अनुभव भी किया है. मगर आपके चारों ओर, मौजूद लोगों में अब घमंड से फूलने की प्रवृत्ति पैदा हो सकती है. वे भूल सकते हैं कि उन्होंने सिर्फ एक मोर्चा जीता है और कई लड़ाइयां अब भी हमारे चारों ओर चल रही हैं. हमें बांटने वाले कट्टरपंथी अब भी दरवाजे पर खड़े हैं. वे अपने घावों को सहला रहे हैं, फिर से गोला बारूद इकट्ठा कर रहे हैं. वे अभी चुके नहीं हैं. देश की एक चौथाई जनता को वे अपने प्रभाव में ले चुके हैं. इसमें कोई शक नहीं रखिएगा कि वे फिर से भीतर घुसने की कोशिश करेंगे. तब आपकी सेना के काम गर्व नहीं बल्कि वह विनम्रता और उससे उपजी लोहे जैसी मजबूती ही आएगी जिसने आपको यहां तक पहुंचाया है. पूरे भारत में हमने डींग हांकने वालों के खिलाफ वोट किया है. सबको पता चल जाना चाहिए कि हम अपने मंत्रियों का पतन बर्दाश्त कर लेंगे मगर बेकार का घमंड हमें स्वीकार नहीं.
जैसा कि मैंने कहा लड़ाइयां अब भी कई हैं. सभ्यता से जुड़े विचारों की, देश को पंगु करते अभावों की, मरते बच्चों की..सूची बहुत लंबी है. मेरे शहर, जो आपका भी शहर और इस देश की राजधानी है, की हर ट्रैफिक लाइट पर चिथड़ों में लिपटे सात-आठ साल के बच्चे चंद सिक्कों की आस में हमारी कारों का शीशा खटखटाते हैं. जब तक हम अपने बच्चों को खाना नहीं दे सकते, उनका तन नहीं ढक सकते और उन्हें शिक्षा मुहैया नहीं करवा सकते तब तक शाइनिंग इंडिया और विश्वशक्ति भारत जैसे जुमले न सिर्फ मजाक बल्कि एक गाली भी हैं. मुझे पता है आप ये जानती हैं कि आज पांच साल से कम उम्र के 46 फीसदी बच्चे कुपोषण और इसके चलते होने वाली शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकलांगता के शिकार हैं.
मेरी जानकारी में सबसे महान एक व्यक्ति ने हमें एक जंत्री दी थी, ‘कोई भी कदम उठाते हुए उस सबसे गरीब या कमजोर व्यक्ति का चेहरा याद करो जिसे तुमने कभी देखा हो और अपने आप से पूछो कि क्या तुम्हारा ये कदम किसी भी तरह से उस व्यक्ति का कुछ भला करेगा.’
इस घड़ी भविष्य की अंधेरी राह पर चलते हुए हमें रोशनी के लिए अतीत के अनुभवों की मशाल लेकर चलना होगा. हमारे देश की बुनियाद डालने वालों की मानवीय दीप्ति ही हमें ये राह सबसे अच्छी तरह से दिखा सकती है.
आपकी अनुमति से मैं एक और बात कहना चाहूंगा. आप वाम के दबाव से भले ही छुटकारा पा गई हों मगर बेहतर होगा कि आप उनकी चिंताओं को ध्यान में रखें. आपको दलितों की महारानी और यादवों के सरदारों की चिंताएं भी समझनी होंगी. ये असहाय लोगों के मुखिया हैं भले ही वे कर उनके लिए कुछ नहीं रहे हों. मकसद महान हैं पर नेता क्षुद्र. इंसानों को खारिज कीजिए और मकसद को अपनाइए. सदियों के नुकसान की मरम्मत का काम तेजी से आगे बढ़ाना होगा.
सोनिया जी, ये सब बातें लिखते हुए मैं खुद को अमीरों का जिक्र करने से नहीं रोक पाता. पैसा अच्छी चीज है. और ये सबको पता है कि हम सभी अमीरों को पसंद करते हैं. नेता भी अपवाद नहीं हैं. मगर क्या आप ये सुनिश्चित करेंगी कि वे अपना सार्वजनिक जीवन गरीबों के लिए रखें. भारत में जनप्रतिनिधियों को सिर्फ गरीबों की बात करनी चाहिए. अमीरों के पास उनका पैसा है. उनके पास मीडिया भी है जो उनकी बात करता है. जिनके पास पैसा पैदा करने का मौका है उनको ऐसा करने के लिए अकेला छोड़ दें और उनके रास्ते में कोई बाधा न डालें. मगर अपने सिपहसालारों से उन पर ध्यान केंद्रित करने को भी कहें जिनकी जिंदगी में कोई उम्मीद नहीं है. उनसे कहिए कि उनके जीवन में आशाओं का संचार करें.
अब मुझे रुकना चाहिए. मुझे ये कतई शोभा नहीं देता कि मैं आपको उपदेश दूं. वह भी इतनी बड़ी जीत के मौके पर. चलिए मैं आपकी तारीफ में भी कुछ कह देता हूं. कोई शक नहीं कि अपने अतिरिक्त ईश्वर की मदद से आपने अपने बेटे को बहुत अच्छी तरह से पाला है. उसके पास विनम्रता है, शिष्टाचार है. वह परिश्रमी है, बड़े संदर्भ में सोचता है और सबके बारे में सोचता है. हमें वंशवाद पसंद नहीं मगर उससे ज्यादा हमें बांटने वाली राजनीति नापसंद है. एक आदर्श दुनिया में हमारे यहां ऐसी कोई भी चीज नहीं होनी चाहिए जो सामंती और अलोकतांत्रिक हो. मगर फिलहाल नफरत पैदा करने वाले लोगों से मुक्ति पाने पर ध्यान केंद्रित किया जाए.
राहत की बात ये है कि आपका बेटा उन लोगों से कहीं ज्यादा भारत की आत्मा के संपर्क में है जो भगवान के नाम पर वोटों का व्यापार करते हैं. आपकी पार्टी के ही एक नेता ने मुझसे कभी व्यंग्य भरे स्वर में कहा था, ‘निश्चित रूप से उनके इरादे नेक हैं. वो वृद्ध महिलाओं को सड़क पार करने में मदद करना चाहते हैं. मगर इसका कोई फायदा नहीं.’ मुझे हैरत है कि अब ये सज्जन क्या सोचते होंगे. बूढ़ी औरतों को सड़क पार कराने वाले नौजवान परिपक्व होकर देश को पथरीली राहों से पार लगाने में भी मदद कर सकते हैं.
क्या मैं आपका ध्यान एक और प्रसिद्ध कथन की तरफ खींच सकता हूं. हालांकि मुझे उम्मीद है कि आपने भी इसे कई बार पढ़ा और सुना होगा. ‘अच्छी नैतिक स्थिति में होने के लिए कम से कम उतने ही प्रशिक्षण की जरूरत होती है जितनी अच्छी शारीरिक स्थिति में होने के लिए.’ ये बात कहने वाली महान आत्मा का नाम था जवाहर लाल नेहरू. नेहरू के ये शब्द आपकी सेना और राहुल की नैतिकता को मजबूत बनाएंगे. आखिर आज देश के लिए हम जो सपने देखते हैं उनके लिए बुनियाद इसी महान आत्मा ने ही तो डाली थी.
आपको गति और शक्ति मिले आखिर में यही कामना है.
आपका,
तरुण जे तेजपाल
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Sanjay Kumar Azad
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VISHWA SAMBAD KENDRA
Sri Niketan ;Niwaranpur RANCHI-834 002
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