मुस्लिमों के लिए भी बेहतर अवसर
- ऐजाज इल्मी
स्थिरता और विकास के लिए सरकार चुनकर मतदाता ने तो अपना फर्ज अदा कर दिया है, अब नई सरकार का दायित्व शुरू होता है। यह उस पर निर्भर है कि वह स्पष्ट जनादेश हासिल करने के पश्चात अपना फर्ज शत-प्रतिशत अदा करने से चूके नहीं। सरकार के सामने करने को तमाम तरह के चुनौतीपूर्ण काम हैं। कांग्रेस गठबंधन के पास हमारी आशाओं पर खरा उतरने का एक ऐतिहासिक मौका है।
प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह पाकिस्तानी पंजाब से आए शरणार्थियों के अजेय
मुस्लिम समुदाय के शिक्षित व सक्षम लोगों को आगे आना होगा और उन लोगों का मार्गदर्शन करना होगा जो सक्षम नहीं हैं और पीछे रह गए हैं
जज्बे की एक उम्दा मिसाल हैं। ये वे लोग हैं जो अमर पक्षी कहलाने वाले फीनिक्स की भाँति बँटवारे की राख में से उठकर फिर से मजबूती से खड़े हो गए हैं। इन्हीं मजबूत इरादे वाले लोगों में से एक डॉ. मनमोहनसिंह ने एक नए उभरते भारत की कमान संभालकर एक बेहतरीन मिसाल कायम की है। असीम साहस, दृढ़ता और कड़ी मेहनत के बलबूते पर भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान के पश्चिमी हिस्से से आए विस्थापित पंजाबियों ने हमें दिखाया कि भारत में उम्मीद कभी खत्म नहीं होती।
यह संभावनाओं का देश है। इन्हें सरकार से कोई मदद नहीं मिली, दलितों के अलावा किसी के लिए आरक्षण नहीं था, फिर भी चिड़िया की आँख पर निगाह रखते हुए इन लोगों ने अपने हाथ के हुनर का प्रयोग किया। अपने मजबूत शरीर से खूब परिश्रम किया और घंटों तक काम में जुटे रहकर जीवन के सभी क्षेत्रों में तरक्की की। हालाँकि इन विस्थापितों एवं भारतीय मुसलमानों में समानता नहीं है लेकिन फिर भी भारत के मुसलमान इन लोगों की सफलता से प्रेरणा तो ले ही सकते हैं। अब या तो हम ऐतिहासिक पूर्वाग्रहों को लेकर रंज करते रहें, दूसरों को या अपने नेताओं पर आरोप लगाते रहें या फिर मौजूदा सरकार के तरक्कीपसंद सकारात्मक कार्यक्रमों के साथ जुड़ जाएँ। हमें क्या करना है, यह अब हमारे ऊपर ही निर्भर करता है।
मुस्लिम समुदाय के शिक्षित व सक्षम लोगों को आगे आना होगा और उन लोगों का मार्गदर्शन करना होगा जो सक्षम नहीं हैं और पीछे रह गए हैं। अल्पसंख्यकों के विकास हेतु भारत में कई योजनाएँ और 15 सूत्री कार्यक्रम हैं, किंतु वे सभी नौकरशाही की अनदेखी के शिकार होकर ठंडे बस्ते में पड़े हैं। इस काम के बीच में ही अटक जाने की खास वजह निगरानी और कार्यान्वयन में कमी है। इसलिए हमीदुल्लाह सईद, मौसम नूर, रवनीतसिंह आदि जैसे युवा सांसदों की समिति को यह जिम्मेदारी वाला काम सौंपना होगा कि वे उन लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु इन योजनाओं को अमल में लाएँ, जिनके लिए इन्हें बनाया गया है।
विभिन्न राज्यों से प्राप्त आँकड़ों से यह मालूम होता है कि अल्पसंख्यक समुदायों के जो बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं, वे आर्थिक मुश्किलों के चलते ऐसा करने के लिए मजबूर होते हैं। अपने अभिभावकों की कमाई में योगदान देने के लिए इन बच्चों को मुश्किल काम करने पड़ते हैं। यदि इन बच्चों को स्कूल में हाजिरी के लिए 500 रुपए महीना दिया जाए तो यह उम्मीद की जा सकती है कि वे कम से कम वे 12वीं कक्षा तक तो अपनी पढ़ाई पूरी कर ही लेंगे। इस फंड के लिए आवश्यक धन का 50 प्रतिशत विभिन्न राज्यों से शिक्षण-उपकर के रूप में आ जाएगा और बाकी धन 10 लाख अल्पसंख्यक करदाताओं की मर्जी पर उनसे लिया जा सकता है। प्रतिदिन मात्र 2 रुपए (या 750 रुपए प्रतिमाह) और उपकर से प्राप्त धन को मिलाकर 150 करोड़ रुपए मिलेंगे । इस रकम से तीन लाख के करीब बच्चे फिर से स्कूल जा सकेंगे।
सच्चर कमेटी द्वारा चिह्नित अल्पसंख्यक बहुल जिलों में अच्छे स्कूल स्थापित
युवा और पढ़े-लिखे भारतीय मुस्लिम, जो सूचना उद्योग की ओर आकर्षित हो रहे हैं, वे उम्मीद से भरे हैं कि विश्व में फैली मंदी के उतार से उन्हें अब रोजगार के अच्छे मौके मिलेंगे। यदि सरकार इस क्षेत्र में मदद करे तो रोजगार की दिक्कतें दूर हो सकती हैं
करने होंगे। जामिया मीलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के शैक्षिक कार्यक्रमों को विभिन्न शहरों में पहुँचाना होगा ताकि वहाँ पर उच्च शिक्षा के केंद्र स्थापित हो सकें। एक राष्ट्रीय सहकारी बैंक होने से दस्तकारों को आर्थिक मदद दी जा सकेगी ताकि मंदी के इस दौर को वे आसानी से पार कर सकें। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को उपशहरी इलाकों तक ले जाना होगा, जिसके तहत सस्ते घर बनाए जाएँ ताकि गरीब लोगों को रोजगार के साथ-साथ झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों को घर नसीब हो सकें।
युवा और पढ़े-लिखे भारतीय मुस्लिम, जो सूचना उद्योग की ओर आकर्षित हो रहे हैं, वे उम्मीद से भरे हैं कि विश्व में फैली मंदी के उतार से उन्हें अब रोजगार के अच्छे मौके मिलेंगे। यदि सरकार इस क्षेत्र में मदद करे तो रोजगार की दिक्कतें दूर हो सकती हैं। 2010 में जब आरक्षण नीति की समीक्षा होगी तो इस मुद्दे पर फिर बहस शुरू हो सकती है कि ओबीसी कोटे के अंतर्गत अल्पसंख्यकों को भी शामिल किया जाना चाहिए।
इसके लिए जनगणना को आधार बनाना चाहिए जिसमें मलाईदार वर्ग के अल्पसंख्यक भी शामिल हों। मजहबी दंगों के मामले शीघ्र निपटाने के लिए कानूनी सुधारों की दरकार है। चूँकि गरीबी धर्म-जात नहीं देखती इसलिए इस विषय पर राष्ट्रीय सहमति बनाई जा सकती है जैसा कि 2009 के आम चुनाव में भी साबित हुआ है। सरकार को अपना संवैधानिक कर्तव्य नहीं भूलना चाहिए कि सबको साथ लेकर ही प्रगति की जा सकती है, इसमें भय व पक्षपात की कोई जगह नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की ख्याति उसके सकल घरेलू उत्पाद की बढ़ती दर से नहीं होगी बल्कि मानव संसाधन के विकास से होगी। मानवीय विकास का सूचकांक ही किसी देश की सामाजिक-आर्थिक प्रगति की जानकारी देता है। निरंतर एवं टिकाऊ विकास के लिए भारत और इंडिया दोनों ही समान रूप से महत्वपूर्ण हैं, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता।
जैसा कि स्वर्गीय राजीव गाँधी ने 25 वर्ष पहले भ्रष्ट सरकारी मशीनरी को लताड़ते हुए कहा था कि आर्थिक मदद का मात्र 15 प्रतिशत हिस्सा की जरूरतमंद आदमी तक पहुँच पाता है, उसी प्रकार राहुल गाँधी ने भी गरीब-गुरबे को सशक्त करने की बात कही है। राहुल और युवा सांसदों की उनकी टीम को यह सुनिश्चित करना होगा की सामाजिक क्षेत्र के लिए जारी धन का शत-प्रतिशत जरूरतमंद तक पहुँचे। इस काम में आने वाली सभी बाधाओं से तत्परता के साथ निपटना होगा। सामाजिक क्षेत्र का बजट बढ़ रहा है, इसलिए भ्रष्टाचार को रोकना बेहद जरूरी है। यदि वर्तमान सरकार ऐसा न कर पाई तो यह जनता के भरोसे के साथ भद्दा मजाक साबित होगा।
(लेखक उर्दू अखबार 'सियासत' के संपादक हैं।)
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