Thursday, March 15, 2012

मुश्किल सफर में भारतीय रेल

रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी की खुद की गाड़ी पटरी पर कायम रहेगी या नहीं, यह अभी कहा नहीं जा सकता, मगर उनके बजट पेश करने के बाद के घटनाक्रम से भारतीय रेल की दुर्दशा एक बार फिर उजागर हो गई है। यह ठीक है कि आठ साल से यात्री किराये नहीं बढ़ाए गए थे, लेकिन रेल मंत्री ने दो पैसे से लेकर तीस पैसे प्रति किमी. की दर से भाड़ा बढ़ाए जाने की जो बाजीगारी दिखाई है, वह उनकी अपनी पार्टी को भी रास नहीं आई है।

असल में पैसे का यह गणित रुपये में बदलते ही 10 से 25 फीसदी बढ़ोतरी में तबदील हो जाता है, जिसका बोझ उठाना आम मुसाफिरों के लिए आसान नहीं। रेल मंत्री के सामने आर्थिक बोझ तले दबी रेल को उबारने की चुनौती थी, जिसका परिचालन और आय का अनुपात 95 फीसदी तक जा पहुंचा है। इस साल उसे 84.9 फीसदी लाए जाने की बात उन्होंने की है, मगर इसके लिए ठोस उपाय नजर नहीं आए। उन्होंने सुरक्षा और आधुनिकीरण पर खासा जोर दिया है, जिसके लिए पहले ही दो उच्च स्तरीय कमेटियां गठित की जा चुकी हैं। लेकिन यदि सुरक्षा की बात करें, तो निराशा होती है।

रेल यात्रियों को ट्रेन के भीतर भी खतरा है और बाहर भी, ऐसे में सिर्फ चंद स्टेशनों को हवाई अड्डे जैसा चमकदार करने से बात नहीं बनेगी। रेल मंत्री ने मानवरहित लेवल क्रांसिंग खत्म करने का वायदा किया है, लेकिन अनिल काकोदकर समिति की मानें, तो इन्हें खत्म करने पर 50 हजार करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। रेल मंत्री ने किराया बढ़ाने का जो कदम उठाया है, उससे तो सिर्फ 4,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय होगी! दूसरी ओर माल भाड़ा जब चाहे, तब बढ़ा दिया जाता है।

रेलवे का बोझ तो बढ़ता जा रहा है, मगर आय के वैकल्पिक स्रोत नहीं तलाशे जा रहे। रेलवे ने निजी क्षेत्र से भी साझेदारी की थी, मगर उसके नतीजे अच्छे नहीं आए हैं। आय बढ़ाने के लिए काकोदकर समिति ने नई ट्रेनों की घोषणा पर रोक और यात्री किराये में बढ़ोतरी की सिफारिश की थी। रेल मंत्री ने यात्री किराया तो बढ़ाया, लेकिन सौ से ज्यादा नई ट्रेनों की घोषणा कर दी है।

रेलवे की त्रासदी यह है कि इसे लोकप्रिय राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है, लिहाजा पिछली घोषणाओं की ट्रेनें तो चल नहीं पाती हैं, नई घोषणाएं कर दी जाती हैं। रेल मंत्री ने सैम पित्रोदा समिति की सिफारिशों पर भी गौर करने की बात की है, पर आधुनिकीकरण के लिए पैसा आएगा कहां से, यह बहुत साफ नहीं है। रेलवे में गुणात्मक बदलाव तभी आएगा, जब यात्री सुविधाओं के साथ बुनियादी ढांचे में भी बदलाव लाया जाए।

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