THURSDAY, SEPTEMBER 14, 2017
‘यक्ष प्रश्नों के उत्तर’ और ‘जम्मू-कश्मीर से साक्षात्कार’ पुस्तकों का लोकार्पण
नई दिल्ली. हिन्दी भवन सभागार, विष्णु दिगंबर मार्ग, नई दिल्ली में प्रख्यात समाजधर्मी इंद्रेश कुमार जी की सद्यः प्रकाशित पुस्तकों ‘यक्ष प्रश्नों के उत्तर’ तथा ‘जम्मू–कश्मीर से साक्षात्कार’ का लोकार्पण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), उत्तर पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय तथा राज्यमंत्री प्रधानमंत्री कार्यालय डॉ. जितेंद्र सिंह जी के करकमलों से संपन्न हुआ. प्रख्यात अर्थशास्त्री, विधिवेत्ता एवं राज्यसभा सांसद डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी जी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की. विशिष्ट अतिथि हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री जी थे. भव्य समारोह में बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी, चिंतक, विचारक, साहित्यकार व पत्रकारों ने भाग लिया.
यक्ष प्रश्नों के उत्तर – पुस्तक में उन प्रश्नों का उत्तर तलाशने की कोशिश की गई है, जो पिछले लगभग आठ सौ साल के इतिहास में से पैदा हुए हैं. ये प्रश्न इस देश में प्रेतात्माओं की तरह घूम रहे हैं. इन प्रश्नों का सही उत्तर न दे पाने के कारण ही देश का विभाजन हुआ और इसी के कारण आज देश में अलगाववादी स्वर उठ रहे हैं. ऐसा नहीं कि भारत इन प्रश्नों का उत्तर देने में सक्षम नहीं है. ऐसे प्रश्न हर युग में उत्पन्न होते रहे हैं और उस काल के ऋषि–मुनियों ने उनका सही उत्तर भी दिया, जिसके कारण समाज में भीतरी समरसता बनी रही. लेकिन वर्तमान युग में जिन पर उत्तर देने का दायित्व आया, उनकी क्षमता को संकुचित राजनैतिक हितों ने प्रभावित किया और वे जानबूझकर या तो इन प्रश्नों का गलत उत्तर देने लगे या फिर गलत दिशा में खड़े होकर उत्तर देने लगे. ऐसे उत्तरों ने भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य को धुँधला किया और आमजन को दिग्भ्रमित किया. पुस्तक में राजनीति की संकुचित सीमाओं से परे रहकर इंद्रेश कुमार जी ने इन प्रश्नों से सामना किया है. आशा करनी चाहिए कि इस मंथन और संवाद से जो निष्कर्ष निकलेगा, वह देश के लिए श्रेयस्कर होगा. वर्तमान सामाजिक–राजनीतिक परिस्थितियों का वस्तुपरक व चिंतनपरक अध्ययन व व्यावहारिक उत्तर देने का सफल प्रयास है यह पुस्तक.
जम्मू कश्मीर से साक्षात्कार – पुस्तक में इंद्रेश कुमार जी द्वारा कश्मीर समस्या को लेकर अनेक सार्वजनिक कार्यक्रमों और विचार गोष्ठियों में जो विचार व्यक्त किए गए, उनका संकलन है. लगभग दो दशक तक जम्मू, लद्दाख और कश्मीर में रहने के कारण लेखक की सभी वर्गों के लोगों (डोगरों, लद्दाखियों, शिया समाज, कश्मीरी पंडितों, कश्मीरी मुसलमानों, गुज्जरों, बकरवालों) से सजीव संवाद रचना हुई. इस कालखंड में पूरा क्षेत्र, विशेषकर कश्मीर घाटी का क्षेत्र पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का शिकार रहा है. कश्मीर की त्रासदी को उन्होंने दूर से नहीं देखा, बल्कि नज़दीक से अनुभव किया है. इस पूरे प्रकरण में उनकी भूमिका द्रष्टा की नहीं, बल्कि भोक्ता की रही है. आतंकवाद से लड़ते हुए जिन राष्ट्रवादियों ने शहादत दे दी, उसका चलते–चलते मीडिया में कहीं उल्लेख हो गया तो अलग बात है, अन्यथा उन्हें भुला दिया गया. सरकार की दृष्टि में इस क्षेत्र के लोगों की यह लड़ाई है ही अप्रासंगिक! जम्मू–कश्मीर की विषम–विपरीत परिस्थितियों का तथ्यपरक एवं वस्तुनिष्ठ अध्ययन और विश्लेषण का निष्कर्ष है यह पुस्तक जो वहाँ की सामाजिक–राजनीतिक–सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर विहंगम दृष्टि देगी.
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