Saturday, September 16, 2017

स्वस्थ समाज व सफल राष्ट्र के लिए सामाजिक समरसता प्रथम आवश्यकता – डॉ. मोहन भागवत जी

Saturday, September 16, 2017

स्वस्थ समाज व सफल राष्ट्र के लिए सामाजिक समरसता प्रथम आवश्यकता – डॉ. मोहन भागवत जी

जयपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि हमारे समाज में विद्यमान सभी प्रकार के भेदभाव को निर्मूल करते हुए समरसता के निर्माण में संलग्न हों, स्वस्थ समाज व सफल राष्ट्र के लिए सामाजिक समरसता प्रथम आवश्यकता है. सरसंघचालक जी शुक्रवार को भारती भवन में राजस्थान क्षेत्र के प्रचारकों की बैठक को सम्बोधित कर रहे थे. बैठक में जिला, विभाग व प्रान्त स्तर के प्रचारक उपस्थित थे. इस समय राजस्थान में करीब 200 प्रचारक हैं.
उन्होंने कहा कि प्रचारक एक सामाजिक साधना का प्रकार है. प्रचारक को समाज में रहकर निर्लिप्त भाव से देश और समाज के हित के लिए कार्य करना होता है. संघ में प्रचारक वह होते हैं जो अपना घर-परिवार छोड़कर पूरी तरह से अपने आप को संघ कार्य में समर्पित कर देते हैं. जब तक वह प्रचारक है, तब तक उनको पूरा समय संघ की योजना के अनुसार बताए गए स्थान एवं कार्य में ही लगाते हैं. जो योजक का कार्य करके क्षेत्र में परिस्थितियों के अनुसार अपने को ढालकर सभी को साथ लेकर काम करते हैं. वह स्वयं का परिवार छोड़ समाज को ही अपना परिवार मानते हैं.
उन्होंने राजस्थान के वरिष्ठ प्रचारक रहे माननीय सोहन सिंह जी का उदाहरण देते हुए कहा कि प्रचारक यानि परिश्रम की पराकाष्ठा. कार्य की आवश्यकता अनुसार विविध संगठनों में भी प्रचारक भेजे जाते हैं जो वहां संगठन मंत्री कहलाते हैं. समाज और देश के लिए पूर्ण जीवन देने वाले स्वयंसेवक प्रारंभ में विस्तारक कहलाते हैं. दो वर्ष के बाद यदि वह निरंतर समय देना जारी रखते हैं, तब वह प्रचारक कहलाते हैं. कोई भी स्वयंसेवक विस्तारक, प्रचारक तब बन सकता है, जब वह अपना अध्ययन पूर्ण कर चुका हो.
डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि कार्य विस्तार के साथ कार्य का दृढ़ीकरण होना चाहिए, दृढ़ीकरण यानि टोली, प्रत्येक स्तर पर टोली बने, टोली सभी प्रकार के कार्यों का समग्रता के साथ चिंतन कर निर्णय करे, प्रचारकों को कार्य की दृढ़ता व इस हेतु टोली निर्माण पर ध्यान देना चाहिए. उन्होंने हनुमान जी का उदाहरण देकर बताया कि विवेकशीलता बढ़नी चाहिए. उन्होंने दृढीकरण़ का अर्थ बताते हुए कहा कि जो नीचे के दो स्थानों का, रक्षण, पोषण व संरक्षण कर सके.