Saturday, July 30, 2016

गुरूग्राम जाम में स्वयंसेवकों के कार्य की संकलित जानकारी

गुरूग्राम में सेवा कार्य
लगभग 200 कार्यकर्ता अलग अलग स्थानों पर टोली बनाकर कार्य में लगे
लगभग 6000 बिस्कुट के पैकेट व नमकीन के पैकेट वितरित
2000 बोतलें व मयूर जग के माध्यम से पानी की आपूर्ति, आवश्यक दवाइयाँ भी उपलब्ध करवाईं
कार्यकर्ता सुबह 8 बजे से सायं बजे तक बिना रुके, बिना थके, घुटनों से ऊपर तक पानी में सेवारत रहे

एक स्वयंसेवक का अनुभव …
अपने लगभग 200 कार्यकर्ता पूरे दिन सुबह 8बजे से बादशाहपुरहौंडा चौक, सोहना रोड पर ट्रैफिक की समस्या को हल करने में लगे हुए थे. मैं भी उनमें से एक था. स्वयंसेवकों ने लोगों के बीच पानी की बोतलबिस्कुट के पैकेटदवाइयांछोटे बच्चों के लिये दूध भी बांटा. काफी देर की कड़ी मेहनत के बाद हालात सामान्य हुए. ऐसी मुश्किल परिस्थिति में प्रमुख कार्यकर्ताओं का मार्ग दर्शन मिला, जिसकी वजह से हम इतने बुरे ट्रैफिक को कंट्रोल कर पाए.
आम आदमी के बीच संघ की क्या छवि हैइसका भी हमें आज पता चला. लोगों ने संघ के कार्यकर्ताओं को देखकर खुशी महसूस की । वहां पर लोगों ने कार्यकर्ताओं को देखकर भारत माता की जय के नारे भी लगाए.
सेना के जवानों की बस में से सभी सैनिकों ने अपना आशीर्वाद दिया. वो पल काफी भावनात्मक और उत्साह भरने वाला था. प्रशासन ने भी स्वयंसेवकों की मेहनत देखीऔर वो भी सभी स्वयंसेवकों को देख अपने अपने काम में लग गये.
हौंडा चौक पे पानी और खाने की चीज़ों की काफी दिक्कत हो रही थीदुकानदारों ने लूट मचा रखी थी,तभी स्वयंसेवको ने हर ज़रूरत की चीज़ लोगों को उपलब्ध कराईउसके लिये भी लोगो ने तहे दिल से हमारा धन्यवाद किया. कुल मिला कर संगठन में कितनी शक्ति है, इसका एक छोटा सा उदहारण मिला. ईश्वर ऐसी शक्ति हमें देता रहेऔर हम समाज के भले के लिये काम करते रहें.
सोमिल कुमार

Friday, July 29, 2016

भारत माता की जय

शायद ही दुनिया में ऐसा कोई देश हो जिसके स्वाधीनता के सत्तर साल पश्चात् देश की जय-जयकार के सामने सवालिया निशान लगता हो. शायद ही दुनिया में ऐसा कोई देश हो जिसमें स्वाधीनता संग्राम के मंत्र स्वरूप वंदे मातरम् की घोषणा को दोहराने में लोग विरोध करते हों, जहां पड़ोसी देश से बेरोकटोक आने वाले घुसपैठियों को रोकने हेतु छात्रों को आंदोलन करना पड़े, जहाँ राष्ट्रध्वज की वंदना के लिए सख्ती बरतने की चर्चा होती हो. दुर्भाग्यवश दुनिया में ऐसा एकमात्र देश अपना भारत ही बना हुआ है, जहाँ यह सभी अनहोनी जैसी बातें होती है. स्वार्थ, राजनीति और वोट बैंक के लालच ने इस देश के राजनेताओं, विचारकों को इतना निचले स्तर पर ला खड़ा किया है कि देशभक्ति, देशप्रेम का सौदा करने में उन्हें जरा भी हिचकिचाहट नहीं होती है.
भारत माता की जय, ‘वंदे मातरम्’ कहते-कहते अनेक क्रांतिकारी देश की आजादी की जंग में फांसी पर झूल गए. सन् 1857 के स्वातंत्र्य समर में क्रांतिकारियों ने औरंगाबाद के नजदीक दौलताबाद के किले में ‘भारत माता’ की मूर्ती की प्रतिष्ठापना कर स्वाधीनता की शपथ ली और इस संग्राम की शुरूआत की. उन्हें अंग्रेजों ने औरंगाबाद में क्रांति चौक स्थित कालाचबुतरा पर फांसी पर लटकाया. क्या उन्हें कल्पना भी होगी की इसी ‘भारत माता’ की कल्पना का 160 साल बाद इसी देश में विरोध होगा. कोई कहेगा कि ‘मेरी  गर्दन पर चाकू रखने पर भी मैं भारत माता की जय नहीं बोलूंगा.’
जेएनयू में देश विरोधी नारे लगने के पश्चात् जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनजी भागवत ने बयान दिया था कि देश के नौजवानों को अब ‘भारत माता की जय’ कहने के लिए संस्कार देने पड़ेंगे. लेकिन इसका अर्थ भारत माता की जय बोलने की सख्ती बरतने से जोड़कर मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने गर्दन पर चाकू रखने पर भी ‘भारत माता की जय’ नहीं कहूँगा ऐसा बेतुका बयान दे डाला.
स्वाधीनता के पश्चात पिछले 70 सालों में छद्म सेक्युलॅरिजम ने देशभक्ति से जुड़ी हुई अनेक संकल्पनाओं को विपरीत संदर्भ दिया और देशभक्ति के प्रकटीकरण का खुलेआम विरोध बेशर्मी से करने की मानसिकता को बढ़ावा दिया. देशभक्ति और देशप्रेम के बारे में बेशर्मी भरे बयान देने में गर्व का अनुभव करने तक, ऐसे बयान देने वालों को संरक्षण एवं सम्मान देने तक यह स्तर नीचे गिर गया है. स्वाधीनता संग्राम में जो बातें देशभक्ति की, राष्ट्रीयता की पहचान बनी हुई थी उन्हें विरोध करने में अपना राजनीतिक अस्तित्व ढूँढने की बेशर्मी लोग करने लगे हैं. वंदे मातरम् यह स्वाधीनता संग्राम का मंत्र बन चुका था. लेकिन अब वंदे मातरम् कहने का विरोध होता है. भारत माता की जय इस जयघोष में कहीं भी मूर्ती की कल्पना दूर-दूर तक नहीं थी. यह देशभक्ति भरा जयघोष था. अब कहा जा रहा है कि भारत माता की जय कहना इस्लाम के विरोध में है.
इस देश में अल्पसंख्यकवाद और तुष्टीकरण की राजनीति ने सामाजिक, राष्ट्रीय विषयों के संदर्भ और परिभाषा को उलट कर रख दिया है. स्वाधीनता संग्राम में वंदे मातरम्, भारत माता की जय, भगवा ध्वज, शिवाजी जयंती, गणेशोत्सव, हिंदुस्थान ये सब बातें राष्ट्रीय थीं, जिन्हें अब स्वाधीनता के पश्चात साम्प्रदायिक कहा जा रहा है.
जेएनयू का विवाद चल रहा था, तब एक पाठक का मुझे फोन आया. वह साम्यवादी कार्यकर्ता लग रहा था. मेरे बोलने में हिंदुस्थान यह नाम आते ही उसने फोन पर विरोध प्रकट करते हुए कहा कि हिंदुस्थान नहीं भारत कहो. इस देश को भारत यह नाम संविधान में अधिकारिक तौर पर दे दिया है. मैंने उन्हें कहा क्या भारत माता की जय कहने के लिए वे आग्रह करेंगे. तो उनके पास इसका जबाब नहीं था. उन्होंने फोन काट दिया.
सय्यद शहाबुद्दीन ने राष्ट्रध्वज की वंदना के लिए सख्ती ना बरतने की बात कही थी, अब ‘भारत माता की जय’ ना कहने की बात ओवैसी जैसे लोगों ने कही है. इस्लाम के रिलीजियस कारणों को आगे रखकर देशभक्ति को दांव पर लगाने की छूट लेने का एक प्रयोग कुछ लोग करना चाहते हैं. धर्मनिरपेक्षता की रट लगाने वाले स्वयं घोषित सेक्युलर भी ऐसे लोगों का पक्ष लेकर मैदान में उतरने लगे हैं. इन लोगों की धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा ही अलग है. सभी पंथ, पूजा पद्धति से निरपेक्ष कानून, राजपाट, व्यवस्था होना इनकी दृष्टी से धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा नहीं है. इसके संपूर्णत: विपरीत इनकी धर्मनिरपेक्षता का वास्तविक स्वरूप है. इनका कहना है कि, अलग-अलग पूजा पद्धति अनुसार कानून ही अलग-अलग हो, राजव्यवस्था में पूजा पद्धति के अनुसार कुछ लोगों के लिए अलग व्यवहार हो. उपासना पद्धति के अनुसार अलग-अलग व्यवहार को ही इन लोगों ने ‘सर्व-धर्म- सम- भाव’ का नाम दिया है. विषम भाव को ही समभाव कहने का साहस यह धर्मनिरपेक्षता की घोर विडंबना है. इसी तुष्टीकरण और अल्पसंख्यकवाद के चलते कुछ लोगों का साहस इतना बढ़ गया है कि, ओवेसी जैसों ने कह डाला कि गर्दन पर छुरी रखोगे तो भी ‘भारत माता की जय’ नहीं कहेंगे.
भारत माता की जय का विरोध करने वाले इसलिए विरोध कर रहे हैं कि भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसका समर्थन करते हैं. संघ का अंधविरोध करने के लिए देशभक्ति की भावना को भी नकारने के लिए ये लोग तैयार हैं. क्या भारत माता की जय का जयघोष आरएसएस ने तैयार किया है ? अण्णा हजारे के भ्रष्टाचार निर्मूलन के आंदोलन में मंच पर रखे भारतमाता के चित्र को भी यह कह कर विरोध किया गया था कि यह चित्र आरएसएस के लोगों ने प्रचलित किया है. वास्तविकता क्या है ?
वास्तव में भारत माता की संकल्पना और भारत माता का चित्र संघ की स्थापना के पहले से ही स्वाधीनता संग्राम की प्रेरणा बने थे. भारत माता की जो तस्वीर आज हम देखते हैं, उसे 19वीं सदी के आखिरी समय में स्वाधीनता सेनानियों ने तैयार किया था. किरण चंद्र बनर्जी ने एक नाटक लिखा था जिसका टाइटल था, “भारत माता,’ इस नाटक का प्रदर्शन सन 1873 में किया गया था. यहीं से ’भारत माता की जय’ का नारा शुरू हुआ . सन् 1882 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने ’आनंदमठ’ नामक उपन्यास में पहली बार ’वंदेमातरम’ यह गीत देश को दिया. भारत माता का एक तस्वीर में वर्णन करने का श्रेय अबनींद्रनाथ टैगोर को जाता है. उन्होंने भारत माता को चार भुजाओं वाली देवी दुर्गा के रूप की तरह दिखाते हुए एक पेंटिंग तैयार की थी. यह देवी एक हाथ में एक पुस्तिका पकड़े और गेरूए रंग के कपड़े पहने थी. इस तस्वीर ने उन दिनों देशवासियों की भावनाओं को देश की स्वाधीनता के लिए मजबूत करने का काम किया था. स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता ने इस पेंटिंग को और विस्तृत किया. उन्होंने भारत माता को हरियाली से भरी धरती पर खड़ा दिखाया, जिनके पीछे एक नीला आसमान था और उनके पैरों पर कमल के चार फूल थे. चार भुजाएं आध्यात्मिक ताकत का पर्याय बनीं. इसके बाद आजादी की लड़ाई में सक्रिय रहे सुब्रहमण्यम भारती ने भारत माता की व्याख्या गंगा की धरती के तौर पर की और भारत माता को शक्ति के तौर पर पहचाना. और भी कुछ दिलचस्प बातें हैं जैसे सन् 1936 में महात्मा गांधी ने वाराणसी स्थित काशी यूनिवर्सिटी में भारत माता के मंदिर का उद्घाटन किया था. हरिद्वार में विश्व हिंदू परिषद की ओर से एक भारत माता मंदिर का निर्माण वर्ष 1983 में किया गया. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस मंदिर का उद्घाटन किया था. भारतीय सेना को जोश देने वाला ’भारत माता की जय’ यह नारा अब भारतीय सेना का ध्येय वाक्य बन गया है.
लेकिन जब तुष्टीकरण की बात सामने आई तो सभी काँग्रेस के लोग, सारे तथाकथित वामपंथी ‘भारत माता की जय’ के विरोध में खड़े दिखाई दे रहे हैं.
आचार्य गोविंददेव गिरी महाराज ने एक भाषण में कहा था कि ‘भारत माता की जय’ यह मात्र एक जयघोष नहीं है, यह भारतवर्ष को परमवैभव की अवस्था तक ले जाने का एक मंत्र है. हमें यह सोचना होगा कि इस मंत्र की सिद्धी कैसे करें ?
भारत माता की जय का मंत्र सिद्ध करने का एक सरल मार्ग इस देश को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने दिखाया है. इसे सिद्ध करने हेतु अपनी जीवन शैली को बदलना होगा. अपने निजी जीवन में जाति, पंथ, भाषा के संकुचित विचार को छोड़कर समरसता का भाव आचरण में लाने का अर्थ है भारत माता की जय. इस मंत्र की सिद्धि, निजी स्वार्थ को भुला कर देश और समाज के हित में सोचने का और क्रिया करने का अर्थ है भारत माता की जय की सिद्धि. देश और समाज पर आए हर संकट को झेलने के लिए तत्परता से स्वयंसूचना से ही तैयार हो जाने का अर्थ है भारत माता की जय मंत्र की सिद्धि! देश और समाज के हित के लिए अपना अहंकार, अपनी पहचान, अपना स्वार्थ सब भूलकर अग्रसर हो जाने में ही भारत माता की जय मंत्र की सिद्धि है.
संघ के एक गीत में कुछ पंक्तियाँ ऐसी हैं –
स्वतंत्रता को सार्थक करने, शक्ति का आधार चाहिए.
‘भारत माता की जय’ जैसे राष्ट्र की जयचेतना के मंत्र की सिद्धि के लिए संगठित शक्ति का आधार चाहिए. भारत माता की जय इस विषय में विवाद उत्पन्न होने पर रा. स्व. संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत ने जो विचार व्यक्त किए थे उनका स्मरण हर वक्त हमारे मन, मस्तिष्क में रहना चाहिए. उन्होंने कहा था कि, ‘हम सकारात्मक शक्ति इतनी बड़ी मात्रा में संगठित करें कि केवल भारतवर्ष में ही नहीं पूरे विश्व के लोग भारत माता की जय का जयघोष स्वयंस्फूर्ति से करें.’ ऐसी निर्णायक शक्ति का संचार देश में करने हेतु हम कितनी योग्यता, तत्परता और समर्पण के साथ अग्रसर होते हैं, इस पर सब कुछ निर्भर करता है.
लेखक – दिलीप धारुरकर

लालच देकर करवाया जा रहा मतांतरण

खटीमा, उत्तराखंड (विसंकें). उत्तराखण्ड के खटीमा के वनगवां गांव में मतांतरण को लेकर हंगामा हो गया. कई ग्राम वासियों ने व्यक्ति पर लोगों को जबरन मतातंरण के लिए उकसाने और बाध्य करने का भी आरोप लगाया है, जिसे ग्रामीणों ने बंधक बना लिया और बाद में लोगों ने उसे पुलिस को सौंप कर खटीमा कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज की.
वनगवां गांव में सिख समुदाय के लोगों को एक व्यक्ति द्वारा मतांतरण के लिए उकसाने की सूचना मिली. गांव के ही एक घर में जगदीश नाम के एक युवक को लोगों ने पकड़ लिया. गुरुद्वारा परिसर में ही लोगों को मतांतरण के लिए उकसाने का आरोप उस व्यक्ति पर लगाया, लेकिन वह खुद को निर्दोष बताता रहा. गुरुद्वारा परिसर में सभा कर सिख समुदाय के लोगों ने रघुलिया, लैलापुरी, पचपेड़ा, बिहारीपुर, हल्दी सहित अन्य ग्रामीणों से लालच में आकर धर्म परिवर्तन न करने की अपील की. उन्होंने आरोप लगाया कि खटीमा के गरीब लोगों को लालच देकर कुछ लोग धर्म परिवर्तन करवाकर जबरन ईसाई बना रहे हैं. स्थानीय ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि क्षेत्र में मतांतरण कराने वाले विभिन्न संगठनों के लोग गांव-गांव घूमकर गरीब लोगों को लालच देकर हिन्दू धर्म से मतांतरित कर ईसाई बना रहे हैं. मतांतरण के लिए उन लोगों को कुछ संगठनों से मोटा कमीशन मिल रहा है. इस प्रक्रिया में कुछ क्षेत्रीय लोग भी शामिल हैं.
कोतवाली में हिन्दूवादी संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया. हिन्दू जागरण मंच के सदस्य ठाकुर जितेंद्र सिंह ने लोगों को लालच देकर धर्म परिवर्तन कराने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने की मांग की.

नयी एफडीआई नीति का भारत को कोई लाभ नहीं होगा – स्वदेशी जागरण मंच

जोधपुर (विसंकें). स्वदेशी जागरण मंच के अखिल भारतीय संगठक कश्मीरी लाल जी ने कहा कि चीन द्वारा भारत की एनएसजी में सदस्यता के विरोध को लेकर क्षोभ प्रकट करता है क्योंकि भारत का अधिकांश व्यापार घाटा चीन से वस्तुओं के आयात के कारण ही है. चाहे मसूद अजहर हो या लखवी जैसे आंतकवादियों के समर्थन में भी चीन खड़ा रह कर भारत के प्रति अपनी शत्रुता हर अन्तरराष्ट्रीय मंच पर प्रकट करता है. ऐसे में भारतीय सरकार का व लोगों का चीनी वस्तुओं का आयात करना शत्रु राष्ट्र का आर्थिक पोषण करना है. इसलिए स्वदेशी जागारण मंच राष्ट्र व्यापी अभियान चला कर चीनी वस्तुओं के बहिष्कार करने का सरकार व जनता का आह्वान करता है. वह जोधपुर प्रवास के दौरान वीरवार को पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे.
पिछले दिनों जिस प्रकार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के दरवाजे भारत सरकार ने खोले हैं, ये भी अत्यन्त दुखदायी विषय है. स्वदेशी जागरण मंच प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सदा से विरोध करता रहा है और आगे भी करता रहेगा. एफडीआई से रोजगार बढ़ने की सम्भावना तलाशना महज मृगमरिचिका है. पूरी दूनिया में इस समय रोजगार विहिन विकास का दौर चल रहा है और जब से भारत ने विदेशी निवेश को बढ़ाया है, तभी से बेरोजगारी में वृद्धि हुई है. गत 12 वर्षों में मात्र 1.6 करोड़ रोजगार सृजित हुए हैं, जबकि 14.5 करोड़ लोगों को इसकी तलाश थी. यदि यूएनओ की संस्था की मानें तो दुनियाभर में 41 प्रतिशत एफडीआई ब्राउन फील्ड में आयी है अर्थात पुराने लगे उद्योगों के ही उन्होंने हथियाया है, कोई नया उद्योग शुरू नहीं किया.
दूसरी और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का जोर केवल स्वचालित या रोबोट प्रणाली द्वारा निर्माण व उत्पादन करने का रहता है. जिसके चलते रोजगार की सम्भावनाएं समाप्त हो रही है. इसी प्रकार से विदेशी पूंजी जितनी आती है, उससे दुगुनी से भी अधिक पूंजी रॉयल्टी व लाभांश आदि द्वारा विकसित देश गरीब देशों से निकाल लेते है. आज तक न ही कोई उच्च तकनीकि किसी देश को इन कम्पनियों द्वारा दी गयी है.
स्वदेशी जागरण मंच का स्पष्ट मानना है कि नयी एफडीआई नीति का कोई लाभ भारत को नहीं होगा. बल्कि नुकसान एक से बढ़कर एक अवश्य होंगे. 09 अगस्त क्रांति दिवस से “एफडीआई वापस जाओ” के उद्घोष के साथ पूरे देश में प्रत्येक जिला स्तर पर मंच द्वारा सरकार की एफडीआई नीति का विरोध शुरू होगा. आगामी 03 व 04 सितम्बर 2016 को  दिल्ली मंच के सभी पदाधिकारी एकत्र होकर आगे की रणनीति तय करेंगे.
तीसरा मुद्दा जेनेरिक व भारतीय सस्ती दवाईयों का है. आज दुनिया भर के 35 प्रतिशत मरीज भारत की सस्ती दवाईयों पर आश्रित हैं. ऐसे में यदि 74 प्रतिशत ब्राउन फील्ड निवेश ओटोमेटिक रूट से 100 प्रतिशत सरकारी अनुमति के कारण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से भारत के इस व्यवसाय पर हमला करना खतरनाक है. यह न केवल हमारे फार्मा सेक्टर को अपूरणीय क्षति पहुंचाएगा, बल्कि साथ ही साथ दुनिया की गरीब जनता का, जैनरिक दवाई के नाते, एक मात्र भारतीय विकल्प भी छिन जाएगा.
मंच के प्रदेश संयोजक धर्मेन्द्र दूबे ने जानकारी दी कि मंच के प्रदेश कार्यकर्ताओं का सम्मेलन 20 व 21 अगस्त 2016 को अलवर में आयोजित होगा, जिसमें मंच की प्रदेश टोली इन मुद्दों पर व्यापक आंदोलन की रणनीति तय करेगी.

Thursday, July 28, 2016

ABVP DECRIES DELAY IN CIRCULATING +2 BOOKS

Bhubanneswar,28/7:-Members of Akhil Bharatiya Vidyarthi Parishad (ABVP) on Wednesday protested the delay in circulation of Plus II books on demand even as Chief Minister Naveen Patnaik directed the concerned authorities to provide the books by August 15.
Staging a demonstration in front of the State Text Book Bureau Office here slammed the Government for not facilitating providing books despite the beginning of academic session.
“Before introducing the new curriculum, the State Government has not done proper homework. Neither it develops infrastructure properly nor distributes books as per the upgraded CBSE pattern curriculum,” said ABVP city office secretary Nirakar Sahu.
“Though the Government has changed the course curriculum but books are yet to be provided to the student which is highly deplorable,” said ABVP State secretary Abhilash Panda.
Raining doubts about the completion of the course within the stipulated time, Panda said now there is a need of 230 classes to complete CBSE patterned course. “We have doubts whether the classes can be completed with the academic year itself,” Panda said.
ABVP secretary Gama Sigma, Prabhudatta Samal, Balakrushana Mandal, Laxmipriya Sahu, Rajendra Sahu, Itishri Sahu, Pragyanshree Acharya, Santosha Panda and Prativa Balabantray led the agitation.

सुरेशराव केतकर संघरूप नहीं थे, संघ ही उनका जीवन था – सुरेश भय्या जी जोशी

पुणे (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भय्या जी जोशी ने कहा कि सुरेशराव केतकर संघरूप नहीं थे, बल्कि संघ ही उनका जीवन था. जीवनाच्या अंतिम क्षणापर्यंत ते संघ जगले. एक प्रखर तेज से चमकने वाले तेजस्वी व्यक्तित्व तथा आदर्श व्यक्तित्व के जो मानदंड हम मानते हैं, वे सारे गुण उनमें थे. सरकार्यवाह जी पुणे में केसरी वाडा स्थित लोकमान्य तिलक सभागार में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में वरिष्ठ प्रचारक एवं पूर्व सह सरकार्यवाह स्व. सुरेशराव केतकर जी को श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे थे. मंच पर पश्चिम महाराष्ट्र प्रांत संघचालक नानासाहेब जाधव तथा पुणे महानगर संघचालक रवींद्र वंजारवाडकर भी उपस्थित थे.
सरकार्यवाह जी ने स्व. सुरेशराव केतकर के विशेष गुणों के बारे में कहा कि सुरेशराव का जीवन अंतिम क्षण तक संघरूप था. व्यक्तिगत जीवन में सरलता की जो परिसीमा होती है, वह उनमें थी. सरलता ही उनके जीवन का तेजस्वी रूप था. उनके व्यवहार में कहीं भी कृत्रिमता नहीं थी. कठोर कर्मठता, सरल व्यवहार, सबके लिए आत्मीयता, नरम स्वभाव, इनके साथ अत्यंत कर्मठता से जीवन जीने वाले सुरेशराव का जीवन अत्यंत विलोभनीय था. वे सबको हमेशा उत्साहित करते रहते. हमेशा कुछ सीखने की उनकी दुर्दांत इच्छाशक्ति होती थी.
उन्होंने समय के अनुरूप बदलने वाले संघरचना के नए विषय आत्मसात किए. अंतिम क्षण तक उनकी सीखते रहने की मानसिकता कायम थी, इसकी याद दिलवाते हुए भय्या जी जोशी ने कहा कि “ये सारे बदलाव उन्होंने अपने स्वीकृत जीवनलक्ष्य के लिए, उसके प्रति अपनी निष्ठा के लिए सीख लिए थे और वह भी नेतृत्व पर अपार विश्वास रखकर. ‘विकसित भावे, अर्पित होउन जावे’ इन गीतों की पंक्तियों की तरह वे जीए.” इसके साथ ही स्व. सुरेशजी का चलना, बोलना, गणवेश, संचलन, विचार शक्ति आदि उनके व्यक्तित्व के अंग सबको आकर्षितकरने वाले थे. गंभीर स्वभाव, मन में अत्यंत भावुकता, आत्मीयता आदि उनके स्वभाव की अन्य विशेषताएं थी. सुरेशजी के काम में कई बारीकियां थीं, नियोजन था. उन्होंने कहा कि “मैंने उन्हें सर्वप्रथम सन् 1969 में प्रथम वर्ष में देखा था. तब से मन ही मन लगता था कि हमें सुरेशजी जैसा ही होना चाहिए. उनके पारस स्पर्श के कारण कईयों का जीवन सोना बन गया.”
सरकार्यवाह जी ने कहा कि रुग्णावस्था में भी वे हमेशा संघ का ही विचार करते थे, यह अनुभव सभी कार्यकर्ताओं ने कई बार लिया था. “हम हमेशा कहते हैं कि संस्कार सीधे मन में गहरे तक जाना चाहिए, उसकी अनुभूति सुरेशजी की ओर देखकर, उनका अनुभव लेकर आती है. ऐसे व्यक्तित्वों का सान्निध्य प्राप्त होना, उन्हें समझना यह हमारा भाग्य है. चर्चा सुनाई देती है, कि जिनके पांव पर सर रखें, ऐसे पांव मिलना आजकल दुर्लभ हो गया है, लेकिन भाग्य से संघ में आज भी ऐसे पांव है जो ध्येय समर्पित व्यक्तियों के है और जहां विनम्र हुआ जा सकता है.” उन्होंने आह्वान किया कि सुरेशराव केतकर जिस मार्ग पर चले, उसी मार्ग पर चलने के लिए हमें प्रयासरत रहना चाहिए. इससे पूर्व श्रद्धांजलि सभा में संजय कुलकर्णी ने उनकी स्मृतियां संजोने वाला एक वीडियो प्रस्तुत किया. कार्यक्रम का सूत्रसंचालन सुधीर गाडे ने किया तथा शांतिमंत्र के साथ सभा का समापन हुआ.
हाथ में लिया हुआ काम अंत तक ले जाए बिना आराम नहीं…..
हाथ में लिया हुआ काम अंत तक ले जाए बिना आराम करते हुए मैंने उन्हें नहीं देखा, यह कहते हुए भय्याजी जोशी ने स्व. सुरेशराव केतकर के विषय में एक अविस्मरणीय किस्सा सुनाया. जो बिल्कुल जीवंत प्रतीत हो, जो सबको प्रेरणा दे, ऐसी डॉ. हेडगेवार जी की एक प्रतिमा नागपुर कार्यालय में स्थापित करने का निर्णय हुआ. इसकी जिम्मेदारी सुरेशराव केतकर पर सौंपी गई. उन्होंने इस प्रतिमा के लिए अथक कष्ट उठाते हुए नौ बार प्रतिमा के विभिन्न नमूने पूरे देश में यात्रा कर इकठ्ठा किए और सबको दिखाए. उस अवसर पर कईयों ने उन्हें पूछा कि इतनी भागदौड़ क्यों करते हो? तब उन्होंने कहा कि प्रतिमा ऐसी बननी चाहिए, जो सबको पसंद आए. जब तक प्रतिमा सबको परिपूर्ण न लगे, मैं इसके लिए प्रयास करता रहूँगा. यही अनुभव डॉ. हेडगेवार जी की जन्मशती के समय उन पर बनाई गई फिल्म ‘केशव – संघ निर्माता’ के समय हुआ था.’

Wednesday, July 27, 2016

सत्य, तप, पवित्रता और करुणा, चार घटकों से ही धर्म का अस्तित्व – डॉ. मोहन भागवत जी

नई दिल्ली. प्रो. वेद प्रकाश नंदा द्वारा संकलित एवं प्रभात प्रकशन द्वारा प्रकाशित पुस्तकCompassion in 4 Dharmic Traditionका विमोचन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने किया. उन्होंने पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में कहा किकरुणा के अभाव में क्या-क्या हो रहा है. ये सब वर्तमान में हम सभी अनुभव कर रहे हैं, समाचार पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से पढ़ भी रहे हैं तथा न्यूज़ चैनलों के माध्यम से टीवी स्क्रीन पर देख भी रहे हैं. इसे बताने की आवश्यकता नहीं है. करूणा के बिना धर्म नहीं है अर्थात धर्म का अस्तित्व ही नहीं हो सकता है. धर्म के चार घटक हैं – सत्य, तप, पवित्रता और सबसे महत्वपूर्ण और इसके बिना ये तीनों भी अधूरे हैं, वह है – “करुणा.” करूणा के बिना धर्म टिक भी नहीं सकता. दुःख की बात है कि आजकल की दुनिया में करुणा का लोप हो गया है.
उन्होंने कहा कि सत्य की कठोरता को जीवन में उतारने के लिए करूणा की शक्ति रूपी छननी से उतारना होता है. मनुष्य के नाते ये कर्तव्य नहीं कि वो किसी को दुखों से बहार निकाल दे. बल्कि, उसके अन्दर करुणा का भाव भर दे. करुणा जिस मनुष्य के अंतःकरण में विद्यमान हो जाएगी, वह स्वतः ही दुखों का निवारण कर लेगा अर्थात जिसके अन्दर करुणा का भाव होगा, वह कभी भी द्वेष से ग्रसित नहीं होगा. जब द्वेष ही इंसान के अन्दर नहीं होगा तो उसे दुःख कहाँ से ग्रसित करेगा?
सरसंघचालक जी ने कहा कि जो सबको ठीक रखता है, एक साथ जो सबको सुख देता है, एक साथ जो सबको प्रेम देता है, उसी को धर्म कहते हैं. उसी को तो खुशी कहते हैं. यानि ये सभी क्रियांएँ मनुष्य के अन्दर सम्पन्न होती हैं सिर्फ और सिर्फ एक ही तत्व से, वह तत्व है करुणा का भाव. ये सभी एक साथ साधने वाली बात ही धर्म है. धर्म के चार घटक हैं. पर, उसका सबसे उत्तम घटक करुणा है. जिस भी मनुष्य में करुणा नहीं है तो उसकी अर्थात धर्म की धारणा ही नहीं है.
डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि कई बार जड़वाद के चलते धर्म में अतिवादिता उत्पन्न होती है. जो ठीक नहीं है और ये भी सत्य है कि धार्मिक परंपराएँ कर्मकांड नहीं होती हैं. कुछ सौं वर्षों से हमने अपनी परम्पराओं को छोड़कर, भुलाकर ऊपर के छोर को पकड़ना शुरू कर दिया है. जिससे समाज में उत्पात मचा हुआ है. धर्म के तीनों तथ्यों सत्य, तप और पवित्रता को चरित्रार्थ करने के लिए करूणा की आवश्यकता होती है. बौद्ध धर्म बुद्ध को करूणा का अवतार कहते ही नहीं, बल्कि मानते हैं. उन्होंने कहा कि सारे विश्व में करूणा के आभाव में जो स्वार्थ और तांडव चला हुआ है. उसे समाप्त करने के लिए संसार में करूणा का प्रचालन शुरू करना होगा. जिसे संसार में फिर से हिन्दू यानी हिंदुस्तान ही आगे बढ़ा सकता है अर्थात विश्व का मार्गदर्शन करेगा. करूणा को अपने अन्दर लेकर जब हम सभी चलेंगे तो एक दिन ऐसा समय आएगा कि फिर से हम सभी जिस धर्म की स्थापना करना चाहते हैं उसे साकार कर देंगे.
कार्यक्रम में लाल कृष्ण अडवाणी जी ने कहा कि इस पुस्तक को लिखकर प्रो. वेद जी हिन्दू, बौद्ध, जैन और सिख धर्म के भावों के बारे में बताया है. इन चारों धर्मों में एक ही भाव है और वही इनका मूल भी है. वह भाव करूणा है और करूणा से ही धर्म है अर्थात धर्म में करूणा है. इन चारों अलग-अलग धर्मों में जिसे भी विश्वास है. उनको करुणा का भाव सीखाने के लिए या कहूँ कि हम सभी के अन्दर जगाकर अंतःकरण में स्थापित करने के लिए प्रो. वेद जी ने Compassion in 4 Dharmic Tradition को हम सभी के सामने प्रस्तुत किया है. जो दूसरे धर्मों की निंदा करता है, वह कभी अपने धर्म का भी हितैषी नहीं हो सकता. क्योंकि, उसके अन्दर करुणा का भाव नहीं होता है. जब कोई भी व्यक्ति सभी धर्मों की विचारधारा को मानते हुए, अपने धर्म की विचारधारा से मिलान कराता है. तो वह कभी भी अपने धर्म को नहीं छोड़ता. बल्कि, वह अपने धर्म की करूणा के भाव को प्रदर्शित करता है. प्रो. वेद प्रकाश नंदा द्वारा संकलित एवं प्रभात प्रकशन से पुस्तक Compassion in 4 Dharmic Tradition’ के विमोचन का कार्यक्रम स्पीकर हॉल, कांस्टीट्यूशन क्लब, नई दिल्ली में संपन्न हुआ. कार्यक्रम में मंच संचालन प्रभात प्रकाशन के प्रभात कुमार ने किया.

कारगिल की विजयगाथा अमरगाथा बन चुकी है – अरूण कुमार जी

भोपाल. लेफ्टिनेंट जनरल सैय्यद अता हसनैन ने कहा कि कारगिल की जीत का श्रेय हमारे शहीद जवानों के साथ उनके परिवार, सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व एवं देश की सामूहिक एकजुटता को जाता है. इस युद्ध में हमारे देश की मीडिया की भूमिका भी बहुत सशक्त थी, जिसे नकारा नहीं जा सकता है. वह रविंद्र भवन में कारगिल विजय के 17 वर्ष पूर्ण होने पर आयोजित स्मृति दिवस समारोह में संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि हमारी जिस युवा पीढ़ी की हम आलोचना करते हैं, उसने कारगिल यु़द्ध में भाग लेकर अपनी देशभक्ति का जज्बा दिखाकर यह साबित कर दिया कि वह अपने देश के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार है. समारोह में उपस्थित कारगिल युद्ध में भाग लेने वाले कर्नल ओपी मिश्रा, शहीद देवाशीष और अजय प्रसाद के माता पिता को सम्मानित करते हुए अता हसनैन ने कहा कि देश के ऐसे सभी शहीदों के परिवारों को नमन है.
समारोह में देश के जाने माने चिंतक, विचारक अरूण कुमार जी ने कारगिल में शहीद हुए कमलेश पाठक, विक्रम वर्मा, मनोज पांडे, विक्रम पाणिकर, कुलदीप सिंह, मेजर विवेक सहित कारगिल में शहीद हुए सभी जवानों के संस्मरण सुनाते हुए कहा कि कारगिल का युद्ध साधारण युद्ध नहीं था, यह बहुत बड़ी अग्नि परीक्षा थी, जहां माईनस 25 डिग्री शुष्क हवा और 18 हजार फीट की ऊंचाई पर शत्रु दिखाई नहीं देता था. कारगिल की विजय गाथा के पीछे सेना के अदम्य साहस और भारतीय सेना की गौरवशाली परंपरा की जीत है, जो एक अमरगाथा बन चुकी है.
समारोह में मेजर एसके सपरा ने भी उद्बोधन दिया. कार्यक्रम में बाल आयोग के अध्यक्ष डॉ. राघवेन्द्र शर्मा, इंडिया फाउंडेशन के निदेशक आलोक बंसल सहित सेना के कई अधिकारी, सैनिकों के परिवार के सदस्य, विद्यालयों के छात्र-छात्राएं और गणमान्यजन उपस्थित थे.

Monday, July 25, 2016

संपूर्ण समर्पण का उदाहरण थे सुरेशराव केतकर जी – डॉ. मोहन भागवत जी

लातूर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि स्व. सुरेशराव का जीवन यानी संपूर्ण समर्पण. सुरेशराव जी आज हमारे बीच नहीं रहे, पर उनके होने का एहसास जब तक रहेगा तब तक वह हमारे बीच रहेंगे. उनके स्वभाव विशेष के कारण वो अपनी अलग छाप छोड़ जाते थे. सरसंघचालक जी ने लातूर में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में अपने श्रद्धासुमन अर्पित किये. सुरेश राव केतकर अपने अंतिम दिनों में लातूर में ही रह रहे थे.
सरसंघचालक जी ने कहा कि वह अत्यंत कर्तव्य कठोर व नियमों का पालन करने वाले स्वयंसेवक थे. वह बौद्धिक से पूर्व उसके लिये बिन्दुशः पूरी तैयारी करते थे. अखिल भारतीय शारीरिक शिक्षण प्रमुख रहते हुए पूर्णता पर जोर देते थे, 55 वर्ष की आयु में उन्होंने 15 किमी की मेराथन दौड़ में भाग लिया और उसे सफलता से पूर्ण भी किया.
सुरेश जी पहले कार्य को पूर्ण करते थे, उसके पश्चात इसके संबंध में सबको बताते थे. अखिल भारतीय पदाधिकारी होते हुए भी सुरेश जी किसी स्वयंसेवक से माफी मांगने में संकोच नहीं करते थे, न ही ऐसा करने में कभी हीन भावना आई. सुरेश जी अपने अंतिम समय में बहुत कुछ भूले, मगर संघ की प्रार्थना नहीं भूलेसंघ की शाखा नहीं भूले, आज्ञा नहीं भूले, अंतिम समय मे भी उनको बौद्धिक बिन्दुशः कंठस्थ थे. सुरेश जी अपने तन मन से जो जो त्याग कर सकते थे, वह किया और जो त्याग नहीं कर सकते थे, उसका संघ कार्य के लिये उपयोग किया.
उनके जीवन का चिंतन करके उनके जैसे जीवन जीने का हम प्रयास करें, यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी. कार्यक्रम में विभाग संघचालक व्यंकट सिंह चौहान जी,पूजा केतकर जीउदय लातुरे जीदेवगिरी प्रांत कार्यवाह हरीश भाऊ कुलकर्णी जी,किसान संघ के अखिल भारतीय संगठन मंत्री दिनेश जी कुलकर्णी, तथा सुरेश जी अंतिम समय में सुश्रुषा करने वाले विनोद खरे जी ने अपने अनुभव बताए. श्रद्धांजलि सभा में नगर के स्वयंसेवकों सहित गणमान्यजन उपस्थित थे. शांति मंत्र के साथ सभा का समापन हुआ.

समाचार को सत्य, मंगलकारी और सकारात्मक होना चाहिए – जे. नंद कुमार जी

नोएडा. प्रेरणा मीडिया नैपुण्य संस्थान द्वारा दो दिवसीय नागरिक पत्रकारिता प्रशिक्षण शिविर संपन्न हुआ. इसमें नोएडा के साथ-साथ वैशाली, गाजियाबाद, फरीदाबाद, ग्रेटर नोएडा और दिल्ली के कुल 58 प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया. समापन सत्र के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे. नन्द कुमार जी थे, जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार बल्देव भाई शर्मा ने की. शिविर के 23 जुलाई को उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक केजी सुरेश थे.
शिविर के समापन सत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे. नन्द कुमार जी ने कहा कि पत्रकारिता सत्यं शिवं सुंदरम की अभिव्यक्ति है. समाचार को सत्य होना चाहिए, मंगलकारी होना चाहिए तथा सुंदर अर्थात् सकारात्मक भी होना चाहिए. दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि आजकल समाचारों में एकांगी सत्य परोसा जा रहा है. आज समाज को बांटने के लिए पत्रकारिता हो रही है. आज की पत्रकारिता मिशन की जगह व्यावसायिक हो रही है. उन्होंने कहा कि यह नागरिक पत्रकारिता का युग है. सोशल नेटवर्किंग साइट के साथ-साथ प्रिन्ट और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया में भी नागरिक पत्रकारिता को महत्ता मिल रही है और इसके माध्यम से समाज जीवन में नई चेतना जाग रही है. आज सोशल मीडिया के कारण समाज जीवन की अभिव्यक्ति को दबाना कठिन हो गया है. अब पत्रकारिता में गेटकीपिंग की व्यवस्था के कारण लोग सोशल मीडिया की तरफ उन्मुख हो रहे हैं. इस नवीन माध्यम ने संचार में फीडबैक की महत्ता को आत्मसात किया है. यही कारण है कि यह सही अर्थों में लोक माध्यम बन गया है. उन्होंने विभिन्न प्रांतों से नागरिक पत्रकारिता प्रशिक्षण के लिए आये प्रतिभागियों को शुभकामनाएं दी और नागरिक पत्रकारिता के विभिन्न मंचों का सदुपयोग करने की प्रेरणा दी.
कार्यशाला के पहले दिन केजी सुरेश ने कहा कि सोशल मीडिया भी नागरिक पत्रकारिता में महत्वपूर्ण हथियार साबित हो सकता है. साथ ही एक जागरुक नागरिक को संपादन के नाम पत्र आदि गतिविधियों द्वारा अखबारों, टीवी समाचार चैनलों, पत्रिकाओं से संवाद स्थापित करना चाहिए. पाठकों व दर्शकों के फीडबैक के जरिए समाचार संस्थाओं को उनकी रुचि और वह क्या चाहते हैं, इसका पता चलता है.
तीसरे सत्र में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अरुण कुमार भगत ने समाचार की अवधारणा, तत्व एवं प्रकार पर विस्तार से प्रकाश डाला. पत्रकारिता के विभिन्न माध्यमों के संबंध में प्रो. अनिल निगम तथा इलैक्ट्रॉनिक मीडिया की बारीकियों के बारे में राकेश योगी ने विस्तार से बताया.
मीडिया कार्यशाला के दूसरे दिन गलगोटियाज विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के डीन प्रो. अमिताभ श्रीवास्तव ने सोशल मीडिया, इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय दिल्ली के पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष प्रो. सीपी सिंह ने नागरिक पत्रकारिता तथा मानव रचना विश्वविद्यालय फरीदाबाद के पत्रकारिता विभागाध्यक्ष डॉ. सुरेश नायक ने पत्रकारिता की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और वर्तमान चुनौतियों से अवगत करवाया.
राष्ट्रवाद की पत्रकारिता के समक्ष चुनौतियां विषय पर वरिष्ठ पत्रकार बल्देव भाई शर्मा ने विस्तार से प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि भारत में राष्ट्रवाद की अवधारणा अनादि काल से रही है. भारत के लोगों की सांस्कृतिक चेतना ही उसे एक राष्ट्र के रूप में व्याख्यायित करती रही है. यह ठीक है कि अंग्रेजों के शासन से पूर्व भारत अनेक रियासतों में बंटा था, किन्तु हमारी सांस्कृतिक विरासत और राष्ट्रीय धरोहर के कारण निर्मित पहचान तथा चिंतन परंपरा भारत को एक राष्ट्र के रूप में महिमामंडित कर रहा है. उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता उत्तर क्षेत्र प्रचार प्रमुख नरेन्द्र ठाकुर ने नागरिक पत्रकारिता प्रशिक्षण शिविर की उपयोगिता पर विस्तार से प्रकाश डाला. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्रीय प्रचार प्रमुख माननीय कृपाशंकर जी ने मीडिया कार्यशाला के कार्य योजना के विषय में विस्तार से बताया.

आज न्यूज की जगह व्यूज़ परोसे जा रहे – शलभ मणि त्रिपाठी

लखनऊ (विसंकें). वरिष्ठ पत्रकार शलभ मणि त्रिपाठी ने कहा कि राजनीति की तरह पत्रकारिता भी वोट बैंक की तरह हिस्सों में बंट रही है. यहां भी विषय और एजेण्डा वोट बैंक की तरह सोच रखकर तय किया जा रहा है. न्यूज की जगह व्यूज परोसे जा रहे हैं. यह पत्रकारिता के लिए शुभ संकेत नहीं हैं. शलभ मणि विश्व संवाद केन्द्र में लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान और उत्तर प्रदेश समाचार सेवा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित (पत्रकारिता का बदलता परिवेश) विषय पर संगोष्ठी में विचार व्यक्त कर रहे थे.
संगोष्ठी में मुख्य अतिथि शलभ मणि त्रिपाठी ने कहा कि आज की पत्रकारिता में विषय और कवरेज का एजेण्डा उसी तरह तय किया जा रहा है, जैसे राजनीतिक दल अपना वोट बैंक देखकर रणनीति बनाते हैं. पत्रकारिता अब समाज की नहीं वर्गों की हो गई है. यह हिस्सों में बंट गई है, किसी का एजेण्डा सिर्फ मुसलमान है तो किसी का हिन्दू, कोई सिर्फ पिछड़ों में और दलितों में खबर देख रहा है तो कोई अगड़ों में ही. उन्होंने कहा कि आज पत्रकारिता का संक्रमण काल है. बड़ी-बड़ी चुनौतियां हैं, सबसे बड़ी चुनौती तो अन्दर से है. जहां, हम और आप काम कर रहे हैं, उन्हीं संस्थानों के भीतर भी चुनौती का सामना करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि आने वाला समय और भी कठिन और चुनौतीपूर्ण है. हो सकता आप जब भविष्य में पत्रकारिता करें तो मुंह पर एक टेप भी लगा दिया जाए. यानि की प्रतिबंधों के बीच पत्रकारिता करनी पड़ेगी. यह प्रतिबंध कोई और नहीं बल्कि विज्ञापन नियंत्रित पत्रकारिता होगी. यह पत्रकारिता के लिए शुभ नहीं हैं. ऐसे में अच्छी बात यह है कि सोशल मीडिया आ गया है. अब यह समानान्तर मीडिया बन रहा है. 4जी तकनीक आने के बाद डिजिटल मीडिया के रूप में क्रांति आ जाएगी.
जर्नलिस्ट बने एक्टिविस्ट
उन्होंने उदाहरण देकर पत्रकारिता के पक्षपातीय रवैये पर भी चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा कि पत्रकारिता के यह स्वरूप भी चिंतनीय हैं, जब जेएनयू के कुछ अलगाववादी छात्रों की गिरफ्तारी के विरोध में एक चैनल ने अपनी स्क्रीन काली कर दी थी. इस चैनल ने अपनी स्क्रीन उस समय काली नहीं की थी, जब आतंकवादियों ने संसद पर हमला किया था. अब जर्नलिस्ट, एक्टिविस्ट बन रहे हैं. वह एजेण्डा तय कर रहे हैं. एकपक्षीय पत्रकारिता हो रही है. दस लाख रुपये के ईनामी आतंकी बुरहान बानी के मारे जाने पर एक चैनल ने ऐसा दिखाया, जैसे कोई नेता मारा गया हो, जबकि वह सेना के कर्नल मुनीन्द्र राय का हत्यारा था. लेकिन यह पत्रकारिता नहीं है. एकपक्षीय संवाद लिखने और दिखाने से ऐसा लगने लगा है कि जैसे कोई इस्लामाबाद में बैठकर खबर लिख रहा हो.
बदलाव तभी सार्थक होंगे, जब लोकमंगल की भावना से हों
संगोष्ठी में वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सूचना आयुक्त वीरेन्द्र सक्सेना ने कहा कि पत्रकारों को समाज के दुख-दर्द को समझ कर पत्रकारिता करनी चाहिए. पत्रकार समाज का दर्पण बनें. इस क्षेत्र में निरंतर चुनौतियां है, इसलिए चुनौतियों का सामना करते हुए कार्य करना पडेगा. दैनिक प्रभात के सम्पादक पारस अमरोही ने कहा कि पत्रकारिता के परिवेश में बदलाव होते रहना चाहिए. क्योंकि बदलेंगे नहीं तो जड़ हो जाएंगे. लेकिन इस बदलाव का लाभ सिर्फ किसी एक पक्ष के लिए नहीं होना चाहिए. यह सबका शुभ करने वाला हो तो सार्थक बदलाव माना जाएगा. जब पत्रकारिता मुनाफे का रूप ले लेती है तो सवाल खड़े होने लगते हैं. ऐसी स्थिति में जनमानस पत्रकारों पर सवाल उठाने लगते हैं. बदलाव तभी सार्थक होंगे, जब यह लोकमंगल की भावना से हों.
पत्रकार बनना आसान, धर्म निभाना कठिन
पत्रकार डॉ. एस.के.पाण्डे ने कहा कि पत्रकार होना आसान है, किन्तु पत्रकार का धर्म निभाना अत्यधिक कठिन है. पत्रकार को राग द्वेष से ऊपर उठना पड़ेगा, और कठिन परिश्रम करना पड़ेगा. तभी वह पत्रकार धर्म का निर्वहन कर सकता है. इस मौके पर उत्तर प्रदेश समाचार सेवा द्वारा प्रकाशित पत्रकारिता विशेषांक का लोकार्पण किया गया.

Saturday, July 23, 2016

Sureshrao Ketkar a Role Model of Dedicated Life – Dr. Mohan Bhagwat Ji

Nagpur. Senior pracharak and former Sharirik Pramukh Sureshrao Ketkar was a sparkling example of a perfectly dedicated life. He relentlessly worked for the nation and the society. He accepted, adopted and imbibed the RSS in his personality and lived for it all through his life to maintain a flow of its tradition. A firm resolve to continue with that tradition will be the true tribute to this great soul, said Sarsanghchalak Dr. Mohan Bhagwat Ji here on Thursday. Sarsanghchalak Ji was speaking at a condolence meeting organized to mourn the loss of Sureshrao Ketkar Ji who passed away recently at Latur after a prolonged illness.
The meeting held at Dr. Hedgewar Smriti Mandir premises was attended by Rashtra Sevika Samiti Pramukh Sanchalika Shantakka, former MP Banwarilal Purohit and others. Vidarbh Prant Sanghchalak Dadarao Bhadke Ji, Sah sanghchalak Ram Harkare Ji, Nagpur Mahanagar Sanghchalak Rajesh Loya Ji, Sah sanghchalak Shridhar Gadge Ji shared the dais with Sarsanchachalak Ji on this occasion.
Recalling the virtues and qualities of the late Suresh Ji, Dr. Mohan Bhagwat Ji said that though Sureshrao Ji left this mortal world, he would never cease to exist through his works, and the mission he worked for. He was so dedicated to his mission, that even after suffering for Parkinson’s disease, Ketkar Ji in spite of memory loss, would recall his Bouddhik correctly point by point in the perfect order. This continued till he breathed his last.
He said that Ketkar was forced to take rest by the doctors attending him because he was very much eager to carry on with his work in spite of his falling health. Dr. Bhagwat Ji also recalled his association with Ketkar Ji and narrated some incidents that spoke about his qualities as RSS pracharak and a nice individual. He said that when Ketkar Ji imbibed the values he used to tell the swayamsevaks to follow. He would take excessive labour for imbibing those qualities in his person. Ketkar Ji was a self-disciplined swayamsevak who would always ensure perfection in his actions and works, be it delivering a bouddhik to the swayamsevaks or making his uniform perfect as Akhil Bhartiya Sharirik Pramukh. His endeavour was aimed at perfection and excellence. Once he had to deliver a lecture in Kerala and everyone insisted that it should be in English. Suresh Ji not only translated all his notes into English but created an audio cassette and listened to it multiple times to ensure that the lecture will be flawless.
At a senior age also, he participated in a semi marathon and completed it by running 15 kms at a stretch. He was very strict in maintaining discipline, careful about the qualities of each and every swayamsevak and made efforts to hone them with motherly affection and concern. Sureshrao Ketkar Ji was a role model for all RSS swayamsevaks and those associated with various other organizations to follow in their life, Sarsanghchalak Ji said.
Dr. Bhagwat Ji also recalled Ketkar Ji’s style of careful scrutiny of facts and events while working on several projects that included among others making a film of RSS founder Dr. Hedgewar’s life. Those who came in contact with Ketkar Ji even for a brief period cannot forget him. He left a permanent imprint of his character, work and personality on everybody’s mind and heart. He was a true RSS volunteer by his body, mind and soul.
Shridhar Gadge made introductory remarks and cited some of the best qualities of Ketkar Ji and shared some of his memories.
Tributes were paid to late Ketkar Ji by a host of organizations including Rashtra Sevika Samiti, VHP, BKS, VKA, ABVP, BJP, Vigyan Bharati, Grahak Panchayat, Bhartiya Shikshan Mandal, Bharat Vikas Parishad, Sanskar Bharati, Pune Sewa Sadan and others.
Nagpur Mahanagar Sah Karyawah Arvind Kukde Ji conducted the program that concluded with Prarthana.

Tuesday, July 19, 2016

Supreme Court, Siding With RSS, Warns Rahul Gandhi About Defamation

राहुल गांधी माफी मांगें या न्यायालय में केस का सामना करें – सर्वोच्च न्यायालय

नई दिल्ली. सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को राहुल गांधी से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को महात्मा गांधी का हत्यारा बताने के मामले (मानहानि केस) में माफी मांगने या फिर मानहानि केस में ट्रायल का सामना करने को कहा. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को मारा या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगों ने महात्मा गांधी को मारा, इन दोनों बातों में काफी अंतर है. मामले की अगली सुनवाई 27 जुलाई को होगी, जिसमें राहुल को पक्ष रखने के लिए कहा है.
न्यायालय ने सुनवाई के बाद मंगलवार को कहा कि “आप किसी को पब्लिकली क्रिटिसाइज नहीं कर सकते. हम सिर्फ यह जांच कर रहे हैं कि उन्होंने ( राहुल गांधी ने) जो बयान दिए क्या वो मानहानि के दायरे में हैं या नहीं. हालांकि, कोर्ट ने कहा कि आपको केस में ट्रायल फेस करना चाहिए.”
“राहुल को यह साबित करने की जरूरत थी कि आरएसएस के खिलाफ दिया बयान लोगों के हित में था. चूंकि यह ट्रॉयल से जुड़ा मामला था.”
सुनवाई के दौरान राहुल गांधी के वकीलों ने उनके बयान को सही ठहराने की कोशिश की. और दलील दी कि यह ऐतिहासिक फैक्ट है. इसके अलावा सरकारी रिकॉर्ड में यह दर्ज है.
न्यायालय ने कहा कि “यदि राहुल गांधी खुद को डिफेंड करना चाहते हैं और माफी मांगने के लिए तैयार नहीं हैं तो यह अच्छा होगा वे ट्रॉयल का सामना करें.”
लोकसभा चुनावों के दौरान 06 मार्च 2014 को भिवंडी क्षेत्र में प्रचार सभा में राहुल गांधी ने कहा था कि महात्मा गांधी की हत्या संघ के लोगों ने की. जिसके खिलाफ संघ के भिवंडी तालुका कार्यवाह राजेश कुंटे ने भिवंडी प्रथम वर्ग न्यायदंडाधिकारी के पास शिकायत कर मानहानि याचिका दायर की थी. कुंटे की तरफ से अधिवक्ता गणेश धारगलकर ने पक्ष रखा. न्यायदंडाधिकारी के सामने प्रारंभिक सुनवाई के दौरान राहुल गांधी पर लगाए आरोपों की पुष्टि होने के बाद उनके खिलाफ सम्मन जारी किया गया और न्यायालय में उपस्थित होने के आदेश दिये. जिसके खिलाफ राहुल गांधी ने मुंबई उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हुए याचिका दायर कर अपने खिलाफ जारी हुए सम्मन तथा केस को खारिज करने की प्रार्थना की. जिस पर सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति एमएल टहलीयानी ने कांग्रेस उपाध्यक्ष को किसी भी प्रकार की अंतरिम राहत देने से मना कर दिया. कनिष्ठ न्यायालय के सामने चल रही सुनवाई जारी रखने और उनके सामने अपनी बात विस्तार से रखने के आदेश भी दिए थे. उच्च न्यायालय से राहत न मिलने पर राहुल गांधी ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की और केस रद करने की मांग की थी. याचिका पर सुनवाई के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को फैसला सुनाया.

Tuesday, July 12, 2016

Bharat Parikrama Yatra enters Andhra Pradesh; Sitaram Kedilaya completes 20000KM by walk on Day-1436






 Bhubaneswar July 12, 2016: Aimed for awareness about Graam Vikas, RSS Pracharak and former Akhil Bharatiya Seva Pramukh Sitarama Kedilaya lead Bharat Parikrama Yatra has entered Andhra Pradesh on Wednesday morning of July 13, 2016. Andhra Pradesh became the 22nd state to which Bharat Parikrama Yatra had entered. Yatra entered from Chatua village of Koraput district of Odisha to Araku village of Vishakhapattanam District of Andhra Pradesh.
68 year old Sitrama Kedilaya completed nearly 20,000 KM by his mega walkathon on Day-1436 visiting nearly 1850 villages of 22 different states.

This 5-year mega walkathon Bharat Parikrama Yatra expected to conclude at Kanyakumari on GuruPoorinma Day of July 9, 2017.
Began on August 09, 2012 from Kanyakumari, Bharat Parikrama Yatra completed Day-1436, covering a distance of approximately 20,000km by walk. Bharat Parikrama Yatra had entered Chhattisgarh on Wednesday morning of May 25, 2016, Chhattisgarh became the 21st state to which Bharat Parikrama Yatra had entered. Yatra entered from Baragada district of Odisha to Raigarh District of Chattisgarh.  In Chhattisgarh, Sitarama Kedilaya had met spiritual leader Baba SatyaNarayana Swamy. Later Yatra entered border district of Odisha, then entered to Andhra Pradesh. BharaThe Yatra to proceed to Southern India, to visit prominent places including VishakhaPattanam, Shreeshailam, Puttaparti, Tirupati, Muddenahalli of Chikkaballapura in Karnataka (Border Zone), then to Tamilandu’s Tiruvannamalai, Pondichery, and to proceed till Kanyakumari. Bharat Parikrama Yatra expected to conclude at Kanyakumari on Ashadha Poornima or GuruPoorinma Day of July 9, 2017.
68 year old Sitarama Kedilaya has now completed approximately over 20,000 kilometers by his mega walkathon. Bharat Parikrama Yatra visited over 1850 villages of 22 states so far, creating awareness about conservation of water, ecology and rural Indian values in daily life.
Earlier, RSS Sarasanghachalak Mohan Bhagwat joined Bharat Parikrama Yatra on September 08, 2013 at Seekar district of Rajasthan. RSS chief echoed the aims and concept of the Bharat Parikrama Yatra which was aiming the upliftment of rural Indian life. Bhagwat stressed on the conservation of water, soil, Cow, all forms natural resources. Mohan Bhagwat wished Kedilaya for the successful completion of Bharat Parikrama Yatra. This is the second visit of RSS Sarasanghachalak in the same year, who earlier joined Yatra in January 2013 at Panvel of Maharashtra.
Elaborating on the yatra, Sitarama Kedilaya said that a span of about 10 kilo metres will be covered on a daily basis by foot, after which he will take rest in the village that falls in the vicinity. The primary task he has to undertake will be to get in touch with the youth and the prominent members of the village and discuss important issues like care of sick. This will include the handicapped, blind etc. Other activities like taking a round of the entire village and engaging in a collective session of prayer at the village temple. This will help create a bond of great depth with the people, which will help the villagers realize that villages were, once upon a time, a single encompassing family. However, this feeling has taken a back seat now, which has led to a whole lot of problems everywhere. This has now escalated to national and international levels. The feeling of unity, along with creation of family bonds, if brought back to villages will ensure restoration of harmony to a great extent. This could be instrumental in the rekindling of the concept of ‘Vasudha Eva Kudumbakam’. And then, the journey will resume to the next village. 
Sitaram Kedilaya has dedicated a slogan for the purpose. “Know Bharat, be Bharat and Make Bharat Vishwaguru”. The reason for the yatra is clear. The current trends that prevail are businesslike and commercial , where life is being seen only in terms of trade and profit. This unfortunately has given rise to poverty, unemployment and corruption everywhere. Another trend that prevails is that the world is now a battlefield, with life being nothing but constant strife. This thought stream has led to violence, terrorism and an existence hand with deadly weapons everywhere. This has led to deep turbulence and instability, with people all over the world making a mad scramble for any straw that will provide them with peace. And then this makes them realize that the road to solitude, ultimately happens to be Bharat. It is here that the relevance of the third and most important trend comes into being: “The world is a family and life is a revelation”.
Images of Bharat Parikrama Yatra in Odisha last week July 2016: