Monday, July 25, 2016

आज न्यूज की जगह व्यूज़ परोसे जा रहे – शलभ मणि त्रिपाठी

लखनऊ (विसंकें). वरिष्ठ पत्रकार शलभ मणि त्रिपाठी ने कहा कि राजनीति की तरह पत्रकारिता भी वोट बैंक की तरह हिस्सों में बंट रही है. यहां भी विषय और एजेण्डा वोट बैंक की तरह सोच रखकर तय किया जा रहा है. न्यूज की जगह व्यूज परोसे जा रहे हैं. यह पत्रकारिता के लिए शुभ संकेत नहीं हैं. शलभ मणि विश्व संवाद केन्द्र में लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान और उत्तर प्रदेश समाचार सेवा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित (पत्रकारिता का बदलता परिवेश) विषय पर संगोष्ठी में विचार व्यक्त कर रहे थे.
संगोष्ठी में मुख्य अतिथि शलभ मणि त्रिपाठी ने कहा कि आज की पत्रकारिता में विषय और कवरेज का एजेण्डा उसी तरह तय किया जा रहा है, जैसे राजनीतिक दल अपना वोट बैंक देखकर रणनीति बनाते हैं. पत्रकारिता अब समाज की नहीं वर्गों की हो गई है. यह हिस्सों में बंट गई है, किसी का एजेण्डा सिर्फ मुसलमान है तो किसी का हिन्दू, कोई सिर्फ पिछड़ों में और दलितों में खबर देख रहा है तो कोई अगड़ों में ही. उन्होंने कहा कि आज पत्रकारिता का संक्रमण काल है. बड़ी-बड़ी चुनौतियां हैं, सबसे बड़ी चुनौती तो अन्दर से है. जहां, हम और आप काम कर रहे हैं, उन्हीं संस्थानों के भीतर भी चुनौती का सामना करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि आने वाला समय और भी कठिन और चुनौतीपूर्ण है. हो सकता आप जब भविष्य में पत्रकारिता करें तो मुंह पर एक टेप भी लगा दिया जाए. यानि की प्रतिबंधों के बीच पत्रकारिता करनी पड़ेगी. यह प्रतिबंध कोई और नहीं बल्कि विज्ञापन नियंत्रित पत्रकारिता होगी. यह पत्रकारिता के लिए शुभ नहीं हैं. ऐसे में अच्छी बात यह है कि सोशल मीडिया आ गया है. अब यह समानान्तर मीडिया बन रहा है. 4जी तकनीक आने के बाद डिजिटल मीडिया के रूप में क्रांति आ जाएगी.
जर्नलिस्ट बने एक्टिविस्ट
उन्होंने उदाहरण देकर पत्रकारिता के पक्षपातीय रवैये पर भी चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा कि पत्रकारिता के यह स्वरूप भी चिंतनीय हैं, जब जेएनयू के कुछ अलगाववादी छात्रों की गिरफ्तारी के विरोध में एक चैनल ने अपनी स्क्रीन काली कर दी थी. इस चैनल ने अपनी स्क्रीन उस समय काली नहीं की थी, जब आतंकवादियों ने संसद पर हमला किया था. अब जर्नलिस्ट, एक्टिविस्ट बन रहे हैं. वह एजेण्डा तय कर रहे हैं. एकपक्षीय पत्रकारिता हो रही है. दस लाख रुपये के ईनामी आतंकी बुरहान बानी के मारे जाने पर एक चैनल ने ऐसा दिखाया, जैसे कोई नेता मारा गया हो, जबकि वह सेना के कर्नल मुनीन्द्र राय का हत्यारा था. लेकिन यह पत्रकारिता नहीं है. एकपक्षीय संवाद लिखने और दिखाने से ऐसा लगने लगा है कि जैसे कोई इस्लामाबाद में बैठकर खबर लिख रहा हो.
बदलाव तभी सार्थक होंगे, जब लोकमंगल की भावना से हों
संगोष्ठी में वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सूचना आयुक्त वीरेन्द्र सक्सेना ने कहा कि पत्रकारों को समाज के दुख-दर्द को समझ कर पत्रकारिता करनी चाहिए. पत्रकार समाज का दर्पण बनें. इस क्षेत्र में निरंतर चुनौतियां है, इसलिए चुनौतियों का सामना करते हुए कार्य करना पडेगा. दैनिक प्रभात के सम्पादक पारस अमरोही ने कहा कि पत्रकारिता के परिवेश में बदलाव होते रहना चाहिए. क्योंकि बदलेंगे नहीं तो जड़ हो जाएंगे. लेकिन इस बदलाव का लाभ सिर्फ किसी एक पक्ष के लिए नहीं होना चाहिए. यह सबका शुभ करने वाला हो तो सार्थक बदलाव माना जाएगा. जब पत्रकारिता मुनाफे का रूप ले लेती है तो सवाल खड़े होने लगते हैं. ऐसी स्थिति में जनमानस पत्रकारों पर सवाल उठाने लगते हैं. बदलाव तभी सार्थक होंगे, जब यह लोकमंगल की भावना से हों.
पत्रकार बनना आसान, धर्म निभाना कठिन
पत्रकार डॉ. एस.के.पाण्डे ने कहा कि पत्रकार होना आसान है, किन्तु पत्रकार का धर्म निभाना अत्यधिक कठिन है. पत्रकार को राग द्वेष से ऊपर उठना पड़ेगा, और कठिन परिश्रम करना पड़ेगा. तभी वह पत्रकार धर्म का निर्वहन कर सकता है. इस मौके पर उत्तर प्रदेश समाचार सेवा द्वारा प्रकाशित पत्रकारिता विशेषांक का लोकार्पण किया गया.

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