भुवनेश्वर : अखिल भारतीय साहित्य परिषद ओडिशा शाखा क्षेत्र की साहित्य आलोचना बैठक शैलश्री बिहार सरस्वती शिशु मंदिर हुई। इसमें उत्कलीय नववर्ष परंपरा व पंचसखा युग के अवदान पर चर्चा हुई। बैठक में शामिल सात जिलों 23 प्रतिनिधियों ने दो सत्र में इन विषयों पर अपने विचार रखे। प्रो. रघुनाथ पंडा की अध्यक्षता चले प्रथम सत्र में ओड़िया नववर्ष को बुद्धिजीवियों ने सांस्कृतिक धरोहर बताते हुए इस दिन बनने वाले पड़ा की विधि को वैज्ञानिक बताया। एन दास ने कहा कि समाज को एक सूत्र में बांधने के लिए मनीषियों द्वारा पर्व व त्योहार की परिकल्पना की गई है। परिषद के प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. नरेश चंद्र पाणी की अध्यक्षता में हुए दूसरे सत्र में पंचसखा युग पर चर्चा हुई। इसमें डॉ. बसंत पंडा ने पंचसखा युग को ओड़िया साहित्य का स्वर्णकाल बताते हुए कहा कि इस काल में लोक साहित्य की रचना हुई जो बाद में ओड़िया भाषा का आधार बनी। सारला दास की ओड़िया महाभारत हो या फिर जगन्नाथ दास की भागवत अथवा अच्युतानन्द दास की हरिवंश हो या फिर बलराम दास की दाडी रामायण, ये सभी ग्रंथ हमारे जनमानस को आंदोलित करने वाली कृतियां साबित हुई। इसके बाद परिषद के साधारण संपादक संतोष महापात्र के संयोजन में काव्य गोष्ठी भी हुई। जिसमें युवा कवियों ने अपनी- अपनी रचनाएं सुनाई। -
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