Wednesday, June 01, 2016

सामाजिक एकजुटता के लिए समरसता का होना अत्यंत आवश्यक – प्रो. चमनलाल जी

शिमला (विसंकें). रविवार को नाहन में मातृवन्दना संस्थान शिमला द्वारा सामाजिक समरसता विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया. संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में हिमाचल विश्वविद्यालय के इक्डोल विभाग के एसोसिएट प्रो. चमनलाल बंगा उपस्थित रहे,जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता पचेरी विवि झुनझुनू राजस्थान के प्रति कुलपति प्रो. शिवराज सिंह ने की. कार्यक्रम की जानकारी एवं मंचस्थ महानुभावों का परिचय मातृवन्दना संस्थान शिमला के सचिव राजेश कुमार बंसल ने करवाया. कार्यक्रम में स्थानीय वक्ताओं ने भी समरसता के बारे में विचार लोगों के समक्ष रखे. कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती विद्यामंदिर की छात्राओं द्वारा मंगलगान जीवन में कुछ करना है तो मन के मारे मत बैठो’ के गान से हुआ.
मुख्य वक्ता प्रो. चमनलाल बंगा ने कहा कि सामाजिक एकजुटता के लिए समरसता का होना बेहद जरूरी है. अंग्रेजों ने इतने वर्ष भारत पर राज किया, उनकी सफलता के पीछे उस समय हमारे समाज में विद्यमान रही छुआछूत जैसी कुरीतियां रही हैं. इन कुरीतियों के कारण ही समाज में कई विभाजनकारी शक्तियां पैदा हो गयी थीजिसने सामाजिक एकता को तहस-नहस कर दिया. उसी के परिणामस्वरूप अंग्रेजों ने भारत पर अपनी सत्ता को लंबे समय तक कायम रखा. आजादी प्राप्ति के लिए जब सारे समाज ने एकजुट प्रयास किया तो देश ने अपनी खोयी हुई स्वाधीनता को पुनः प्राप्त किया. उन्होंने कहा कि समाज में एकजुटता से समाज हर चुनौती से लड़ सकता है. उन्होंने जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए लोगों का आह्वान किया.
नाहन में संगोष्ठी (3)कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. शिवराज सिंह ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि लोग जातिगत भेदभाव छोड़ें तथा राष्ट् की विभाजनकारी शक्तियों से लड़ने के लिए एकजुट हो जायें. इस देश में कुछ लोग ऐसे हैं जो अच्छे कार्यों में भी राजनीति करते हैं. आज भारत जैसे देश मेंभारतमाता की जय’ और वंदेमातरम् जैसे उद्घोषों का बहिष्कार इसी का एक उदाहरण है. इसी का परिणाम है कि देश में आज राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है. जिस देश में पैदा हुए, जिस देश की भूमि ने पालन पोषण और संवर्धन किया, उसी मातृभूमि के टुकड़े करने को उद्यत लोगों को इस देश में रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है. उन्होंने ऐसे तत्चों को जड़ से उखाड़ने के लिए लोगों से अपील करते हुए कहा कि ऐसे नासूरों के खिलाफ सख्ती से निपटने की आवश्यकता है. अन्य वक्ताओं ने भी सामाजिक समरसता को बनाये रखने के बारे में अपने विचार प्रकट किये. कार्यक्रम में काफी संख्या गणमान्य लोग उपस्थित रहे.
नाहन में संगोष्ठी (2)

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