शिमला (विसंकें). स्वदेशी जागरण मंच भारतीय खाद्य प्रसंस्करण एवं खाद्य बाजार में सरकार द्वारा विदेशी निर्भरता को बढ़ावा देने वाले विदेशी निवेश एवं जीएम तकनीकयुक्त फसलों का पुरजोर विरोध करेगा. बुधवार को स्वदेशी जागरण मंच के अखिल भारतीय सह विचार प्रमुख सतीश कुमार जी ने शिमला में प्रैसवार्ता में कहा कि सरकार खाद्य-प्रसंस्करण एवं खाद्य बाजार में सौ फीसदी निवेश खोल रही है, जिसका सीधा असर किसानों पर पड़ेगा. इससे बीजों के लिए पूरी तरह विदेशों पर निर्भर हो जाएंगे. इसके अलावा जेनेटकली मोडिफाईड तकनीक से तैयार की जा रही फसलों को बढ़ावा देने का भी विरोध मंच द्वारा किया जायेगा. आनुवांशिक अभियांत्रिकी परिवर्तित प्रणाली से फसलों के बदले गये जीनों का प्रकृति पर दूरगामी असर पड़ेगा. यह तकनीक आज भले ही लाभकारी दिखाई दे रही हो, लेकिन इस प्रणाली में पौधों में किये गये बदलावों का प्रकृति पर पड़ने वाले दूरगामी प्रभावों पर अभी तक विस्तृत अध्ययन नहीं किया गया है. इसलिए स्वदेशी जागरण मंच का मानना है कि इसे शीघ्रता से नहीं अपनाया जाना चाहिए.
सतीश कुमार जी ने कहा कि आज कृषि क्षेत्र में जैविक कृषि को अपनाने पर बल दिया जाना चाहिए. जैविक कृषि न केवल प्राकृतिक रूप से सुरक्षित तकनीक है, बल्कि किसानों के लिए बेहद लाभकारी भी है. सेबों में किसी भी तरह के आयात का स्वदेशी जागरण मंच द्वारा विरोध किया जाएगा. इसके अलावा स्वदेशी जागरण मंच का पर्यावरण संरक्षण पर भी विशेष ध्यान रहेगा. हिमाचल में प्लास्टिक पर प्रतिबंध होने के बावजूद इसका प्रयोग किया जा रहा है, जिस पर पूर्णतया रोक लगाने के लिए भी मंच जन जागरूकता फैलाएगा. चीनी आयातित वस्तुओं की भरमार पर कहा कि इसकी गुणवत्ता सही नहीं होती, भले ही यह सस्ती होती है. इसकी गुणवता के बारे में लोगों को जागरूक किया जाएगा.
अक्षय ऊर्जा के रूप में सौर ऊर्जा के विकल्पों की ओर पूरा विश्व देख रहा है, ऐसे में स्वदेशी जागरण मंच सोलर एनर्जी के फायदे जन-जन तक पहुंचाएगा. सतीश कुमार ने कहा कि इस अभियान से हिमाचल के लोगों को ऊर्जा का एक सस्ता और स्थाई विकल्प उपलब्ध होगा. देश में सौर ऊर्जा का लक्ष्य 1 लाख मेगावाट रखा गया है. स्वदेशी जागरण मंच द्वारा भी लगातार सौर ऊर्जा को एक सुरक्षित ऊर्जा विकल्प के रूप में अपनाने के लिए सरकार पर लगातार दबाव बनाया जा रहा था, जिसके परिणामस्वरूप सरकार इस क्षेत्र में प्रयास करने के लिए तत्पर दिखाई दे रही है. अभियान के अंतर्गत विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और स्कूलों में संगोष्ठियां और संवाद के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे.
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