भोपाल (विसंकें). विचारक विनय सहस्त्रबुद्धे जी ने कहा कि एक नए भारत का उदय हो रहा है. इस उदयीमान भारत की कुछ आकांक्षाएं और अपेक्षाएं हैं. यह आकांक्षावान भारत किसी प्रकार के भ्रम में नहीं है, अपने गंतव्यों के प्रति वह स्पष्ट है. जनमानस में अब तक यह धारणा बन रही थी कि सब हमें ठगने के लिए आते हैं. यह धारणा टूट रही है. पहली बार है, जब यह धारणा बन रही है कि कुछ अच्छा होगा. देश में ऐसा वातावरण बनता दिख रहा है कि नए भारत के निर्माण में प्रत्येक व्यक्ति अपना योगदान करना चाहता है. वह अपनी भूमिका तलाश रहा है. लोक मंथन ऐसे युवा चिंतकों, विचारकों, कलाकारों और कर्मशीलों का अनूठा मंच है, जिनके विचारों और रचनाओं से राष्ट्र की अभिव्यक्ति होती है. निश्चित ही लोक मंथन से राष्ट्रीयता को मजबूती मिलेगी.
लोकमंथन की पृष्ठभूमि में ‘औपचारिक मानसिकता से मुक्ति’ विषय पर आयोजित मीडिया विमर्श कार्यक्रम में मुख्य वक्ता विनय सहस्त्रबुद्धे जी ने कहा कि समय आ गया है कि औपनिवेशिक मानसिकता से पूरी तरह मुक्ति पाई जाए. आज देश में हमारे सामने अवसरों के जनतंत्र का निर्माण हो रहा है. अब सपना देखना मुट्ठीभर लोगों तक सीमित नहीं रह गया है. सबके लिए अवसरों के दरवाजे खुल गए हैं. इसी समय में अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहीं कुछ विचारधाराएं भारत को अस्मिता की पहचान के प्रश्नों में उलझाकर बाँटना चाहती हैं. भारत तेरे टुकड़े होंगे – जब यह नारा लगता है, तब इन विचारधाराओं से जुड़े लोग विचलित नहीं होते हैं. क्योंकि, यह उनकी सोच के अनुरूप है. लेकिन, भारत का आम आदमी विचलित होता है, क्योंकि वह देश को जोड़ने की बात करता है. उसके लिए राष्ट्र पहले है. उन्होंने कहा कि जब ‘पहचान का प्रश्न’ उठाकर देश को बाँटने के षड्यंत्र किए जा रहे हैं, तब हमें सोचना चाहिए कि इन प्रश्नों में देश को जोड़ने वाले सूत्र कौन से हैं? हमें इन प्रश्नों को रचनात्मक ढंग से देखने की आवश्यकता है. छोटी अस्मिता (क्षेत्रीयता, भाषाई, जातीय इत्यादि) के प्रश्नों को नकारा नहीं जा सकता. बल्कि उन्हें बड़ी अस्मिता (राष्ट्रीयता) में समाहित करना चाहिए. यह प्रयास बड़ी पहचान अर्थात् राष्ट्रीयता को पुष्ट करने वाला है. यह ही लोक मंथन का भी उद्देश्य है.
उन्होंने कहा कि हमारा स्वर विविधता में एकता का है, एकता में विविधता का नहीं है. हमारी विविधता और एकता की जड़ें आध्यात्मिक जनतंत्र में हैं. लोक मंथन में राष्ट्रीयता (राष्ट्रवाद) पर भी चर्चा होगी. अभी संकुचित और पश्चिमी परिभाषाओं के दायरे में बांधकर राष्ट्रवाद पर चर्चा की जाती है. जबकि भारत की राष्ट्रीय कल्पना पश्चिम के मापदण्डों के हिसाब से कभी नहीं रही है. भारत राजनीतिक रूप से कभी भी एक नहीं रहा, बल्कि सदैव से सांस्कृतिक राष्ट्र रहा है.
चार चुनौतियों का समाधान देगा लोक मंथन
उन्होंने कहा कि देश के समक्ष लम्बे समय से चार चुनौतियाँ उपस्थित रही हैं. एक, उद्देश्यहीनता का संकट. दो, वास्तविकता और विश्वसनीयता का संकट. तीन, स्वामित्व या अपनत्व का संकट. चार, संबंधों का संकट. इन चारों संकटों का समाधान तलाशने का प्रयास लोक मंथन में किया जाएगा. लोक मंथन को किसी प्रकार का सांस्कृतिक, साहित्यिक और कला प्रदर्शन का सम्मेलन नहीं समझना चाहिए. यह राष्ट्र निर्माण का आयोजन है.
देश तोडऩे का प्रयास कर रही है ‘ब्रेकिंग इंडिया ब्रिगेड’
लोक मंथन आयोजन समिति के महासचिव जे. नंदकुमार जी ने कहा कि आजकल कुछ लोग देश को तोड़ने के सूत्र खोज रहे हैं. इस ‘ब्रेकिंग इंडिया ब्रिगेड’ का एजेंडा है कि कैसे देश को नुकसान पहुँचाया जाए. इसके लिए वह हर संभव प्रयास कर रहे हैं. लेकिन, उनका सफल होना असंभव है. क्योंकि, देश के सामान्य व्यक्ति के जीवन में भी राष्ट्रीयता प्रकट होती है. सामान्य लोग देश को एकसूत्र में बाँधकर रखे हुए हैं. उन सामान्य लोगों के जीवन में कैसे राष्ट्र प्रकट होता है, इसी पर लोकमंथन में विमर्श होगा. उन्होंने कहा कि जो देश को खंडित और नष्ट करने का सपना देखते हैं, उन्हें रवीन्द्रनाथ ठाकुर का एक कथन याद करना चाहिए. धर्म, पंथ, भाषा, जाति के नाम पर आपस के संघर्ष से यह देश एक दिन खत्म हो जाएगा, इस अवधारणा का विरोध करते हुए रवीन्द्रनाथ ठाकुर कहते थे कि भारत में विभिन्न पंथ और मत के लोग आपस में लड़कर समाप्त नहीं होंगे, बल्कि वह एक होने के सूत्र खोजेंगे. नंदकुमार जी ने कहा कि भारत में जैसी विविधता है, वैसी दुनिया के किसी देश में दिखाई नहीं देती है. बाहर से देखने पर भारत भले ही एक नहीं दिखाई देता होगा, लेकिन अंदर से यह एक सूत्र में बंधा हुआ है. देश को एक सूत्र में जोड़ने वाली कड़ी लोक है. लोकमंथन इसी लोक पर केंद्रित है. लोकमंथन ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ की सघन भावना से ओतप्रोत विचारकों, अध्येताओं और शोधार्थियों के लिए संवाद का मंच है, जिसमें देश के वर्तमान मुद्दों पर विचार-विमर्श और मनन-चिन्तन किया जाएगा. 12 से 14 नवंबर तक आयोजित होने वाले तीन दिवसीय लोक मंथन के दो हिस्से रहेंगे – मंच और रंगमंच. इसमें ज्यादातर भागीदारी 40 वर्ष तक के युवाओं की होगी. संगोष्ठी में संस्कृति मंत्री सुरेन्द्र पटवा भी उपस्थित थे. कार्यक्रम का संचालन प्रज्ञा प्रवाह के मध्यभारत प्रांत के सह संयोजक दीपक शर्मा ने किया.
लोक मंथन के लिए भूमिपूजन प्रज्ञा प्रवाह, मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग और भारत भवन के संयुक्त तत्वावधान में किया गया. लोक मंथन का आयोजन 12, 13 और 14 नवंबर को विधानसभा परिसर में होना है. इसके लिए मंगलवार को विधानसभा परिसर में भूमि पूजन किया गया. भूमि पूजन कार्यक्रम के दौरान विधानसभा अध्यक्ष सीताशरण शर्मा, सांसद एवं विचारक विनय सहस्त्रबुद्धे, लोक मंथन आयोजन समिति के महासचिव जे. नंदकुमार और संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री सुरेन्द्र पटवा उपस्थित थे.
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