Tuesday, December 23, 2014

जम्मू कश्मीर के 25 लाख विस्थापितों के मानवाधिकारों की बहाली की मांग

नई दिल्ली. जम्मू कश्मीर पीपल्स फोरम के एक प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के महासचिव श्री राजेश किशोर के साथ 22 दिसंबर को मुलाकात करके मांग की कि केंद्र सरकार और नई गठित होने वाली जम्मू कश्मीर राज्य सरकार को राज्य के उन विस्थापितों की समस्याओं के हल पर गंभीरता से ध्यान दे, जिनके मूलभूत मानवाधिकारों का पिछले 67 साल से हनन किया जा रहा है. प्रतिनिधि मंडल ने मानवाधिकार आयोग से अपील की कि वह देश भर में विस्थापितों के बारे में एक राष्ट्रीय नीति बनाने और जम्मू कश्मीर के विस्थापितों के लिये एकमुश्त राहत पैकेज जारी करने के लिये केंद्र सरकार को निर्देश जारी करे.
फोरम के राष्ट्रीय संयोजक श्री महेंद्र मेहता के नेतृत्व में इस प्रतिनिधिमंडल ने जम्मू कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन के जिन मामलों को प्रस्तुत किया, उनमें पाकिस्तान अधिकृत जम्मू कश्मीर (पीओजेके) से 1947 में विस्थापन के बाद राज्य के भीतर और बाहर बसे शरणार्थी; कश्मीर घाटी में आतंकवादी हिंसा के कारण विस्थापित हुए कश्मीरी हिंदू और सिख शरणार्थी; 1947 में पश्चिमी पाकिस्तान से आकर जम्मू में बसे शरणार्थी और; सीमा पर पाकिस्तानी बमबारी तथा आतंकवादी हिंसा के कारण अपने घर छोड़कर राज्य के दूसरे हिस्सों में बसे शरणार्थी शामिल हैं. इस सभी समाजों की कुल संख्या इस समय लगभग 25 लाख है.
प्रतिनिधिमंडल ने मानवाधिकार आयोग के सामने इस बात पर गहरा दुख और चिंता व्यक्त की कि कश्मीर घाटी के बहुमत का दुरूपयोग करते हुए राज्य सरकार के कश्मीरी नेतृत्व ने इन पीडि़त को राहत देने या उनकी समस्यों को हल कराने में सहयोग देने के बजाये पिछले 67 साल में केवल कानूनी अड़ंगे लगाकर इसमें रोड़े अटकाने का काम किया है.
पीड़ितों में पीओजेके से विस्थापित ऐसे लगभग 10 लाख शरणार्थी हैं, जिन्हें 1947 के बाद कश्मीर सरकार की सांप्रदायिक और जनविरोधी नीतियों के कारण राज्य से बाहर भागने पर मजबूर होना पड़ा. तब से इस समाज की तीन पीढि़यां जम्मू कश्मीर में अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करती आ रही हैं. लेकिन कश्मीर घाटी के नेतृत्व ने तरह-तरह के कानूनी और राजनीतिक अड़ंगे लगाकर ना तो इन लोगों को वापस आकर अपने राज्य में बसने का अधिकार दिया और ना उन्हें राज्य की चुनाव राजनीति की भागीदारी करने दी. इनके अलावा पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को पिछली तीन पीढि़यों से राज्य की नागरिकता से वंचित रखा जा रहा है. इनमें से लगभग डेढ़ लाख वोटरों को लोकसभा के चुनावों में वोट देने का अधिकार तो है लेकिन उन्हें इस बार भी विधानसभा चुनावों में वोट देने का अधिकार नहीं दिया गया.
जम्मू कश्मीर के इन शरणार्थी समाजों की ओर से जो मांगें आयोग के सामने रखी गयीं उनमें राज्य के पीओजेके शरणार्थियों का एक राष्ट्रीय रजिस्टर बनाने और इन पीड़ित समाजों के अधिकारों और समस्याओं पर ध्यान देने के लिये एक विशेष रिलीफ कमिश्नर नियुक्त करने की मांग भी शामिल है. इसके अलावा फोरम ने मानवाधिकार आयोग से अपील की है कि इन पीड़ित समाजों के सभी सदस्यों को अपने पैतृक जम्मू कश्मीर राज्य में बसने, वहां की नागरिकता पाने, शिक्षा और नौकरी पाने, सम्मान और सुरक्षा के साथ वहां रहने और केंद्र सरकार की सभी कल्याण योजनाओं का लाभ उठाने के साथ-साथ भारतीय संविधान में दिए गये सभी मानवाधिकारों की सुरक्षा पाने का भी अधिकार भी बहाल किया जाना चाहिये.

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