Friday, December 19, 2014

अरबों का संग्रहालय बनायेंगे संत

देहरादून (विसंके). षड्दर्शन संतों, अखाड़ों और महामंडलेश्वरों ने अरबों रुपये की संग्रहालय निर्माण योजना पर कार्य शुरू करने की घोषणा की है. योजना पर खर्च होने वाली अधिकांश धनराशि साधु-समाज देगा. प्रदेश सरकार ने इसके लिये आवश्यक भूमि देने पर सहमति दे दी है.
जयराम आश्रम में पीठाधीश्वर ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी के संयोजन में हुई बैठक में यह घोषणा की गयी. निर्माण कार्य अर्द्धकुंभ तक पूरा हो जाने का अनुमान है. बैठक में संतों के एक प्रतिनिधि मंडल द्वारा शीघ्र ही प्रधानमंत्री से भी भेंट करने का निश्टय किया गहया. बैठक में पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती ने गंगा संग्रहालय की आवश्यकता पर प्रकाश डाला.
ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी ने देश के इस प्रकार के अनेक विख्यात संग्रहालयों का विवरण दिया. कहा कि सबको साथ लेकर यह संग्रहालय बनाना अब उनके जीवन का लक्ष्य बन चुका है. जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी उमाकांतानंद ने विश्व भर के संग्रहालयों के बारे में बताया.
महामंडलेश्वर डॉ. श्यामसुंदर दास, महामंडलेश्वर अर्जुनपुरी, महामंडलेश्वर हरि चेतनानंद, निरंजनी अखाड़े के सचिव रामानंदपुरी, महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव शिवशंकर गिरि, स्वामी ऋषिश्वरानंद, बड़े अखाड़े के मोहन दास, नया अखाड़ा उदासीन के महंत भगतराम, आह्वान अखाड़े के शिवशंकर गिरि, निर्मल अखाड़े के संत महेंद्र सिंह, गंगा सभा के कार्यकारी अध्यक्ष गांधीवादी पुरुषोत्तम शर्मा आदि ने इस बैठक में भाग लिया.
इस संग्रहालय में गंगा के अवतरण, मार्ग, महत्व, संदर्भ आदि को प्रतिमाओं के माध्यम से बताया जायेगा. ध्वनि-प्रकाश माध्यम का उपयोग करते हुए भव्य स्टेज कार्यक्रम भी निरंतर चलेगा. गंगा से संबंधित संपूर्ण साहित्य संजोने के लिये विद्वानों की टीम गठित की जायेगी. गंगा सभा के अध्यक्ष पुरुषोत्तम शर्मा ने प्रस्ताव रखा कि हरिद्वार वासियों को फोन पर ‘हैलो’ की जगह फोन पर ‘जय गंगे मैया’ कहना चाहिये. मध्य भारत में जय श्रीकृष्ण, वृंदावन में राधे-राधे, अवध में राम-राम आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है. हरिद्वार का सारा कारोबार गंगा पर आधारित है. यहां के निवासियों को हर-हर गंगे, जय श्रीगंगा जी अथवा जय गंगे मैया शब्दों का प्रयोग फोन उठाते ही करना चाहिये. संत समाज ने तत्काल दोनों हाथ उठाकर प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. आज से ही फोन पर जय गंगे मैया शब्दों के प्रयोग के संदेश संतों द्वारा भेजे जा रहे हैं.

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