नागपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि भारत में पंथ, भाषा, परंपरा, पर्यावरण में विविधता है, फिर भी यह एकता की भूमि है. क्योंकि यहाँ हिन्दू बहुसंख्यक हैं और हिन्दू विचार की दृष्टि सबको स्वीकार करती है. ऐसे सबको स्वीकार करने वाले लोगों का देशव्यापी समूह निर्माण करने का काम संघ कर रहा है. सरसंघचालक जी नागपुर में संघ शिक्षा वर्ग तृतीय वर्ष के समारोप कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे. रेशीमबाग के मैदान पर आयोजित कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि नेपाल के पूर्व सेना प्रमुख रुक्मांगद कटवाल जी थे.
डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि भारत केवल अपने हित में ही नहीं विश्व के हित में सोचता है. यह इस देश की संस्कृति की देन है. विकसित होकर विश्व के लिए अर्पित होना, यह हमारी परंपरा है. हम शिव के वंशज हैं, विश्व कल्याण के लिए हलाहल पीते हैं. ऐसे उदाहरण देते हुए किसी का नाम लिए बिना सरसंघचालक जी ने कहा कि महाशक्तियाँ अनेक बन सकती हैं, लेकिन विश्व कल्याण ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की दृष्टि से हर कोई काम नहीं कर सकता. इसलिए जब अपने देश के स्वार्थ की बात आती है तो ब्रेक्ज़िट होता है, पैरिस में किये पर्यावरण से संबंधित करार तोड़ने की बात होती है. विश्व कल्याण का यह काम स्वभाव से सज्जनता की परंपरा निभाने वाला भारत ही कर सकता है और विश्व हमारी ओर इस आशा से देखता है. आज भी इस देश के लोगों की वृत्ति में राम, कृष्ण, सिक्ख गुरु, बुद्ध जीवित हैं. सब ठीक चल रहा है. लेकिन इससे जिनके स्वार्थ बाधित होते हैं, वे समाज में उत्पात मचाते हैं, यह तो होगा ही. इसका मुकाबला करने के लिए संघव्रत चलते रहना चाहिए, बढ़ते रहना चाहिए.
उन्होंने कहा कि संघ की स्थापना से पहले डॉ. हेडगेवार जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े थे, वे चाहते थे कि कांग्रेस गोवध पर पूर्ण रोक की घोषणा करे. उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सन् 1920 में नागपुर में आयोजित सम्मेलन में दो संकल्पों का प्रस्ताव किया था, जिनमें एक गोवंश के वध पर पूर्ण रोक से संबंधित था. डॉ. हेडगेवार जी सम्मेलन की तैयारियों के प्रभारी थे और उन्होंने कांग्रेस की नियमित समिति के समक्ष दो प्रस्ताव पेश किए थे.
रुक्मांगद कटवाल जी ने कहा कि भारत पर राज करने वाली ताकतों ने इसकी भाषा, संस्कृति और परंपरा को विकृत करने का प्रयास किया, देश को लूटा. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उस वैभव को पुनः प्राप्त करने के लिए प्रयासरत है. नेपाल में स्थित सीता के जन्मस्थल और भगवान पशुपतिनाथ के पौराणिक मंदिर का उल्लेख कर उन्होंने भारत और नेपाल के बीच के धार्मिक और सांस्कृतिक संबंधों को अधोरेखित किया.
संघ शिक्षा वर्ग में देशभर से 903 शिक्षार्थी आये थे. मंच पर विदर्भ प्रान्त सह संघचालक राम हरकरे जी, महानगर संघचालक राजेश लोया जी उपस्थित थे. कार्यक्रम का प्रास्ताविक और आभार प्रदर्शन वर्ग के सर्वाधिकारी पृथ्वीराज जी ने किया. कार्यक्रम में प्रशिक्षार्थियों ने योग एवं व्यायाम का प्रदर्शन किया.
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