मैं अभी-अभी अमरीका से लौटा हूं. वहां मैं अंतर्राष्ट्रीय सिख सेमीनार में हिस्सा लेने गया था. वहां जाकर पता चला कि विदेशों में कई सिख, जो बहुत पढ़े-लिखे हैं, एक अभियान चला रहे हैं कि भारत में हिन्दूवाद का दौर चल रहा है और इसके कारण सिखों के अलग अस्तित्व पर खतरा खड़ा हो गया है. सोशल मीडिया पर इस संबंध में कई विचार व्यक्त हो रहे हैं. कई तो यहां तक चिंतित हो गए हैं कि गुरबाणी पर भी किन्तु-परन्तु किया जा रहा है. श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के शबदों पर एतराज उठाए जा रहे हैं. ऐसे विद्वान यह नहीं सोच रहे कि वे स्वयं ही सिखों का नुक्सान कर रहे हैं.
सहजधारी सिखों को हम गुरुद्वारा वोटों के कारण पीछे धकेल चुके हैं, सिंधियों को गुरुद्वारों में श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश करने से रोकते हैं, निर्मले सिखों का हम सम्मान नहीं कर रहे, बाबा श्रीचंद के उपासकों को हमने पहले ही दूर किया हुआ है. हमारी मानसिकता सिखी का क्षरण करने वाली बन गई है. भारत की परिस्थितियों से अपरिचित होने के कारण ये विद्वान गलत अवधारणाओं के शिकार हैं. यह आलेख इस भ्रांति को दूर करने के लिए लिखा जा रहा है कि हमें हिन्दुओं से खतरा है. वास्तव में कमजोरी हमारे अंदर आ चुकी है और इसे दूर करने की ओर ध्यान दिया जाए.
कई वर्षों से हम एक आवाज सुन रहे हैं कि सिख धर्म को हिन्दुओं से खतरा है और जो गुट इस प्रचार में लगा हुआ है, वह इतिहास को बिगाड़ कर इस ढंग से पेश कर रहा है, जिससे उनका तर्क वजनदार बन सके. जब कोई विद्वान या प्रचारक इस विषय पर बोलता है तो स्पष्ट शब्दों में हिन्दू कौम को सिखों का दुश्मन करार देता है. पहले जब यह बात आरंभ हुई थी तो ब्राह्मणवाद को लक्ष्य बनाया गया था. ब्राह्मणवाद को ही सिखी के सिद्धांतों का विरोधी माना गया था. कई बार तो ये प्रवक्ता ब्राह्मणों को ही बुरा-भला कहते हैं.
हम यह भूल गए हैं कि अनेक ब्राह्मणों ने सिख धर्म अपनाया हुआ है. जिन कश्मीरी पंडितों की फरियाद पर श्री गुरु तेग बहादुर शीश की कुर्बानी देने के लिए दिल्ली गए थे, वे सभी पंडित सिख सज गए थे. कश्मीर, खासतौर पर पुंछ के इलाके में सारी आबादी ब्राह्मणों से सिख बने लोगों की है. हमें भूलना नहीं चाहिए कि आमतौर पर सभी ग्रंथी किसी जमाने में इसी इलाके से आया करते थे और वे ब्राह्मण जाति के ही थे. बहुत बड़े-बड़े विद्वान और योद्धा ब्राह्मण सिख श्री दरबार साहिब अमृतसर के हैडग्रंथी रह चुके हैं. सिख धर्म जात-पात से ऊपर है. पता नहीं हमारे नेता किस मुंह से ब्राह्मणों की निंदा करते हैं? गंगू ब्राह्मण की कथा सुन कर हम समूची ब्राह्मण कौम को बदनाम करते हैं. हर जाति का आदमी अपराध कर सकता है. गद्दार तो सिखों में भी कई बार पैदा हुए हैं, तो क्या हम सभी सिखों को बुरा कह सकते हैं?
श्री गुरु अर्जुन देव जी की शहादत का आदेश बादशाह जहांगीर ने दिया था और यह तथ्य ‘तुजके जहांगीरी’ में दर्ज है और कोई भी इसे पढ़ सकता है. लेकिन फिर भी हर कोई चंदू को शहादत का कारण बताकर मुगल सरकार को दोष मुक्त करता है. इस प्रकार इतिहास को बिगाड़ने के जिम्मेदार हम स्वयं ही बन रहे हैं. कुछ समय पूर्व किसी ने यह भी लिखा था कि श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहादत का औरंगजेब को पता ही नहीं था. मुख्य मुद्दे पर दृष्टिपात करें तो क्या यह सच नहीं कि सभी सिख हिन्दू धर्म से ही आए हैं? हिन्दुओं में से हमारी पौध (पनीरी) तैयार होती रही है. इतिहास को पढ़ें तो पता चलेगा कि पंजाब, अफगानिस्तान, सिंध तथा कश्मीर में से गुरु साहिब के पास आने वाली सारी संगत हिन्दू ही थी. यह सारी संगत गुरु महाराज को ही अपना ईष्ट मानती थी और नजराना पेश करती थी.
फिर जब 1699 में खालसा पंथ का सृजन हुआ तो श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने समूचे भारत में से पांच हिन्दुओं को ही प्रथम ‘पंज प्यारे’ बनाया था. पहले मुगलों के हाथों और फिर नादिर शाह व अब्दाली के आक्रमण और अत्याचारों के दौर में सिखों की सहायता करने वाला कौन था? एक बार तो सभी सिखों को समाप्त करने की घोषणा हुई थी. तो भी जिस बोता सिंह और गरजा सिंह की बहादुरी के किस्से हम आज भी सुनते हैं, उनके समय अचानक सिख कहां से आ गए थे? सच्चाई यह है कि हिन्दू ही सिख बना करते थे और फिर से खालसे का उत्थान होता था.
मैं जिस इलाके में पैदा हुआ, वह अब पाकिस्तान का हिस्सा है. हमारे इलाके में प्रत्येक हिन्दू सहजधारी सिख था. समूचा सिख गुरु नानक नामलेवा था. आज भी दिल्ली पर नजर डालें तो अनेकों हिन्दू परिवार वहां गुरु ग्रंथ साहिब के पाठ करवाते हैं. गुरुद्वारा बंगला साहिब में जाकर देखें, वहां कितने हिन्दू परिवार नियमित रूप में हाजिरी भरते हैं. क्या बिगाड़ा है हमारा हिन्दुओं ने? क्या हिन्दू सिख युवकों या स्कूली छात्रों को पतित करने का प्रचार करते हैं? ईसाई मत के अनेक लोग हर जगह जोर-शोर से धर्म परिवर्तन का प्रयास करते हैं. जब मैं अल्पसंख्यक आयोग में था तो ऐसे बहुत से मामले हमारे सामने आए थे. सन् 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ था तो पाकिस्तानी क्षेत्र से सिख उजड़ कर आए थे, तब समूचे भारत में हमारा मान-सम्मान किसने किया था? हिन्दुओं ने.
सिख भारत के कोने-कोने में जा बसे, रोजगार स्थापित किए, बड़े-बड़े कृषि फार्म बनाए और हर जगह गुरुद्वारे बनाए. हमारा यह पुनरुत्थान और पुनर्वास हिन्दुओं के कारण ही हुआ, जिन्होंने हमें अपना भाई समझ कर आगे बढ़ने में हमारी सहायता की. हां, यह सत्य है कि पंजाब में जब खून-खराबा और उत्पात बढ़ने लगा तो उस समय कई लोग हमें बेगाना समझने लगे. फिर भी पंजाब से बाहर सिखों के प्रति कोई घृणा नहीं थी. आमतौर पर यह दलील दी जाती है कि हिन्दू नेता सिखों को हिन्दू धर्म का अंग समझते हैं. यह एक ऐसा प्रश्न है, जिसे बहुत बारीकी से समझने की जरूरत है.
आर.एस.एस. वाले अपनी प्रत्येक शाखा में श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की फोटो रखते हैं. उनके शबदों का गायन करते हैं. इससे हमारा क्या बिगड़ता है? क्या वे हमें सिख मत का परित्याग करने की अपील करते हैं या श्री गुरु ग्रंथ साहिब के बारे में कुछ गलत बोलते हैं? क्या वे हमें पतित होने की सलाह देते हैं? फिर हमारे साथ क्या दुश्मनी कर रहे हैं वे? मैंने लिखित रूप में आर.एस.एस. से बयान लिया था कि सिख एक अलग धर्म है और वे इसे मानते हैं. फिर हम किस कारण उनकी निंदा करें? यह मामला धारा 25 का है.
हमारा संविधान 1950 में लागू हुआ था. तब जिसने भी इसे कलमबद्ध किया था, उसकी जानकारी की कमी के कारण एक उपधारा जोड़ी गई. प्रमुख धारा में कुछ नहीं है, जबकि उपधारा में धर्म स्थानों में आने-जाने का उल्लेख है. उसमें सिखों, जैनियों, बौद्धों को हिन्दुओं के साथ जोड़ दिया गया है. डॉ. अम्बेडकर ही इस संविधान के रचयिता थे. तो क्या इसका यह अर्थ लगाया जाए कि संविधान बनाने वाले सिखों के विरुद्ध थे? संविधान में संशोधन करने वाली समिति ने इस बारे में प्रस्ताव भी प्रस्तुत किया था. संशोधन भारत सरकार ने करना है. इसमें हिन्दुओं का कोई दोष नहीं.
मैंने संसद में धारा 25 के संशोधन का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था. हर ओर से इसके लिए समर्थन मिल रहा था, लेकिन जब इसके पारित होने का समय आया तो किसी अन्य कारण से सदन की कार्रवाई आगे न चल सकी. सिख सांसद अब भी ऐसा प्रस्ताव पेश कर सकते हैं. मैंने आनंद विवाह कानून को सर्वसम्मति से संसद में पारित करवाया था. इसका कोई विरोध नहीं हुआ. विश्व हिन्दू परिषद ने ‘सिख अलग धर्म’ होने के बारे में मुझे लिख कर दिया था. हिन्दू 1000 वर्ष तक गुलाम रहे. वे आज अपना प्रचार करते हैं तो हमें क्या तकलीफ? अटल बिहारी वाजपेयी ने 100 करोड़ रुपए खालसा त्रिशताब्दी के मौके पर दिए थे. अब मोदी ने श्री गुरु गोबिंद सिंह के 350वें प्रकाश उत्सव के उपलक्ष्य में 100 करोड़ रुपए दिए हैं. भारत के 4 प्रमुख पदों (राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष तथा चीफ जस्टिस) पर सिख सुशोभित रह चुके हैं.
पंजाब की राजनीतिक जरूरतों के मद्देनजर कई बार हिन्दू-सिखों के बीच तल्खी होती रहती है. दोनों ओर से कई गैर जिम्मेदार लोग छोटी-छोटी बातों पर झगड़ पड़ते हैं. सभी तथ्यों को समझने की जरूरत है. ऐसा लिखने के पीछे हमारा क्या प्रयोजन है? हमारे समाज में कमजोरियां आ चुकी हैं और हमारे बच्चे पतित हो रहे हैं, इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. घर में आग लगी हुई है. पतन की ऐसी स्थिति है कि खेल जगत में मुश्किल से ही कोई केशधारी युवक दिखाई देता है. हाकी, फुटबाल, पहलवानी और अब कबड्डी में भी कभी-कभार ही सिख नजर आते हैं. क्या ऐसा हिन्दुओं ने किया है? कभी तो समझदारी से काम लो. अकारण ही अपने दुश्मन पैदा न करो. सहजधारियों को भी वाजिब सम्मान और अधिकार प्रदान करो, कहीं वे समाप्त ही न हो जाएं. इससे हमारी संख्या बढ़ेगी. हमारा भाईचारा बढ़ेगा. गुरु नानक नामलेवा करोड़ों में हैं. उनका मान-सम्मान करें. इन लोगों को गुरु महाराज की बख्शिश का अधिकारी बनने से न रोको. मेरे निवेदन पर चिंतन-मनन करने की जरूरत है.
लेखक – तरलोचन सिंह
साभार – पंजाब केसरी
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