स्वराज्य को ‘सुराज्य’ में परिवर्तित करना समाज की मौजूदा पीढ़ी के समक्ष कठिन चुनौती : नंदकुमारजी
जालंधर Jan 26। देश को छह दशक पहले मिली स्वतंत्रता को बनाए रखना और स्वराज्य को ‘सुराज्य’ में परिवर्तित करना समाज की मौजूदा पीढ़ी के समक्ष कठिन चुनौती है. त्याग और सेवा के बल पर संगठित हो कर उपक्रम करने से हम मौजूदा चुनौतियों से निटपने में सक्षम हो सकते हैं. यह विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह-प्रचार प्रमुख नंद कुमार ने यहां बाबा बालकनाथ मंदिर में संघ के उत्तर क्षेत्र के सामान्य संघ शिक्षा वर्ग के समापन समारोह को संबोधित करते हुए व्यक्त किए.
समापन समारोह में मुख्यवक्ता के रूप में श्री नंदकुमार ने ऋषियों-मुनियों, देवी-देवताओं, गुरुओं व वेदों की रचयिता पंजाब की धरती को नमन करते हुए कहा कि जितना दुरुह कार्य स्वतंत्रता प्राप्त करना था उतना ही मुश्किल इसे बनाए रखना है. 1897 में जब स्वामी विवेकानंद भारत वापिस आए तो उनकी देशभक्तिपूर्ण बातें सुन कर किसी ने पूछा कि आप स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व क्यों नहीं करते? तो स्वामीजी ने उत्तर दिया कि वे उन्हें स्वतंत्रता दिला देंगे परंतु
क्या देशवासी आज उस स्थिति में है कि उस स्वतंत्रता को संभाल पाएं. उस समय हम असंगठित थे, जिससे वह व्यक्ति निरुत्तर हो गया. इस घटना के 28 वर्षों बाद नागपुर में परमपूजनीय डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार आगे बढ़ कर स्वामीजी की सीख को सामाजिक जीवन में उतारा और ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के रूप में समाज को संगठित करने का महायज्ञ शुरू किया. जो लाख अवरोधों के बावजूद अविचल जारी है. उन्होंने कहा कि त्याग और सेवा भारत राष्ट्र के आधारस्तंभ है और यही हमारी पहचान है. यही सनातन धर्म है और हम इन्हीं गुणों का आराधना करते है. इसके विपरीत पश्चिमी विचारधारा हिंसक और आक्रामक है, इसीलिए जो लुटेरे है, हिंसा करने वाले है उनके आदर्श पश्चिमी समाज है. परहित साधन ही हमारे वेदों का संदेश है, वेदों में कहा गया है कि मुझे सुख नहीं चाहिए, मोक्ष नहीं चाहिए बल्कि सर्वजन का कल्याण चाहिए. उन्होंने कहा कि हमारे देश के पास न तो त्याग, न ही सेवा या समर्पण और न ही पराक्रम की कमी थी, हममें कमी केवल संगठन शक्ति की थी. हमने संगठित होकर प्रयास नहीं किए जिसके चलते राष्ट्र को काफी समय तक दुर्दिन देखने पड़े.
जालंधर Jan 26। देश को छह दशक पहले मिली स्वतंत्रता को बनाए रखना और स्वराज्य को ‘सुराज्य’ में परिवर्तित करना समाज की मौजूदा पीढ़ी के समक्ष कठिन चुनौती है. त्याग और सेवा के बल पर संगठित हो कर उपक्रम करने से हम मौजूदा चुनौतियों से निटपने में सक्षम हो सकते हैं. यह विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह-प्रचार प्रमुख नंद कुमार ने यहां बाबा बालकनाथ मंदिर में संघ के उत्तर क्षेत्र के सामान्य संघ शिक्षा वर्ग के समापन समारोह को संबोधित करते हुए व्यक्त किए.
समापन समारोह में मुख्यवक्ता के रूप में श्री नंदकुमार ने ऋषियों-मुनियों, देवी-देवताओं, गुरुओं व वेदों की रचयिता पंजाब की धरती को नमन करते हुए कहा कि जितना दुरुह कार्य स्वतंत्रता प्राप्त करना था उतना ही मुश्किल इसे बनाए रखना है. 1897 में जब स्वामी विवेकानंद भारत वापिस आए तो उनकी देशभक्तिपूर्ण बातें सुन कर किसी ने पूछा कि आप स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व क्यों नहीं करते? तो स्वामीजी ने उत्तर दिया कि वे उन्हें स्वतंत्रता दिला देंगे परंतु
क्या देशवासी आज उस स्थिति में है कि उस स्वतंत्रता को संभाल पाएं. उस समय हम असंगठित थे, जिससे वह व्यक्ति निरुत्तर हो गया. इस घटना के 28 वर्षों बाद नागपुर में परमपूजनीय डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार आगे बढ़ कर स्वामीजी की सीख को सामाजिक जीवन में उतारा और ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के रूप में समाज को संगठित करने का महायज्ञ शुरू किया. जो लाख अवरोधों के बावजूद अविचल जारी है. उन्होंने कहा कि त्याग और सेवा भारत राष्ट्र के आधारस्तंभ है और यही हमारी पहचान है. यही सनातन धर्म है और हम इन्हीं गुणों का आराधना करते है. इसके विपरीत पश्चिमी विचारधारा हिंसक और आक्रामक है, इसीलिए जो लुटेरे है, हिंसा करने वाले है उनके आदर्श पश्चिमी समाज है. परहित साधन ही हमारे वेदों का संदेश है, वेदों में कहा गया है कि मुझे सुख नहीं चाहिए, मोक्ष नहीं चाहिए बल्कि सर्वजन का कल्याण चाहिए. उन्होंने कहा कि हमारे देश के पास न तो त्याग, न ही सेवा या समर्पण और न ही पराक्रम की कमी थी, हममें कमी केवल संगठन शक्ति की थी. हमने संगठित होकर प्रयास नहीं किए जिसके चलते राष्ट्र को काफी समय तक दुर्दिन देखने पड़े.
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