Wednesday, January 11, 2017

अपने इतिहास और मानबिन्दुओं पर गौरव होना चाहिए – अनिरुद्ध जी देशपांडे

गुजरात (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, मेहसाणा विभाग, गुजरात द्वारा “सांप्रत वैश्विक परिदृश्य में भारत” विषय पर प्रबुद्ध नागरिक विचार गोष्ठी का रविवार को मेहसाणा में आयोजन किया गया. विचार गोष्ठी के समापन सत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख अनिरुद्ध जी देशपांडे ने संबोधित किया. 
उन्होंने कहा कि आप सब समाज के चिंतक वर्ग से हैं और आप सबने मिलकर एक गंभीर विषय पर चिंतन किया. संघ संस्थापक प.पू. डॉ. साहब कहा करते थे कि संघ की रजत जयंती मनाने की उत्सुक्ता नहीं है क्योंकि संघ कोई संप्रदाय, इंस्टिट्यूट या संस्था नहीं है. संघ यानि समाज और समाज यानि संघ. संघ समाज में जागृति लाने का और समाज उत्थान का कार्य करता है. स्वतंत्रता के बाद समाज स्वच्छ रहे और भेदभाव रहित रहे, इसी के लिए संघ प्रयासरत है. राष्ट्र की चिंता करने वाले लोगों से संघ बना है. संघ सिर्फ संगठन करेगा. स्वयं प्रेरणा से आपदा के समय समाज के साथ खड़ा रहे, वह संघ है. संघ समाज को एकरस रखने के लिए सतत प्रयत्नशील है.
उन्होंने कहा कि लेकिन स्वराज्य से सुराज्य में परिवर्तन करने का आधार क्या है ? स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद दुनिया में पूंजीवाद की चर्चा थी. हमने उसको स्वीकार किया, जिसमें से समाजवाद और साम्यवाद का जन्म हुआ और साथ ही साथ अनेक समस्याओं का जन्म भी हुआ. वास्तव में भौतिकवाद समाज की एकता के लिए उपयुक्त नहीं है. यह समाज के बीच असमानता बढ़ाने का काम ही करता है. हमारे देश की व्यक्तिमत्ता ही आध्यात्मिक है और इसीलिए समाज के दुख के साथ दुखी और सुख के साथ सुखी इस भाव से जुड़ा प्रत्येक व्यक्ति हिन्दू है.

अनिरुद्ध जी ने कहा कि हमारा राष्ट्र सांस्कृतिक राष्ट्र है. अन्य देशों की तुलना में यहां अनेक विविधता होने पर भी यह एक राष्ट्र है और सर्वसमावेशक है. प.पू. डॉ. साहब को किसी ने पूछा कि आपके अनुसार हिन्दू की व्याख्या क्या है ? तब डॉ. साहब ने उत्तर दिया कि जो भी इस भूमि को माता माने वो सभी हिन्दू हैं. इसीलिए हमारा चिंतन भी भावात्मक (Emotional ) है, सैद्धान्तिक (Academic) नहीं. इसीलिए भारत माता का चित्र एकात्म समाज का चित्र है.
लेकिन आज कई समस्याएं भी हैं, सूची तो लंबी है. जैसे कि गांव टूट रहे हैं, युवाधन शहरों की ओर बढ़ रहा है, बुद्धिधन का विदेश पलायन हो रहा है. आतंकवाद, नक्सलवाद, जेहादी जुनून, भ्रष्टाचार, गौ-संरक्षण, कृषि संरक्षण, पर्यावरण, प्रदूषण (Global Warming ), विदेशी चिंतन के सामने स्वदेशी चिंतन आदि अनेक समस्याओं का एकमात्र उपाय हिन्दू दर्शन में है, जिसका आधार अध्यात्म है. और जिसके लिए हमें व्यक्तिगत प्रयासों से परिवार प्रबोधन करना होगा, संस्कारों का सिंचन अपनी संतानों में करना होगा, अपने इतिहास और मानबिन्दुओ पर गौरव होना चाहिए.

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