Thursday, August 23, 2012

असम हिंसा एक और विभाजन का षड्यंत्र : वनवासी कल्याण आश्रम

असम हिंसा एक और विभाजन का षड्यंत्र : वनवासी कल्याण आश्रम

Source: VSK-BHOPAL Date: 8/23/2012 4:10:42 PM

भोपाल : २२ अगस्त २०१२ : अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के महामंत्री जगदेवराव जी उरांव नें, हाल ही की असम हिंसा के संदर्भ में पत्रकारों को सम्बोधित किया. उस वार्तालाप का सारांश :
असम सुलग रहा है। साथ ही सुलग रही है एक और बंटवारे की आग। यह इस बात का प्रमाण है कि हमने अपने इतिहास और उसकी गलतियों से कुछ नहीं सीखा। यह इस बात का भी प्रमाण है कि सत्ता के लालच में सन १९४७ के द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत ने जिन लोगों को इस देश की सत्ता के शिखर पर पहुंचाया, उन लोगों ने अल्पसंख्यक तुष्टीकरण को ही अपनी सत्ता का आधार बनाया। परिणाम सामने है।
लगातार अल्पसंख्यक वोटों के लालच में की गई बंगलादेशी घुसपैठ की अनदेखी ने असम ही नहीं, सारे पूर्वोत्तर भारत की जनसंख्या का संतुलन ही बिगाड़ दिया है। बहुसंख्यक हिन्दू अब अनेक जिलों में अल्पसंख्यक हो गए हैं, और जनसंख्या के इस आक्रमण के सूत्रधार बंगलादेशी घुसपैठिये उनकी भूमि पर कब्जा कर रहे हैं, उनकी धार्मिक परम्पराओं को बाधित कर रहे हैं, और उनके प्राकृतिक स्रोतों का जम कर दोहन कर रहे हैं। स्थितियां इतनी खराब हो गई हैं कि अब किसी बोडो हिन्दू युवती से विवाह कर लेने पर अल्पसंख्यक भी बोडो कहलाने का हक सुप्रीम कोर्ट तक लड़कर मांग रहे है। असम के आध्यात्मिक आन्दोलन का शीर्ष माने जाने वाले सत्रों (मठों) की सैकड़ों एकड़ भूमि पर भी अल्पसंख्यक घुसपैठियों ने कब्जा कर लिया है।
जैसा कि प्रचारित किया जा रहा है, असम की हिंसा मात्र दो व्यक्तियों की हत्या का परिणाम नहीं है। सन २००८ में भी उदालगुड़ी में बोडो हिन्दुओं का इन घुसपैठियों के हाथों एक तरफा नरसंहार हुआ था। ऐसा ही बंगलादेशी घुसपैठियों ने सन २०११ में बंगाल के देगंगा में किया, जहॉं हिन्दुओं को पारंपरिक दुर्गापूजा करने की कीमत अपने प्राण देकर चुकानी पड़ी। राज्य और केंद्र में बैठी सरकारों को आज भी ये स्वीकारने का साहस नहीं है की ये हिंसा घुसपैठ का परिणाम है।
वनवासी कल्याण आश्रम लगभग ४० वर्षों से पूर्वोत्तर की जनजातियों में सतत कार्य कर रहा है, जहॉं उसके २५० पूर्णकालिक कार्यकर्ता अपना समय राष्ट्रसेवा में दे रहे हैं। संगठन के, उस क्षेत्र में ३२ छात्रावास और १०० से अधिक विद्यालय हैं। पूरे देश में भी पूर्वोत्तर के छात्रों के लिए वनवासी कल्याण आश्रम छात्रावास संचालित करता है। इस नाते संगठन का यह नैतिक दायित्व है की असम की जनजातियों पर आए इस भीषण संकट में वह उनकी आवाज शेष राष्ट्र तक पहुंचाए। संगठन की ओर से लगभग १७०० पीड़ित परिवारों में आवश्यक सामग्री का वितरण किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त ग्राम स्तर पर भी सुरक्षा के प्रबंध करने के लिए जनजातियों को प्रेरणा देने का काम वनवासी कल्याण आश्रम कर रहा है। शीघ्र ही संगठन के नेतृत्व में जनजातीय समाज के लोग असम के सभी जिलाधीशों को अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपेंगे।
वनवासी कल्याण आश्रम पाकिस्तान द्वारा फैलाई जा रही अफवाहों की घोर भर्त्सना करता है, जिनके कारण देश के विकास में अपना योगदान दे रहे पूर्वोत्तर के लोग अपने राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं। संगठन केंद्र और राज्य सरकारों से मांग करता है कि वह इस पूरी समस्या को राष्ट्र के एक और विभाजन के षड्यंत्र के रूप में पहचाने और बंगलादेशी घुसपैठ को रोकने, और घुसपैठियों को पहचान कर देश से बाहर निकालने के लिए व्यवहारिक होकर कार्ययोजना देश के सामने रखे। आज पूर्वोत्तर भारत में ऐसे १७ से अधिक अल्पसंख्यक संगठन हैं जो इन घुसपैठियों के जरिये हिंसा फैलाने का काम कर रहे हैं। इन सभी पर शीघ्र ही प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए और घुसपैठयों को फर्जी पहचान पत्र और अन्य दस्तावेज बनाकर देने वाले तत्वों पर भी कठोर कार्यवाही होनी चाहिए। वनवासी कल्याण आश्रम समूचे राष्ट्र से यह आह्वान करता है की भारत के एक और विभाजन की इस साजिश के विरुद्ध वह एकजुट होकर खड़ा हो, और इसे विफल करने में अपना योगदान दें।

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