Hindutva is our National Identity: RSS Chief Bhagwat
February 25, 2014 ,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन राव भागवत ने ‘हिंदू’ शब्द को संकुचित मानने के लिये हिंदुओं को समान रूप से दोषी मानते हुए कहा है कि यह स्थिति आत्मविस्मृति के कारण पैदा हुई है. उन्होंने कहा कि हिंदुत्व हमारा राष्ट्र-तत्व और हिंदू हमारी राष्ट्रीयता की पहचान है.
विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन में पूर्व राजनयिक ओपी गुप्ता की पुस्तक ‘डिफाइनिंग हिंदुत्व’ का विमोचन करने के बाद अपने उद्बोधन में परमपूज्य सरसंघचालक ने कहा कि वस्तुत: ‘हिंदू’ शब्द अपरिभाष्य है, क्योंकि यह वह जीवन पद्धति है, जो परम सत्य के अन्वेषण के लिये सतत तपशील रहती है. इसकी विशेषता यह है कि यह सबको अपना मानता है. साथ ही, उन्होंने कहा कि शास्त्र विस्मरण के बाद हिंदू समाज रूढ़ि से चलने लगा, अतएव अब हिंदू शब्द के सर्वार्थ से समाज को परिचित कराना आवश्यक है. उन्होंने हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार पं. हजारी प्रसाद व्दिवेदी को उद्धृत करते हुए कहा कि हिंदू शब्द यहीं से संसार के कोने-कोने में प्रचारित-प्रसारित हुआ, क्योंकि हम परोपकार की दृष्टि रखकर सत्य को पूरी दुनिया तक पहुंचाने का काम करते रहे हैं.
February 25, 2014 ,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन राव भागवत ने ‘हिंदू’ शब्द को संकुचित मानने के लिये हिंदुओं को समान रूप से दोषी मानते हुए कहा है कि यह स्थिति आत्मविस्मृति के कारण पैदा हुई है. उन्होंने कहा कि हिंदुत्व हमारा राष्ट्र-तत्व और हिंदू हमारी राष्ट्रीयता की पहचान है.
विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन में पूर्व राजनयिक ओपी गुप्ता की पुस्तक ‘डिफाइनिंग हिंदुत्व’ का विमोचन करने के बाद अपने उद्बोधन में परमपूज्य सरसंघचालक ने कहा कि वस्तुत: ‘हिंदू’ शब्द अपरिभाष्य है, क्योंकि यह वह जीवन पद्धति है, जो परम सत्य के अन्वेषण के लिये सतत तपशील रहती है. इसकी विशेषता यह है कि यह सबको अपना मानता है. साथ ही, उन्होंने कहा कि शास्त्र विस्मरण के बाद हिंदू समाज रूढ़ि से चलने लगा, अतएव अब हिंदू शब्द के सर्वार्थ से समाज को परिचित कराना आवश्यक है. उन्होंने हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार पं. हजारी प्रसाद व्दिवेदी को उद्धृत करते हुए कहा कि हिंदू शब्द यहीं से संसार के कोने-कोने में प्रचारित-प्रसारित हुआ, क्योंकि हम परोपकार की दृष्टि रखकर सत्य को पूरी दुनिया तक पहुंचाने का काम करते रहे हैं.
डा. भागवत ने कहा कि समूचा विश्व हमें हिंदू के रूप में पहचानता है. हमें भी विविधता में एकता के सूत्रों की फिर से पहचान करनी चाहिये. यह भी एक वास्तविकता है कि पिछले 40 हजार वर्ष से काबुल से लेकर तिब्बत और चीन से श्रीलंका तक यानी इंडो-ईरानी प्लेट के लोगों का डीएनए एकसमान है. उन्होंने स्वामी राम कृष्ण परमहंस का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारे ऋषियों ने अन्य उपासना पद्धतियों के अनुसार भी सत्य के अनुभूत प्रयोग किये. उन्होंने पाया कि उसमें कोई अंतर नहीं है.
एक मुस्लिम राजनीतिज्ञ से हुई एक चर्चा का दृष्टांत सुनाते हुए उन्होंने कहा कि यदि अन्य उपासना पद्धतियों को मानने वाले लोग ‘हिंदू’ को अपनी राष्ट्रीय पहचान मान लें, तो सारे विरोध समाप्त हो सकते हैं. “वे मुस्लिम राजनीतिज्ञ स्वयं को हिंदू मानते थे, इसलिये उन्होंने इस आधार पर मुस्लिम अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिये 2006 में बने सच्चर आयोग की सिफारिशों के विरोध पर सवाल उठाया. मैंने उनसे कहा कि यदि सम्पूर्ण मुस्लिम समाज जो आप मानते हैं, मान ले तो हम अपना विरोध वापस ले लेंगे”.
पुस्तक विमोचन समारोह में फाउंडेशन के निदेशक श्री अजित डोवाल, पुस्तक के लेखक श्री ओपी गुप्ता और संकल्प के श्री संतोष तनेजा ने पुस्तक के विषय में अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया
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