लखनऊ. आपातकाल की 39व़ीं बरसी पर प्रदेश भर के लोकतंत्र रक्षक 25 जून को प्रतिवर्ष की भांति जीपीओ पार्क हजरतगंज स्थित गाँधी प्रतिमा पर एकत्र हुये और उन्होंने दीप जलाकर एवं काले गुब्बारे हवा में छोड़कर लोकतंत्र की रक्षा का अपना संकल्प दृढ़ किया.
अपनी सत्ता और कुर्सी सदा सर्वदा बनाये रखने की नीयत से तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने 25 जून सन 1975 को देश में आपातकाल घोषित कर देश के बुद्धिवियों तथा अपने विरोधी राजनेताओं को मीसा- डी०आई०आर० जैसे काले कानूनों के अंतर्गत कारागारो में बंद कर दिया था.
समिति के प्रदेश अध्यक्ष ब्रज किशोर मिश्र ने कहा कि देश में 26 जून 1975 से आपात्काल लागू हो गया था और इस प्रकार स्वतंत्र भारत एक बार फिर आंतरिक गुलामी की बेड़ियों में जकड़ गया था. आपातकाल को याद करते हुए उन्होंने कहा कि आज भी उन कालरात्रियों को याद करने पर सिहरन होने लगती है. तानाशाही सरकार ने “न अपील, न वकील, न दलील” के सिद्धांत पर आपातकाल का विरोध करने वाले समस्त राजनेताओं, विद्याथियों और अन्य समाजसेवियों को जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया था. उन्हें अमानवीय यातनायें देकर आन्दोलन को कमजोर करने का प्रयास किया. उन्होंने कहा कि जनता के मौलिक अधिकारों पर कुठाराघात कर तत्कालीन तानाशाह ने आचार्य विनोवा भावे तक को अपमानित किया था किन्तु तानाशाह सरकार को उखाड़ फेंकने की कसम खा चुके लोकतंत्र रक्षक “हटे नहीं, डिगे नहीं, डटे रहे”. लोकशक्ति और तानाशाही के मध्य हुए इस जबरदस्त संघर्ष में तानाशाही को मुंह की खानी पड़ी. अलोकतांत्रिक शक्तियों को पराजित करते हुए लोकतंत्र पुनः बहाल हुआ.
आपातकाल के दौरान तानाशाह सरकार की चूल्हें हिला देने वाले बड़ौदा डायनामाइट काण्ड के प्रमुख आरोपी एवं वरिष्ठ पत्रकार के०विक्रम०राव ने आपातकाल की यातनाओं का स्मरण कराते हुए कहा कि अहिंसक आन्दोलन करके जेल जाने वाले लोगों को रात-रात भर बर्फ की सिल्लियों से बाँध कर लिटाना, नाखूनों में कील ठोकना, पंखो से उल्टा लटकाने जैसी ना जाने कितनी ही अमानवीय यातनायें लोकनायक जयप्रकाश तथा अन्य अनेक लोकतंत्र समर्थक राजनीतिक बंदियों को दी गईं. उन्होंने स्व० मोरारजी देसाई को 42 वां संविधान संशोधन (मूलाधिकार ख़त्म करने वाला) निरस्त करने का श्रेय देते हुए कहा कि अब कोई भी तानाशाह आपातकाल लगाने का दुस्साहस नहीं कर पायेगा.
समिति के प्रदेश महामंत्री रमाशंकर त्रिपाठी ने कहा कि अपने सिंहासन को बचाने की नीयत से इंदिरा गाँधी ने देश में एमरजेंसी लगा दी और मनमाना शासन चलाने लगीं, आपातकाल के दौरान कानून का राज़ ख़त्म हो गया और ब्रिटिश सरकार से भी ज्यादा बर्बर यातनायें राजनीतिक बंदियों को दी गईं. उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान किए गये जनान्दोलनों और संघर्षों का ही परिणाम है कि देश में लोकतांत्रिक सरकारें शासन कर रही हैं.
लोकतंत्र सेनानी भारत दीक्षित ने आपातकाल के उन उन्नीस महीनों को याद करते हुए कहा कि जेल के अंदर प्रतीत नहीं होता था कि आपातकाल का न्रसंश राज कभी ख़त्म होगा और अब हम लोग कभी जेल की काल कोठरियों से बाहर निकल पायेगे. लोकतंत्र रक्षकों के संघर्ष को याद करते हुए उन्होंने कहा आपातकाल के दौरान हुए संघर्ष में समूचा देश जुड़ गया था, और वक्त साक्षी है कि अगर देश में कभी अलोकतांत्रिक शक्तियों ने सर उठाने की कोशिश की है तो इस देश का युवा इसी प्रकार उसका दमन करेगा.
लोकतंत्र सेनानियों ने मुख्यमंत्री से लोकतंत्र सेनानियों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की भातिं सभी सुविधाए एवं सम्मान देने, समस्त जनपद मुख्यालयों पर लोकतंत्र सेनानियों की स्मृति में एक विजय स्तम्भ की स्थापना करने,तानाशाह के विरुद्ध संघर्ष में अपने प्राण न्योछावर करने वाले लोकतंत्र सेनानियों को शहीद का दर्जा देने, आपातकाल के कालखंड को पाठ्यक्रम में सम्मलित करने एवं लोकतंत्र सेनानियों के लिए पारिवारिक पेंशन ( सम्मान राशि) योजना लागू करने की मांग की.
इस मौके पर प्रमुख रूप से रामसनेही कनोजिया, बद्री प्रसाद यादव, टापूराम गुप्ता, चंद्रशेखर कटियार, नरेन्द्र पाल सिंह जादौन, रामछबीला मिश्र, अनिल तिवारी, सुरेश यादव, विजयसेन सिंह, प्रकाश मिश्र, चन्द्रभान मिश्र, राजकुमार चौबे, डा० आई०ए०शादानी, प्रभाष बाबू सचान, बंशलाल कटियार, ओमप्रकाश श्रीवास्तव, रूद्र प्रताप शुक्ला, लईक कुरैशी, राम सिंह, चंद्रवीर सिंह गहलोत, राजाराम व्यास, अशोक तलैया, राजमणि पाण्डेय, चन्द्रभान सिंह, हरीशचन्द्र पाण्डेय, अनीस अहमद, रामदीन शाक्य, शिवपाल सिंह, कृष्ण मुरारी पाठक, विजय वर्मा, जगदीश पाण्डेय, सुखेन्द्र पाल दुबे, रामासरे बाल्मीकि, शिवराम सिंह, भूपाल सिंह, जमादार सिंह यादव, शंकरलाल सक्सेना नथुनी यादव श्रीराम यादव, छत्रसाल सिंह सेंगर, समरादित्य सिंह, रामवृक्ष तिवारी, रामनारायण समेत प्रदेश के विभिन्न विभिन्न स्थानों से आये अनेको लोकतंत्र सेनानी मौजूद रहे.
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