देहरादून. साफ आसमान और हजारों लोगों की भीड़ के बीच नंदा को कैलाश भेजने की हर 12 साल बाद होने वाली श्री नंदादेवी राजजात यात्रा सोमवार से शुरू हो गई. महिलाओं ने अपनी बेटी की तरह नंदा को कैलाश पर्वत विदा करने की रस्म अदा की. कई श्रद्धालु इस यात्रा से भावनात्मक रूप से इतने जुड़ गये थे कि उनकी आंखों से आंसू निकल रहे थे.
सोमवार सुबह 11.35 बजे पर नंदादेवी की यात्रा पहले पड़ाव ईड़ा बधाणी के लिये निकली. मान्यता है कि एक बार शिव और पार्वती कैलाश जा रहे थे, तभी इस गांव के पूर्वजों ने नंदा से कैलाश जाने से पहले यहां पड़ाव बनाने की प्रार्थना की थी. इसी परंपरा के निर्वाह के लिये नौटी से यात्रा सबसे पहले इस गांव में आती है. बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर कर्णप्रयाग से 25 किमी दूर नौटी गांव में यात्रा की शुरुआत हुई. रंग-बिरंगे परिधानों में आसपास के गांव से स्त्री-पुरुष नौटी में जुटे थे. राजजात यात्रा नौटी गांव के बीचों-बीच नंदादेवी के प्राचीन मंदिर से शुरू हुई. सोमवार की सुबह 8 बजे से मुख्य पूजा की शुरुआत हुई. कांसुवा के कुंवरों की ओर से लाई गई नंदा की स्वर्ण प्रतिमा में प्राण-प्रतिष्ठा की गई और उसे राजछतोली में प्रतिस्थापित किया गया. उत्तराखंड के राज्यपाल डॉ. अजीज कुरैशी, वित्त मत्री इंदिरा हृदयेश, विधानसभा उपाध्यक्ष डॉ. अनुसूया प्रसाद मैखरी ने भी इस विशेष पूजा में हिस्सा लिया. छोटे से नौटी गांव में लोगों की इतनी भीड़ जुट गई थी कि सड़क पर कई किलोमीटर तक जाम की स्थिति पैदा हो गई.
राजजात यात्रा 6 सितंबर तक चलेगी. 19 दिन तक अलग-अलग पड़ावों में रहकर यह यात्रा 20वें दिन नौटी लौटगी. पहला पड़ाव इड़ा बघाणी है. नौटी से चलती हुई यह यात्रा सोमवार की शाम को ईड़ाबघाणी गांव पहुची. नौटी से चलकर यह यात्रा पहले छांतौली, ल्यूयसा, सिलंगी, चौड़ती और हेलुरी गांव में पहुंची. यात्रा मंगलवार को वापस नौटी लौटेगी, जो यात्रा का दूसरा पड़ाव है.
नंदा राजजात की यह यात्रा 20 जगहों पर रात्रि विश्राम करेगी. इस दौरान 280 किलोमीटर की पैदल यात्रा होगी. सबसे ऊंचाई वाला पड़ाव शिलासमुद्र है.
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