अहिंसा की रक्षा के लिए शस्त्र उठाना पड़े उसे हिंसा नहीं माना जाता – सुरेश भय्या जी जोशी
सामूहिक क्षमा पर्व को संबोधित करते हुए सरकार्यवाह जी ने कहा कि मनुष्य है तो गलती होगी ही, जो गलती नहीं करते उन्हें ईश्वर माना जाता है. हम गलती करते हैं, यह हम जानते हैं. जानना और मानना ये दोनों अलग-अलग बातें हैं. हम अपनी गलती मानते हैं, उसे स्वीकार करते हैं तो यह हमारे संस्कार हैं. उन्होंने कहा कि हमारी धार्मिक, सामाजिक परम्परा में क्षमा का बड़ा महत्व है. क्षमा करना और क्षमा मांगना दोनों हृदय से होना चाहिए. यह आचरण हमारी सामाजिक समरसता के लिए जरूरी है. क्षमा भावना उसी के पास हो सकती है जो अहंकार से मुक्त हो. सरकार्यवाह जी ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि अहिंसा की रक्षा करने के लिए यदि शस्त्र उठाना पड़ता है तो उसे हिंसा नहीं माना जाता. क्योंकि देवताओं ने भी अहिंसा की रक्षा के लिए शस्त्र उठाए थे.
भय्याजी जोशी ने कहा कि यह आयोजन इस मायने में अनुकरणीय है कि राष्ट्रसंत ने जन जन तक इस भावना को पहुंचाने का प्रयास किया है. क्षमा पर्व का एक संदेश यह भी है कि व्यक्ति अपने स्तर पर अपने व्यवहार से किसी को आहत न करें. हम एक दूसरे को तो क्षमा कर सकते हैं, लेकिन कई बार जब स्वयं से गलती हो जाती है, तो ऐसे में हम अपने आप को क्षमा नहीं कर पाते.
लोकसंत की उपाधि से अलंकृत आचार्य जयंतसेन सूरीश्वरजी ने कहा आपने ‘लोकसंत’ की उपाधि से अलंकृत किया. इन भावनाओं को देखते हुए मुझे खुशी है. संत तो सबके होते हैं. आप रतलाम वासियों ने मुझे अपना समझा और मैंने आपको अपना समझा. इस अवसर पर सामूहिक क्षमापर्व भी मनाया गया.
समारोह की अध्यक्षता कर रहे भाजपा सांसद व भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे जी ने कहा क्षमा पर्व की अपनी अलग विशेषता है. अध्यात्म एक बहुत बड़ी चीज है. यह आत्म परीक्षण का पर्व है. राष्ट्रसंत को ‘लोकसंत’ की उपाधि से सम्मानित करने का अवसर मिला है. लोक का मतलब है, जिन्होंने लोगों के दिलों में जगह बनाई है. हम अपने आप से कभी भी क्षमा मांगने की स्थिति में न हों.
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