मेरठ (विसंकें). पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के 100वें जन्मदिवस पर विश्व संवाद केन्द्र मेरठ ने गोष्ठी का आयोजन किया. सेवानिवृत्त आयकर आयुक्त अनिल गुप्ता जी ने कहा कि अपने जीवन को राष्ट्र की उन्नति के लिए कैसे लगाया जाए ? पंडित दीनदयाल उपाध्याय हमारे सामने एक महान उदाहरण हैं. वे महान पत्रकार, कुशल राजनीतिज्ञ एवं उच्च कोटि के मूर्धन्य विद्वान थे. अनिल जी रविवार को विश्व संवाद केन्द्र मेरठ द्वारा पंडित दीनदयाल जी के 100वें जन्मदिवस के अवसर पर आयोजित एक गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि एक पत्रकार के रूप में दीनदयाल जी ने राष्ट्रवादी विचारों का प्रचार-प्रसार करने में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. राष्ट्रवादी विचारों की पत्र-पत्रिका पांचजन्य, ऑर्गनाइजर, स्वदेश, राष्ट्रधर्म समाज को उन्हीं की देन है. उनका जीवन एक सधे हुए महापुरूष पत्रकार के रूप में था. एक तरफ जहां देश में साम्यवाद और पूंजीवादी विचारधारा हावी होने का प्रयास कर रही थी तो दूसरी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानव दर्शन पूरे विश्व के सामने रखा. जिसमें सबका कल्याण समाहित था. जिसमें अन्तोदय अर्थात अन्तिम व्यक्ति का कल्याण समाहित था.
गोष्ठी में डॉ. कपिल कुमार अग्रवाल जी ने उनके जीवन पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा बाल्यकाल में अपने माता पिता को खो देने वाले पंडित जी का जीवन बहुत संघर्षपूर्ण जीवन रहा. हमेशा अपनी कक्षा में प्रथम आने वाले दीनदयाल जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. यहां तक कि भारतीय प्रसाशनिक सेवा की परीक्षा में भी उन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त किया, परन्तु उन्होंने नौकरी करने के स्थान पर समाज के लिए जीवन जीने का निर्णय किया. सन् 1942 में संघ के प्रचारक बने.
दीनदयाल जी के राजनीतिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए प्रशांत शर्मा ने कहा कि वे कुशल राजनीतिज्ञ थे. वे राजनीति में सत्ता प्राप्त करने के लिए नहीं आये थे, बल्कि राजनेता को कैसा होना चाहिए…ऐसा जीवन उन्होंने जी कर दिखाया. आज राजनेताओं को उनसे सीख लेनी चाहिए. डॉ. लोहिया, इन्दिरा गांधी और यहां तक कि कम्युनिस्ट नेता भी उनकी प्रशंसा करते थे. गोष्ठी में संघ के सह-प्रान्त प्रचार प्रमुख सुरेन्द्र सिंह जी ने पंडित जी के एकात्म मानव दर्शन के व्यवहारिक पक्ष पर प्रकाश डाला. समरसता और एकात्म मानव दर्शन दोनों एक सिक्के के ही दो पहलू हैं. दीनदयाल जी के जीवन को पढ़ कर ही समझा जा सकता है, वे कितने सरल और राष्ट्रवादी विचारक थे.
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार राम गोपाल जी ने कहा कि जब वे जौनपुर का चुनाव हार कर मेरठ आये तो मैंने उनसे पूछा – आपको चुनाव हार कर कैसा लग रहा है, तब दीनदयाल जी ने उत्तर दिया – न तो मुझे जीत कर कोई ज्यादा खुशी होती और न हार कर कोई दुःख हो रहा है. मैं तो आज भी दीनदयाल हूं और तब भी दीनदयाल था.
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