Monday, September 05, 2011

अन्ना हज़ारे का आंदोलन आज़ाद भारत का सबसे बड़ा आंदोलन

अन्ना हज़ारे का आंदोलन आज़ाद भारत का सबसे बड़ा आंदोलन बन गया है. अन्ना को देश के कोने-कोने से जनता का समर्थन मिल रहा है. आज सरकार के साथ-साथ देश के सभी राजनीतिक दलों के सामने यह आंदोलन सबसे बड़ी चुनौती है. समस्या यह है कि हर राजनीतिक दल अन्ना के आंदोलन को समझने में भूल कर रहा है. यह आंदोलन स़िर्फ जन लोकपाल का आंदोलन नहीं है. यह आंदोलन पिछले 20 सालों से चल रही नव उदारवादी अर्थव्यवस्था के खिला़फ है. यह 20 सालों की सरकारी योजनाओं और नीतियों के खिला़फ जनता का फैसला है. सरकार विकास के आंकड़े दिखाकर भ्रम फैलाने को सुशासन कहना पसंद करती है. हक़ीक़त यह है कि शहर रहने के लायक नहीं रहे. कुछ मेट्रो शहरों को छोड़कर देश में कहीं पर 24 घंटे बिजली नहीं है. दिल्ली जैसे शहर में सा़फ पानी नहीं है. छोटे शहरों में ढंग की चिकित्सा सुविधाएं नहीं हैं. नौजवानों का भविष्य अंधकारमय है. आम आदमी का जीवन नारकीय हो गया है. किसी भी अस्पताल में जाइए, वहां डॉक्टर गिद्धों की तरह मरीज़ों से पैसे लूटते मिल जाएंगे. सरकारी दफ्तरों में बिना रिश्वत के कोई काम नहीं होता है. सरकार ने पूरे देश को एक ऐसे भंवर में डाल दिया है, जहां जीवित रहना ही एक अभिशाप बन गया है. लोग पूरी व्यवस्था से तंग आ चुके हैं. लोगों में नाराज़गी है कि सरकार उनकी परेशानी और दु:ख-दर्द को खत्म करना तो दूर, उसे समझने का भी प्रयास नहीं कर रही है. यही अन्ना के आंदोलन के समर्थन का आधार है. इस आंदोलन में शहरी मध्य वर्ग बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहा है. इसलिए कुछ लोगों को लगता है कि अन्ना का आंदोलन इंटरनेट के ज़रिए फैला हुआ आंदोलन है. देश चलाने वालों, सभी राजनीतिक दलों और उद्योगपतियों को सचेत हो जाना चाहिए, क्योंकि अगर इस आंदोलन में ग्रामीण और आदिवासी शामिल हो गए तो यह मान लीजिए कि इस देश का प्रजातंत्र खतरे में आ जाएगा. जो लोग यह समझ रहे हैं कि यह आंदोलन स़िर्फ जन लोकपाल के लिए है तो यह उनकी एक बड़ी भूल होगी. जन लोकपाल इस जनांदोलन का स़िर्फ तात्कालिक कारण है. और वह भी इसलिए, क्योंकि कांग्रेस पार्टी के नेताओं और मंत्रियों ने लोकपाल के मामले में राजनीतिक फैसले न करके प्रशासनिक फैसले लेने का जुर्म किया है. अन्ना का आंदोलन लोकपाल तक ही सीमित नहीं रहने वाला है. आने वाले दिनों में न्यायिक व्यवस्था में सुधार के लिए आंदोलन होगा, चुनाव सुधार के लिए आंदोलन होगा. घर में बैठने का व़क्त खत्म हो गया है. हमें व्यवस्था परिवर्तन के लिए सड़कों पर उतरना होगा. आज राम गोपाल दीक्षित की एक कविता याद आती है:-
कौन चलेगा आज देश से भ्रष्टाचार मिटाने को,

बर्बरता से लोहा लेने, सत्ता से टकराने को,

आज देख लें कौन रचाता मौत के संग सगाई है,

उठो जवानो, तुम्हें जगाने क्रांति द्वार पर आई

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