Sunday, September 18, 2011

जरा हट के .......

स्वयंसेवकों ने ‘इडकिडू’ का अर्थ ही बदल दिया

स्रोत: News Bharati

इडकीडू गांव में जलसंधारण का सफल प्रयास
इडकिडु का अर्थ होता है-‘फेंका हुआ’| लेकीन कर्नाटक प्रांत के इडकिडु गॉंव को देख कर अब ये अर्थ झूठा लगने लगता है| ये गॉंव अब पूरी तरह से विकसित हो चुका है| राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने इस गॉंव को एक निर्मल, आदर्श ग्राम बनाया और साबित कर दिया कि, यहॉं सिर्फ शाखाए नही लगती, गॉंव के हित और विकास का भी विचार किया जाता है|

कर्नाटक प्रांत के इडकिडु गांव मे शाखा तो लगती थी लेकीन, गॉंव का विकास नही हुआ| इतने वर्ष मे गॉंव से अस्पृश्यता नहीं मिट पाई थी|

१९७७ में जब माननीय हो. वे. शेषाद्री जी यहॉं आए, तब उन्होंने कार्यकर्ताओं से एक अंतर्मुख करनेवाला प्रश्‍न पूछा - ‘शाखाए तो बडी अच्छी चला रहे हो, इसके आगे क्या करने का सोचा है?’ ऐसे ही एक बार तत्कालीन प्रांत प्रचारक यादवराव जोशी जी ने ध्यान दिलाया था कि, हमारा काम यहॉं चलते इतने वर्ष हो गए किंतु अस्पृश्यता अब भी नही मिटी है| स्थानिक कार्यकर्ता श्री के. एस्. विश्‍वनाथ ने ठान ली की इडकिडु बदलेगा| डॉक्टर जी की जन्मशताब्दी वर्ष (१९८९) से इस गांव में ग्रामविकास का कार्य प्रारंभ हुआ|

कार्यकताओं ने अपने कार्य के लिए कुछ लक्ष्य सामने रखे :

हर घर में एक गाय, रसायन मुक्त जैविक खेती, मिश्र खेती (एक ही खेत में अलग अलग फसल लेना), हर घर में बायोगैस/गोबर गैस प्लांट, हर घर में सौर उर्जा पॅनेल, सारी जरुरी सब्जीयॉं घर के आँगन मे उगाना, घर के निकट औषधि वनस्पती लगाना, मधुमख्खी पालन और मधु (शहद) निर्माण, दारूबंदी, जल संचयन, सादगी - यह लक्ष्य सामने रखकर काम शुरू किया|

गॉंव में चार शाखाएँ चलती है: धर्मनगर, उरिमाजिलु, अशोकनगर, व कोलपे| धर्मनगर शाखा सब से पुरानी और एक तरह से मातृ शाखा है| इस शाखा के चार प्रमुख कार्यकर्ता - उरिमजल श्रीधर भट्ट, विठ्ठल नारायण शेट्टी, तालुका प्रचारक रामनाथ राय, और कला शिक्षक गंगैया ये है| १९७० में पोवाप्पा नायक और कण्टाप्पा गौडा के नेतृत्व में गांव के सभी भाविक एकत्र आए और कुला, इडकिडु और विटलमुन्दुर में ‘भजन मंदिरों’ का उपक्रम शुरू हुआ| भजन मंदिरों के साथ साथ धीरे धीरे महिला मंडली, सार्वजनिक गणेशोत्सव, सिलाई प्रशिक्षण व शिशु मंदिर भी शुरू हुए| अब इडकिडु में ही पॉंच भजन मंदिर चलते है| सभी मंदिरों मे सप्ताह में एक बार प्रात: प्रार्थना व शाम को सत्संग होता है| भगवद्गीता और रामायण के वर्ग भी चलते है| गांव के उत्सव भी सार्वजनिक रूप से, सब लोग इकठ्ठा आकर मनाते है| इन्ही उत्सवों मे सहभोज के कार्यक्रम होता है; जिनमें सभी जाति के लोग साथ में भोजन करते है| कलशाभिषेक जैसे कार्यक्रमों मे बिना किसी भेदभाव के सब लोगों को अपने हाथों से अभिषेक करने का मौका मिलता है| प्रसाद के लिए चावल सभी घरों से समान मात्रा में लिया जाता है; और प्रसाद बनाने के लिए २५० घरों की महिलाएँ इकठ्ठा होती है|

सभी घरों पर गिरनेवाला बरसात का पानी संकलित कर कुओं मे छोडा जाता है| जिससे करीब एक करोड लिटर पानी मिलता है| मंदिर परिसर में अरकनट (सुपारी) के लगभग १५०० पेड लगाए गये हैं| हर पेड के लिए ५० रुपये योगदान, हर घर से लिया गया है| देखभाल के लिए मासिक पॉंच रुपये शुल्क भी लिया जाता है| आगे चल कर इन्ही पेडों से मंदिर का खर्च चलने लगा| मंदिर के निधि से गरीब रुग्णों तथा छात्रों को मदद दी जाती है|

बीडिनामजलु श्री आदिपराशक्ति देवस्थान पूरी तरह से श्रमदान और गांववालों के योगदान से बना है| यहॉं विवाह करने का कोई शुल्क नही लिया जाता| यहॉं सार्वजनिक ग्रंथालय भी चलता है| धर्मनगर श्री दुर्गा मंदिर से भी जल संचयन, औषधि वनस्पति वाटिका, और गरीबों की सहायता के कार्य चलते है|

सूर्या उच्च प्राथमिक विद्यालय भी कार्यक्रमों का केंद्र बना है| स्कूल की कंपाऊंड वॉल पर छात्रों द्वारा कई प्रकार की जानकारी लिखी जाती है| परिसर में प्लॅस्टिक के बारे में छात्र जनजागरण करते है| जो छात्र दस किलो या अधिक प्लॅस्टिक कचरा इकठ्ठा करता है, उसे प्रोत्साहन के तौर पर शैक्षणिक साहित्य नि:शुल्क दिया जाता है|

गॉंव में इडकिडु सीए बँक की चार शाखाएँ है| यह सीए बँक मात्र ६,००० रु. पूँजी पर शुरू हुआ था| अब इसमें सात करोड रु. के डिपॉजिट है, और ६. ५ करोड के कर्ज गॉंव के ही लोगों कों दिए गए है| लगभग हर घर का एक व्यक्ति बँक का सदस्य है| आज इस बँक के २,००० सदस्य है| कर्नाटक सरकार ने इस बँक को ‘आदर्श बँक’ का पुरस्कार भी दिया है| २०१ ‘नवोदय समूह’ और१७५ महिला स्वयंसहायता समूह भी इस बँक से जुडे है| बँक के चेअरमन का चुनाव खुले तरीके से और अविरोध होता है| एक चेअरमन लगातार दो बार चुनाव नही लडता| इडकिडु में तीन सहकारी दूध सोसायटी है, जिलेमें सबसे अधिक दूध उत्पादन करनेवाला गांव इडकिडु ही है| गॉंव के ७२० घरों में से ४०० खेती के साथ साथ दूध उत्पादन भी करते है| साल भर में साडेसात लाख लिटर दूध यहॉं से बाहर जाता है और एक करोड रुपये का व्यवहार होता है| गॉंव की आर्थिक स्थिती में भारी सुधार आया है, इतना ही नहीं, बच्चों का पोषण भी अच्छी तरह से होने लगा है|

१०० घरों में गोबर गैस प्लांट लगे है| इससे एलपीजी का खर्च भी बचा है, और जंगल कटाई भी कम हुई है| गोबर गैस की स्लरी से खेंती के लिए खाद मिलता है| गैस के नए प्लांट के लिए स्थानिक बँक अधिकारी सहयोग कर रहे है| एक समय के, फेंके हुए गॉंव को सुंदर गॉंव बनाने में यहॉं हर व्यक्ति शामिल है|

source:http://www.newsbharati.com/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0.aspx#

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