Tuesday, September 13, 2011

राष्ट्रीय एकता परिषद - सांप्रदायिक हिंसा बिल का तीखा विरोध

तीन वर्षो बाद हुई राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक का आयोजन का मुद्दा सांप्रदायिक हिंसा बिल था . समज में नहीं आता यह सरकार एकता चाहती है या फिर एकता तोडना ? क्यों यह इस राष्ट्र के पीछे हाथ धो कर पड़ी है . सीमा पार आतंकवाद , देश में आतंकवादियों द्वारा किये जा रहे धमाके , चीन से उतपन्न खतरे की चिंता तो जरा भी नहीं है बस तुष्टिकरण के भेंट कर देगी इस राष्ट्र को. आज संपन्न हुई इस बैठक से जुड़े समाचार अभी अपनी चल रही गोष्टी के लिए सम सामायिक होगा ऐसा विचार है


विपक्ष समेत तृणमूल कांग्रेस ने किया सांप्रदायिक हिंसा बिल का तीखा विरोध

नई दिल्ली.विवादास्पद सांप्रदायिक हिंसा विधेयक के ड्राफ्ट को लेकर केंद्र सरकार की शनिवार को जमकर आलोचना हुई। इस मुद्दे पर न सिर्फ विपक्ष ने सरकार की आलोचना की है बल्कि यूपीए सरकार के अहम घटक तृणमूल कांग्रेस ने भी इस बिल की आलोचना की है। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने भी इस बिल के ड्राफ्ट का विरोध किया है। राष्ट्रीय एकता परिषद की शनिवार को हुई बैठक में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के साथ ही तृणमूल कांग्रेस ने प्रस्तावित सांप्रदायिक हिंसा का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि यह ऐसा खतरनाक कानून साबित होगा, जो देश के संघीय ढांचे को नुकसान पंहुचा सकता है।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में शनिवार को हुई राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में एनडीए शासित राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और पंजाब के मुख्यमंत्रियों ने प्रस्तावित विधेयक के मौजूदा प्रारूप पर कड़ी आपत्ति जताई। बैठक में शामिल लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने भी इसका विरोध करते हुए कहा कि यह ऐसा खतरनाक कानून साबित होगा, जो सांप्रदायिकता को काबू करने की बजाय उसे हवा देगा। साथ ही यह बहुसंख्यकों और अल्पसंख्यकों में दूरी बढ़ाएगा। तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिनेश त्रिवेदी ने भी कहा कि उनकी पार्टी इस विधेयक के वर्तमान प्रारूप का विरोध करती है। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने भी इस बिल का विरोध किया है।

मायावती ने कहा है कि केंद्र सरकार ने बिल का ड्राफ्ट नहीं दिया। मायावती खुद तो इस बैठक में नहीं आईं, लेकिन उनके प्रतिनिधि ने उनकी तरफ से बयान पढ़ा। बीजद शासित उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने कहा कि इसमें कुछ ऐसे आपत्तिजनक प्रावधान हैं, जो राज्यों की स्वायत्तता को सीधे प्रभावित कर सकते हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधेयक के कुछ प्रावधानों पर चिंता जताते हुए कहा कि इससे ऐसी धारणा पैदा हो सकती है कि बहुसंख्यक समुदाय ही सांप्रदायिक घटनाओं के लिए हमेशा दोषी होता है और इससे अंततोगत्वा यह धारणा बहुसंख्यकों में प्रतिक्रिया उत्पन्न कर अल्पसंख्यकों के विरूद्ध ही जा सकती है। बैठक में नीतीश स्वयं उपस्थित नहीं थे और उनकी ओर से राज्य के सिंचाई मंत्री विजय चौधरी ने उनका भाषण पढ़ा।

स्त्रोत: http://www.bhaskar.com/article/NAT-govt-fails-to-sell-communal-violence-bill-2420271.html?HT3=

'नागरिकों को हिंदू और मुस्लिम बना देगा यह बिल'

नई दिल्ली।। प्रस्तावित सांप्रदायिक हिंसा बिलविवादों के घेरे में आ गया है। एनडीए ही नहीं ,यूपीए का एक घटक दल तृणमूल कांग्रेस भी इस बिल के विरोध में खड़ा हो गया है। शनिवार कोराष्ट्रीय एकता परिषद ( एनआईसी ) की बैठक मेंएनडीए ने इस बिल को बेहद ' खतरनाक ' करारदिया। कांग्रेस की सहयोगी तृणूमल कांग्रेस नेइसका विरोध करते हुए कहा कि देश की एकता केलिए यह बिल खतरनाक है।

क्लिक करें, पढ़ें : क्या है बिल, क्यों हो रहा है बवाल

एनआईसी की बैठक में सांप्रदायिक हिंसा बिल एजेंडे में था। बैठक में एनडीए और मध्य प्रदेश ,छत्तीसगढ़ , कर्नाटक , हिमाचल प्रदेश , उत्तराखंड , बिहार और पंजाब के मुख्यमंत्रियों ने बिल केड्राफ्ट के मौजूदा स्वरूप पर कड़ी आपत्ति जताई।

बैठक के बाद बीजेपी लीडर सुषमा स्वराज ने कहा कि बिल का मौजूदा ड्राफ्ट बेहद खतरनाक है।उन्होंने कहा कि यह देश के नागरिकों को नागरिक न मानकर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक मेंबांटता है। उन्होंने कहा कि यह बिल राज्यों के सारे अधिकार अपने हाथ में ले रहा है। इससे केंद्रऔर राज्य सरकारों के संबंध खराब होंगे।

तृणमूल कांग्रेस के दिनेश त्रिवेदी ने कहा कि उनकी पार्टी बिल के मौजूदा स्वरूप का विरोध करतीहै। मायावती ने भी अपने संदेश में कहा कि इस बिल को लाने का यह सही वक्त नहीं है।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा , ' विधेयक में राज्य सरकार की मशीनरीमें अविश्वास की भावना जताई गई है। साथ ही संगठित सांप्रदायिक हिंसा के अपराध कोपरिभाषित करने में स्पष्टता की कमी है। ' उन्होंने कहा , ' मैं केंद्र सरकार से अनुरोध करता हूंकि राज्य सरकार में विश्वास के साथ ही उसे मजबूत बनाएं। इससे देश मजबूत होगा। कुछ निहितहितों के लिए यदि राज्य सरकारों को कमजोर किया गया , तो देश कमजोर होगा जिससे संकीर्णताकतों को बल मिलेगा। '

उन्होंने विधेयक की कुछ धाराओं का उल्लेख करते हुए कहा , ' विधेयक की धारा नौ इसअनुमान पर बनाई गई है कि राज्य सरकारी संस्थानें जानबूझकर धार्मिक कट्टरता और हिंसा कोभड़का रही हैं। लोकतांत्रिक प्रणाली में ऐसे संदेह के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। ये चीजेंसरकारी कर्मचारियों को अपना काम करने से रोक सकती हैं।
स्त्रोत : http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/9934640.कम्स

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में शनिवार को राजधानी दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय एकता परिषद (एनआईसी) की बैठक से पांच मुख्यमंत्री दूर रहे।

सूत्रों ने बताया कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता बैठक में मौजूद नहीं थीं।
सूत्रों के मुताबिक मोदी राज्य सरकार की राय जाने बगैर गुजरात की राज्यपाल कमला बेनिवाल द्वारा लोकायुक्त नियुक्त किए जाने के मामले में केंद्र के रुख से नाराज हैं। उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा लाए जाने वाले साम्प्रदायिक हिंसा विधेयक का भी विरोध किया है।
बिहार के मुख्यमंत्री ने भी सम्भवत: इस विधेयक के विरोध में बैठक का बहिष्कार किया है। बिहार में जनता दल (युनाइटेड) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की गठबंधन सरकार है। भाजपा ने इस विधेयक का विरोध किया है।
जलललिता ने भी इस विधेयक का विरोध किया है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि वह किन कारणों से बैठक में हिस्सा नहीं ले पाईं। जयललिता ने उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को पत्र लिखकर इस विधेयक का विरोध करने की अपील की है।
प्रधानमंत्री ने पिछले वर्ष परिषद का पुनर्गठन किया जिसमें 147 सदस्य हैं। इसमें राज्यों के मुख्यमंत्रियों के अलावा लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता और केंद्रीय मंत्री सदस्य हैं
स्त्रोत :http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-story-39-39-189747.हटमल

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