राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य डॉ. बजरंग गुप्त ने शिक्षकों से अपनी विश्व दृष्टि को बदलकर और समझकर उसके अनुसार शोध करने का आह्वान किया है.
अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के आह्वान पर दिल्ली अध्यापन परिषद द्वारा रविवार, 7 सितंबर को दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कालेज सभागार में ‘शाश्वत जीवन मूल्य’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में कहा कि खण्डित, यांत्रिक या न्यूटोरियल विश्व दृष्टि को समग्र, समन्वय, एकात्म विश्व दृष्टि से विस्थापित करना होगा. उन्होंने कहा कि “शाश्वत जीवन मूल्य पुरातन हैं पर नित्य नूतन हैं” भारतीय मनीषा शाश्वत जीवन मूल्यों का संदेश देती है, जिसमें सृष्टि को इंटीग्रेटेट, इंटरनल वर्ल्ड व्यू मानकर चलते हैं. समग्र, समन्वय, एकात्म विश्व दृष्टि, व्यष्टि से लेकर समष्टि और परमिष्टि और सृष्टि यह चारों एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं, अलग हैं ही नहीं. एक-दूसरे के साथ अंतरभूत हैं.
श्री गुप्त ने कहा कि शाश्वत जीवन मूल्यों पर आधारित पाठयक्रमों के अनुसार अध्ययन से समाज और संसार के समस्त दोषों और समस्याओं का शमन हो सकता है. इतना ही नहीं, इससे एक-दूसरे से जुड़ाव बढ़ेगा और विश्व शांति स्वयंमेव नैसर्गिक तरीके से स्थापित होगी. दूसरी ओर, वर्तमान शिक्षा और शिक्षण ‘डिफेक्टिव वर्ल्ड व्यू’ पर टिका हुआ है. उसकी विश्व दृष्टि ही दोषपूर्ण है, वह शाश्वत है ही नहीं. यह खण्डित, यांत्रिक और फ्रेगमेंटेड विश्व दृष्टि है. सारे प्रतीकों को इसमें अलग-अलग टुकड़ों में मशीन की तरह देखते हैं, जो दृष्टि को संकीर्ण बनाता है.
श्री बजरंग लाल जी ने बताया कि विदेशी संस्कृति “प्रकृति को तोड़ो मरोड़ो और राज करो” इसके कारण पर्यावरण असंतुलित हुआ ग्लोवल वार्मिंग जैसी समस्याएँ आईं उस पर चर्चा करने के लिए करोड़ों रु खर्च कर रहे हैं. हमने शुरू से ही प्रकृति को देवता माना, हमे दकियानूसी, पिछड़ा कहा गया, लेकिन अब हमारे विचारों को मानने लगे हैं. जगदीश बसु के प्रयोग के बाद दुनिया ने माना कि पेड-पौधे भी सुख-दुख का अनुभव करते हैं. उन्होंने कहा कि पाश्चात्य संस्कृति ने मनुष्य को सामाजिक तथा राजनैतिक जानवर माना, इकोनौमिक मैन माना. काम करने के दो कारण समझाये-पैसों के लिये तथा डर के कारण, इसीलिये भृष्टाचार को बढावा मिला. कृष्ण ने गीता में समझाया कि “कर्म हमारा कर्तव्य है स्वार्थ नहीं” तभी अर्जुन लड़ने को तैयार हुआ.
विवेकानन्द जी द्वारा कहे वाक्य कि “हमारे यहां चरित्र मनुष्य को सभ्य बनाता है विदेश में दर्जी” के आधार पर उन्होंने कहा कि हमें शाश्वत जीवन मूल्य अपने आचरण में पहले उतारना है तभी हम किसी और को कह पायेंगे.
इनसे पहले अ.भा.रा.शै. महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. विमल जी ने कहा कि हमारे पाठ्यक्रम से जीवन को आदर्श बनाने वाले महापुरुषों की जीवनगाथा हटा दी गई जिससे नैतिक और चारित्रिक पतन हुआ. उसे पुनः लाने का प्रयास हम कर रहे हैं. हमने इस बिषय को राष्ट्रीय स्तर पर लिया 15 जून को कार्यशाला का आयोजन किया जिसमें 22 राज्यों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया. आगे इसे जिला तथा नगर स्तर तक ले जाने की योजना है. उन्होंने गुरु के 15 दिन बाद गुड खाने को मना करने के उदाहरण द्वारा सभी को पहले खुद को तैयार होने को कहा.
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे दिल्ली अध्यापक परिषद के अध्यक्ष जय भगवान गोयल जी ने कहा कि दिल्ली में अध्यापकों को अनेक चुनौतियों जैसे कि “कक्षा 8 तक सभी को पास करना, शिक्षकों की भारी कमी, ठेके पर शिक्षा, एक कक्षा में लगभग 100 बच्चे, वेतन विसंगति आदि का सामना करना पड़ रहा है इसके बावजूद हम शिक्षकों तथा छात्रों में संयम, परिश्रम, अनुशासन जैसे शाश्वत जीवन मूल्यों को उतारने का कार्य मन से कर रहे हैं. मा. अध्यक्ष के कहने पर सभागार में उपस्थित सभी ने हाथ उठाकर प्रण लिया कि इस श्रेष्ठ कार्य में दिल्ली अध्यापक परिषद का पूर्ण सहयोग करेंगे
राजेन्द्र गोयल (संगठन मंत्री, दि.अ.प) ने मंचासीन, पूर्वी दिल्ली की मेयर मीनाक्षी, अखिल भारतीय वैश्य समाज संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित, हिन्दू कालेज के प्रिंसीपल प्रद्युमन सिंह तथा सभी स्टाफ को उनके सहयोग के लिये, आये हुए बिशिष्ट अतिथीयों, तथा सभी आगन्तुकों के धन्यवाद किया. रतन लाल जी (महामंत्री दि.अ.प) ने प्रारंभ में दिल्ली अध्यापक परिषद का परिचय दिया. डा. सुदेश (महिला उपाध्यक्ष) ने सफल मंच संचालन किया.