जबलपुर. एकता नगर स्थित ‘‘मातृ छाया’’ उन शिशुओं के लिये वरदान साबित हो रही है, जिनके माँ बाप उन्हें जन्म देने के बाद मरने के लिये कचरे के ढेर में फेंक देके हैं. मातृछाया में कार्यरत समाजसेवक उन शिशुओं का पालन पोषण कुछ इस तरह से कर रहे है जैसे वे बच्चे उनके स्वयं के घर के सदस्य हों.
संस्था के संचालक अतीत तिवारी ने बताया कि यहाँ पर शिशुओं की देखरेख ठीक उसी तरह से की जाती है, सामान्यतौर पर जिस तरह से माता पिता अपनी संतानों की करते हैं. या यूं कहें उससे अच्छे तरीके से होती है. इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ पर बच्चों के स्वास्थ्य का परीक्षण हर रोज किया जाता है. डॉ. नीरज दाहिया प्रतिदिन मातृछाया में आकर बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण करते हैं.
श्री तिवारी के अनुसार इस संस्था में 16 बच्चों का पालन-पोषण किया जा रहा है. इसमें 8 बालक हैं और 8 बालिकायें. यहाँ पर पहले शिशु का आगमन 2 मई 2006 को हुआ था. अभी तक 206 शिशु यहाँ लाये जा चुके है. इसमें से 64 बालक तथा 99 बालिकाओं को जरूरतमंद सज्जन गोद ले चुके है. इस संस्था में सबसे छोटा शिशु सवा दो महिने का है. इसके अलावा चार बच्चे जय, रुद्र, अंजलि, शैली मूक-बधिर हैं. शायद इन्हें कोई गोद न ले पाये, इसका इन्हें मलाल है. साथ ही, महिमा, माही, रामाराम टंके और अमजद ऐसे बच्चे है जिनके माता-पिता जेल में सजा काट रहे हैं. इनमें से अमजद गुजरात के भावनगर से यहां लाया गया है. इन बच्चों की देखभाल के लिये 24 घंटे 7 समाजसेवक साथ में ही रहते है.
श्री तिवारी ने बताया कि मातृछाया में एक साल का एक बच्चा ऐसा भी है जो एच.आई.वी. बीमारी से पीड़ित हैं. अभी पूरी तरह से स्वस्थ इस बालक के भविष्य को लेकर सभी चिंतित हैं. बच्चे को गंभीर बीमारी होने के कारण इसे कोई गोद भी नहीं ले रहा है, लेकिन मातृछाया के सेवक बच्चे को प्यार-दुलार देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. सृजन नाम का यह बालक मेडीकल कॉलेज से बाल कल्याण समिति के द्वारा यहां भिजवाया गया है. माँ-बाप व्दारा त्याग दिये गये बच्चों के भविष्य को बनाने में लगे संस्था के संचालक इस बात को लेकर दुखी हैं कि महिला सशक्तीकरण विभाग के भोपाल और जबलपुर के अधिकारी मातृछाया के सेवकों से अच्छा व्यवहार नहीं करते. वे इनके साथ इस तरह का व्यवहार करते है जैसे वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ करते हैं.
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