भाद्रपद शुक्ल पक्ष दशमी, कलियुग वर्ष ५११६
रायपुर (छत्तीसगढ) - छत्तीसगढ़ में एक गणेश प्रतिमा लोगों के आश्चर्य का कारण है। वह इसलिए क्योंकि यह ३००० फीट ऊंची पहाड़ी पर बनाई गई है। इस पहाड़ी पर चढऩा बेहद मुश्किल भरा काम है। लगभग छह फिट ऊंची यह प्रतिमा सैकड़ों साल पुरानी है। इसे पुरातत्व विभाग ने खोजा है। लोग आश्चर्य इस बात पर करते हैं कि आखिर तीन सौ मीटर ऊंची पहाड़ी पर इसे क्यों बनाया गया, और आखिर इसे यहीं क्यों स्थापित किया गया।
दंतेवाड़ा में जिस जगह यह प्रतिमा स्थापित है उसे ढोल कल की पहाड़ी कहते हैं। दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से 30 किमी की दूरी पर ढोल कल है। छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक डॉ. हेमू यदु के मुताबिक ६ फीट ऊंची २.५ फीट चौड़ी ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित यह प्रतिमा वास्तुकला की दृष्टि से अत्यन्त कलात्मक है।
गणपति की इस प्रतिमा में ऊपरी दांये हाथ में फरसा, ऊपरी बांये हाथ में टूटा हुआ एक दंत, नीचे दांये हाथ में अभय मुद्रा में अक्षमाला धारण किए हुए तथा नीचे बांये हाथ में मोदक धारण किए हुए आयुध के रूप में विराजित है। पुरात्वविदों के मुताबिक इस प्रकार की प्रतिमा बस्तर क्षेत्र में कहीं नहीं मिलती है।
प्रतिमा से यह कथा जुड़ी है...
पौराणिक कथा के अनुसार गणेश जी का परशुराम से युद्ध हुआ था। कहा जाता है कि एक बार परशुराम जी शिवजी से मिलने कैलाश पर्वत गए। उस समय शिवजी विश्राम में थे। गणेश जी उनके रक्षक के रूप में विराजमान थे। उन्हें परशुराम को जाने से रोकने पर उन दोनों के बीच विवाद उत्पन्न हुआ एवं परशुराम क्रोधित होकर फरसा से उनका एक दांत काट दिए थे। तब से गणेश जी एकदंत कहलाए। शिवजी के सहस्त्र नामों में शिवजी का चिंतेश नाम भी मिलता है। शिवजी दंतेल की रक्तदंतिका देवी, दंतेश्वरी को शिव की शक्ति भी कहा गया है। दंतेश का क्षेत्र (वाड़ा) को दंतेवाड़ा कहा जाता है। इस क्षेत्र में कैलाश गुफा भी है।
गणेश और परशुराम में हुआ था युदृध
इस संबंध में किंवदंती चली आ रही है कि यह कैलाश क्षेत्र जहां पर गणेश एवं परशुराम के मध्य युद्ध हुआ था। यही कारण है कि दंतेवाड़ा से ढोल कल पहुंचने के मार्ग पूर्व ग्राम परस पाल मिलता है, जो परशुराम के नाम से जाना जाता है। इसके आगे ग्राम कोतवाल पारा है। कोतवाल अर्थात् रक्षक के रूप में गणेश जी के क्षेत्र होने की जानकारी मिलती है।
स्त्रोत : दैनिक भास्क
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