Tuesday, May 24, 2016

वास्तव में मीडिया प्रजातंत्र के तीनों स्तंभों की आत्मा है – प्रेम शुक्ला जी

भोपाल (विसंकें). सामना के पूर्व संपादक प्रेम शुक्ला जी ने कहा कि मैं मीडिया को प्रजातंत्र का चौथा स्तम्भ नहीं मानता. वस्तुतः मीडिया प्रजातंत्र के तीनों स्तंभ, न्याय पालिका, कार्य पालिका व विधायिका की आत्मा है. जिस प्रकार लोक कल्याण के प्रतीक नारद को कलह प्रिय घोषित कर दिया गया, कुछ कुछ उसी प्रकार का काम आज का अंग्रेजीदां मीडिया करता दिखाई दे रहा है. वह भोपाल विश्व संवाद केंद्र द्वारा आयोजित नारद जयन्ती कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में “वर्तमान परिदृश्य में मीडिया की भूमिका” विषय पर बोल रहे थे.
उन्होंने कहा कि आजादी के पूर्व लोकमान्य तिलक जी ने केसरी का प्रकाशन तीन भाषाओं में किया, मराठी, हिन्दी तथा अंग्रेजी. वर्ष 1910 में इसके प्रकाशन के मूल में राष्ट्रवाद की परिकल्पना थी. उस समय बाबा साहब आंम्बेडकर ने अपना एक आलेख कांग्रेस के मुखपत्र में प्रकाशित करने का आग्रह किया, तो उन्हें जबाब मिला कि इसे विज्ञापन के रूप में सशुल्क प्रकाशित किया जा सकता है, किन्तु बाद में उसे सशुल्क प्रकाशित करने से भी मना कर दिया गया. बाद में 1920 में उन्होंने मूक नायक मासिक का प्रकाशन किया, इस प्रकार सामाजिक न्याय का आन्दोलन भी मीडिया के माध्यम से चला. वर्ष 1933 में गांधी जी ने हरिजन का तथा बाद में नेहरू जी ने नेशनल हेराल्ड का प्रकाशन किया. अतः कहा जा सकता है कि स्वतंत्रता आन्दोलन हो चाहे सामाजिक न्याय का आन्दोलन, मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही. आज जो राष्ट्र सशक्त दिखाई दे रहे हैं, उन्हें सशक्त बनाने में उस देश के मीडिया ने प्रमुख भूमिका अदा की है. कहा जाता था कि किसी जमाने में यूनियन जैक कभी सूर्यास्त का सामना नहीं करता था. पूरे विश्व में उसके इतने उपनिवेश थे. इंग्लेंड की इस शक्ति में बीबीसी की भी भूमिका थी. 31 अक्टूबर 1984 को जब प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की ह्त्या हुई, इस समाचार पर लोगों ने तब तक विश्वास नहीं किया, जब तक कि बीबीसी द्वारा पुष्टि नहीं कर दी गई.
सीएनएन सदैव अमेरिकन हितों का ध्यान रखता है. इसी प्रकार अलजजीरा गल्फ देशों का, बीबीसी इंग्लैंड का, प्रावदा रूस के हितों को ध्यान में रखता है. किन्तु भारत में अभी तक भारत के हित देखने वाले, भारत के दृष्टिकोण से देखने वाले मीडिया का अभाव है. 9-11 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को जहाज टकराकर क्षति ग्रस्त कर दिया गया, अमेरिकी मीडिया ने आलोचना की तो यह की कि अरब देशों का हाथ होने के बाबजूद सऊदी अरब को प्रतिबंधित क्यों नहीं किया गया. सोचिये भारत में ऐसा कुछ हुआ होता तो क्या होता ? सबके सब शोर मचाकर इसे दुर्घटना प्रमाणित करने में जुट जाते. जेएनयू टोली का एक ही मकसद है कि भारत कैसे खोखला हो. भगवान विष्णु को सुरेन्द्र कहा जाता है, अर्थात देवताओं का स्वामी. उन विष्णु के भक्त नारद पर असुर भी भरोसा करते थे, उनके दिए समाचार को सत्य मानते थे. यही प्रामाणिकता हमारी होना चाहिए तथा वाममार्गियों और दाममार्गियों को बेनकाब करना हमारा धर्म हो.
IMG_1076बालासाहब ठाकरे के ड्राईंगरूम में डेविड लौ का एक कार्टून रहा करता था. एक बार कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि जर्मनी को मित्र राष्ट्रों की पूरी सेना मिलकर भी पराजित नहीं कर सकती थी. जो काम सेना नहीं कर सकती थी, वह काम किया डेविड लौ ने, उसके कार्टूनों ने. जर्मन कहा करते थे, बिन्सटन चर्चिल को बाद में मारेंगे, पहले इस डेविड लौ को मारना है. आज के कई अंग्रेजीदां पत्रकार विचार नहीं कर रहे हैं, वैचारिक मल त्याग कर रहे हैं. अमेरिका में जब मीडिया अनियंत्रित हो गई, तब एक आयोग बना – हचिल्स आयोग. उसने कहा कि मीडिया का उद्देश्य, व्यक्ति के कल्याण से अधिक समाज व राष्ट्र का कल्याण होना चाहिए. सत्य को छल से बचाना जरूरी है, इसलिए सत्य को कहने में संकोच नहीं होना चाहिए. सत्य के साथ आम जनता के खड़े होते ही मीडिया के भूत, प्रेत पिशाच सब भाग जायेंगे.
वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा ने प्रस्तावना भाषण में कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत की ही एक धारा भारत को, भारतीय ज्ञान परंपरा को, उसके चिंतन व गुरुत्व को नकारती रही है. जबकि पाश्चात्य विचारक मेक्समूलर ने भी अपनी पुस्तक “विश्व को भारत की देन” नामक पुस्तक में जो उल्लेख किया है, वह ध्यान देने योग्य है. मेक्समूलर लिखता है “बहुत संभव है कि पश्चिम में सभ्यता बेबीलोनिया व ईरान से होकर भारत से गई हो”. नारद ने सदैव सत्वगुण को प्रोत्साहन दिया तथा तमोगुण को हतोत्साहित किया. जबकि आज सकारात्मक समाचारों का अभाव है. लोक कल्याण की नारद परंपरा को आगे बढाने की जरूरत है. नकारात्मकता के माहौल को बदलने की आवश्यकता है.
विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित आईबीएन7 के एंकर आकाश सोनी ने कहा कि पत्रकारिता के अपने प्रारम्भिक दौर में एक बार मैं जी न्यूज़ के लिए एक एक्सीडेंट की रिपोर्टिंग के लिए गया तो देखा कि वहां संघ के स्वयंसेवक सबसे पहले पहुंचकर सेवा कार्य में जुटे हुए हैं. किन्तु मुझे हैरानी तब हुई, जब वह समाचार प्रसारित करने से स्थानीय सम्पादक ने मना कर दिया. बाद में अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से चर्चा के बाद ही वह समाचार प्रसारित हुआ. इसी प्रकार जब मैं लन्दन में बीबीसी के लिए काम कर रहा था, मेरे साथ एक आस्ट्रेलिया की महिला भी थी, उसने एक बार हैरानी जताई कि आपके भारत में आरएसएस को लेकर इतनी कंट्रोवर्सी क्यों है, हमारे आस्ट्रेलिया में तो वे लोग एचएसएस के नाम से अच्छा काम कर रहे हैं. उनके माध्यम से ही मुझे भारतीय संस्कृति की जानकारी मिली है.
कार्यक्रम में सकारात्मक समाचारों के लिए पांच पत्रकारों को सम्मानित किया गया. पीपुल्स समाचार भोपाल के अनिल सिरवेंया, पत्रिका के सीहोर ब्यूरो प्रमुख कुलदीप सारस्वत, दैनिक जागरण भोपाल के देवेन्द्र साहू, दैनिक भास्कर भोपाल के चीफ रिपोर्टर सिटी रोहित श्रीवास्तव तथा नवदुनिया के श्योपुर ब्यूरो प्रमुख हरिओम गौड़ को नारद सम्मान दिया गया. तीन सदस्यीय जूरी ने इन पत्रकारों का चयन किया था. चयन करने वालों में सुबह सबेरा के सम्पादक गिरीश उपाध्याय, दैनिक जागरण के पूर्व सम्पादक रमेश शर्मा व जन सम्पर्क विभाग के सेवा निवृत्त अधिकारी सुरेन्द्र द्विवेदी सम्मिलित थे.

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