नागपुर (विसंकें). जी न्यूज़ के कार्यकारी संपादक रोहित सरदाना ने कहा कि आज सोशल मीडिया नाराजगी व्यक्त करने का शक्तिशाली माध्यम बन गया है, इससे मतभिन्नता और नाराजगी में गफलत होती है. अभिव्यक्ति की आज़ादी पर खतरे का शोर मचता है. दस-पंद्रह कैमरे लगाकर लोग ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी पर खतरा’ विषय पर भाषण देते हैं, चर्चा करते हैं. यह सब प्रसार माध्यमों पर दिखाया जाता है. समाचार पत्रों में भी प्रकाशित होता है. सरकार के विरुद्ध बोलने के कारण किसी को देश छोड़कर भागना नहीं पड़ता, या विदेश में शरण नहीं लेनी पड़ती और न ही सरकार कहती है कि कल समाचार पत्र नहीं छपेंगे. फिर भी अभिव्यक्ति की आज़ादी पर खतरे का शोर चलता रहता है. वास्तव में यह अभिव्यक्ति की आज़ादी पर खतरे का नहीं, अपितु अभिव्यक्ति की आज़ादी का सबूत है. रोहित सरदाना विश्व संवाद केन्द्र नागपुर द्वारा आयोजित नारद जयंती पुरस्कार वितरण समारोह में संबोधित कर रहे थे. समाचारपत्र ‘लोकशाही वार्ता’ के संपादक लक्ष्मणराव जोशी जी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की.
रोहित सरदाना ने कहा कि अभिव्यक्ति की आज़ादी पर प्रकाशित एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में भारत को 136वां स्थान दिया गया है. इससे पहले, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का क्रमांक 133 था. इसलिए अब तक सब बहुत अच्छा था और आज ही अभिव्यक्ति की आज़ादी पर बड़ा खतरा निर्माण हुआ है, यह शोर बेमानी है. उन्होंने कहा कि बिजनेस हाऊसेस द्वारा संचालित मीडिया का व्यावसायिकरण हो गया है, वहां कुछ भी संतुलित नहीं होता, जो बिकता है वो बेचा जाता है. सोशल मीडिया पर कहा कि यह सूचना का प्रभावी माध्यम बन गया है. इससे लोगों को विविध स्रोतों से किसी भी घटना की जानकारी मिलती रहती है. इसमें कई बार गलत जानकारी भी होती है. इसलिए संदेहजनक प्रतीत होने पर सूचना/समाचार के तथ्यों को जान लेना चाहिए. क्योंकि, इसके आधार पर लोग घटनाओं के संदर्भ में अपनी राय बनाते है. घटना की सही जानकारी मिलेगी तो ही लोग उस पर अपनी सही राय बना सकेंगे.
ध्येयवादी पत्रकारिता मुद्रित माध्यमों का प्राण
लक्ष्मणराव जोशी जी ने कहा कि टेलीविजन प्रसार माध्यमों की भीड़ में भी मुद्रित माध्यमों ने ध्येयवादी पत्रकारिता का दामन नहीं छोड़ा तो उनका महत्व अबाधित रहेगा. स्वाधीनता के बाद – स्वराज से सुराज का ध्येय रखकर पत्रकारिता की जाती तो उसका पतन नहीं होता. किसी भी उद्योग में व्यावसायिकता का महत्व होता ही है और मूल्यों का पालन करते हुए व्यवसाय करने में कोई बुराई नहीं. व्यवसाय में कुछ समझौते भी करने पड़ते हैं, लेकिन दु:ख के साथ कहना पड़ता है कि मुद्रित माध्यमों का बड़ी मात्रा में बाजारीकरण हो चुका है. ‘पेड न्यूज’ इस बाजारीकरण के पतन का ही परिणाम है. समाचारपत्रों में संपादक की नियुक्ति करते समय उनसे विज्ञापन का टार्गेट – कितने रुपयों के विज्ञापन लाओगे, पूछा जाता है और दुर्भाग्य यह कि संपादक भी यह शर्त स्वीकार करते हैं.
कार्यक्रम में अखिलेश हळवे, लोकशाही वार्ता के वाशिम संवाददाता नितीन पगार, और इसी वर्ष से वृत्त छायाचित्रकार और व्यंग चित्रकारों के वर्ग में ‘लोकसत्ता’ समाचारपत्र की छाया चित्रकार मोनिका चतुर्वेदी को सम्मानित किया गया. कार्यक्रम का प्रास्ताविक विश्व संवाद केन्द्र के अध्यक्ष सुधीर पाठक जी, अतिथियों का स्वागत केन्द्र के सह प्रमुख प्रसाद बर्वे जी, संचालन नीलय चौथाईवाले और आभार प्रदर्शन केन्द्र के सचिव रविजी मेश्राम ने किया.
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