Wednesday, April 16, 2014

ऐसी न्याय प्रणाली चाहिये जो ग्रामों को विवादमुक्त बना दे – धर्माधिकारी

ऐसी न्याय प्रणाली चाहिये जो ग्रामों को विवादमुक्त बना दे – धर्माधिकारी

 Posted date: April 16, 2014
नई दिल्ली. भारत में आयातित प्रतिपक्षीय न्यायप्रणाली से उपजे खतरों के प्रति चेताते हुए प्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक और न्यायविद – न्यायमूर्ति श्री चंद्रशेखर शंकर धर्माधिकारी ने कहा है कि अंग्रेजों से उधार में ली गयी निर्णय प्रणाली न्याय प्रणाली नहीं कहलायी जा सकती. हमें आजादी के बाद राष्ट्र अध्यक्ष और झण्डे के साथ-साथ न्यायप्रणाली भी बदल देनी चाहिये थी और इस गलती के लिये अगली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी. श्री धर्माधिकारी ने गत रविवार को दीनदयाल शोध संस्थान द्वारा आयोजित चतुर्थ नानाजी स्मृति व्याख्यान में जिसका विषय था – ‘‘विवाद मुक्त गांव: विकास के सोपान’’, अपने संबोधन में कहा कि आज की न्याय प्रणाली में जीतने वाला भी हारता है, क्योंकि विवाद पैदा होना समाज के बिखराव, अलगाव और पतन की निशानी है. उन्होंने प्रश्न उठाया कि क्या एक के पक्ष में निर्णय होना न्याय कहलाया जा सकता है? उन्होंने कहा कि भारत गांवों का देश है. देश तभी विकसित होगा, जब देश के 6.5 लाख गांव विवादमुक्त होंगे. नानाजी ने जिस स्वावलंबी एवं समर्थ भारत की परिकल्पना की थी, विवादमुक्त गांव उसका प्रमुख आयाम है.
समाज में उपजी विकृति की ओर इंगित करते हुए उन्होंने कहा कि आज मसल, मनी और मीडिया पॉवर को पूजा जाता है और कानून तोड़ने वालों की प्रतिष्ठा मानी जाती है. उन्होंने कहा कि विवाद की परिभाषा ढूंढने के बजाय विवाद हो ही नहीं, ऐसा समाज प्रतिस्थापित करने की दिशा में प्रयास क्यों नहीं होते? विवाद मुक्त गांव की संकल्पना में मा. नानाजी देशमुख की भूमिका को रेखांकित करते हुए श्री धर्माधिकारी ने कहा कि गांधीजी व नानाजी दोनों ने ‘स्वतन्त्रता’ के स्थान पर ‘स्वराज’ शब्द का इस्तेमाल किया और  इसे व्यावहारिक धरातल पर अपने प्रयोगों द्वारा सिद्ध भी किया. उन्होंने जोर देकर कहा कि विवेकानन्द के पश्चात आधुनिक समय में दीनदयाल उपाध्याय एवं नानाजी ने मनुष्य सेवा पर जोर दिया जो कि समाज को विवाद और बिखराव से बचाने का एकमात्र रास्ता है.
न्यायमूर्ति श्री धर्माधिकारी ने कहा कि विवाद समाप्त करने के दो तरीके होते हैं – एक तो विवादों को सुलझाना और दूसरा ऐसी परिस्थितियां पैदा करना कि विवाद जन्म ही न लें. नानाजी ने दूसरे रास्ते को चुना और चित्रकूट के 500 गांवों को मुकद्मों से निजात दिलायी. उन्होंने कहा कि नानाजी के जीवन से हम सीख सकते हैं कि संघर्ष और रचना का समन्वय कैसे किया जाता है क्योंकि सत्ता या पद न होते हुए भी उन्होंने रचनात्मक कार्यों को देहातों से जोड़कर स्वावलंबी गांवों की तस्वीर रच डाली. श्री धर्माधिकारी ने कहा कि सत्ताकांक्षी और सत्ताधारी समाज बिगाड़ते हैं, लेकिन दीनदयालजी, नानाजी, गांधीजी, लोकनायक जैसे लोग किसी पद पर न रहते हुए भी समाज निर्माण में लगे रहते हैं. उन्होंने प्रश्न उठाया कि यह समाज को सोचना है कि जमाना नानाजी का होगा या सत्ताधारियों का.
भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई  में एक सशक्त समाज की भूमिका पर टिप्पणी करते हुए श्री धर्माधिकारी ने कहा कि पश्चिमी संस्कृति द्वारा कृत्रिम दिमाग और कृत्रिम जरूरतों के विध्वंसकारी निर्माण की प्रक्रिया पर रोक लगानी आवश्यक है. इस प्रक्रिया को अनर्थ, व्यर्थ, स्वार्थ और विपत्ति के अर्थशास्त्र की संज्ञा देते हुए उन्होंने कहा कि विश्व कुटुम्बकम् की संकल्पना में यह फिट नहीं बैठता. नानाजी ने पारिवारिक कौटुम्बिक भावना, जो विश्व कटुम्बकम् का आधार है, को ग्राम स्वराज का आधार बनाया था. उसी रास्ते का समर्थन करते हुए श्री धर्माधिकारी ने जोर दिया कि सामाजिक विषमता समाप्त करने का यही एकमात्र उपाय है.
अपने अध्यक्षीय संबोधन में खादी व ग्रामोद्योग आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. महेश शर्मा ने समाज के राजनीतिकरण को ग्रामों की बिगड़ती हालत का जिम्मेदार बताते हुए चिन्ता जाहिर की. उन्होंने कहा कि नेताओं ने आपसी फूट डालकर परिवारों में झगड़े और मुकद्मों की स्थिति पैदा कर दी है. उन्होंने नानाजी द्वारा स्थापित समाज शिल्पी दम्पति योजना की प्रशंसा करते हुए कहा कि समाजशिल्पियों का गांव में रहना बहुत बड़ी बात है. उन्होंने आह्वान किया कि मा. नानाजी के ग्राम विकास का मॉडल देश भर में अपनाया जाना चाहिये.
कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन संस्थान के उपाध्यक्ष मा. प्रभाकर राव मुंडले ने किया. व्याख्यान में संस्थान के प्रधान सचिव डा. भरत पाठक, उत्तरी दिल्ली के महापौर मास्टर आजाद सिंह, वरिष्ठ  गांधीवादी विचारक डा. अनुपम मिश्र, कपार्ट के पूर्व महानिदेशक श्री रंगन दत्ता एवं डा. कमल टावरी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रवक्ता श्री राम माधव, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्व उप महानिदेशक डा. सी. प्रसाद एवं डा. पी. दास प्रमुख रूप से उपस्थित थे. कार्यक्रम का संचालन श्री अतुल जैन ने किया.

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